झारखण्ड: बेटियां बोझ नही, शिक्षित कर बनाएं सशक्त – CM हेमन्त

झारखण्ड : सीएम हेमन्त ने गुरूजी के धरती, गिरिडीह से फिर दिया सन्देश -कहा बेटियां सामाजिक बोझ नहीं, पुरुषवादी मानसिकता से ऊपर उठ उन्हें शिक्षित कर बनाएं मजबूत. वह सामाज का करेगी सशक्तिकरण.

रांची : झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन बेटियों को पुरुषवादी लक्ष्मण रेखा से बाहर निकालने हेतु लगातार प्रयास करते देख रहे हैं. इसकी शुरुआत उन्होंने अपने घर से की है. जिसके अक्स में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन अपनी प्रतिभा से गांडेय विधानसभा की विधायक बनी. 9 सितम्बर 2024 का दिन झारखण्डी परम्परा के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक रहा. जहाँ कल्पना सोरेन ने एक पत्नी के रूप में नहीं बल्कि बतौर विधायक भारतीय संस्कारों के अनुरूप झारखण्ड के सीएम का स्वागत किया. और विपक्ष जनविरोधी नीतियों को ललकारीं.

बेटियां बोझ नही - CM हेमन्त

यही नहीं सीएम हेमन्त ने कई जुझारू नेताओं के पत्नियों को पूरी ताक़त से न केवल विधायक बनने का मौक़ा दिया, उनकी प्रतिभा को भी तराशने का प्रयास किया है. इस फेहरिस्त स्व. जगरनाथ महतो की बेवा पत्न्नी श्रीमती बेवी देवी का नाम सामने है. उन्हें सीएम ने न केवल विधयक का टिकट दे जन भादिदारी से विधायक बनाया, मंत्रालय भी दिया. आज उनका विभाग राज्य में मुख्यमंत्री मईया सम्मान योजना का सूत्रधार बन राज्य की बेटियों के सशक्तिकरण का ऐतिहासिक गाथा लिख रहा है.

बेटियाँ सामाजिक बोझ नहीं -सीएम हेमन्त सोरेन 

झारखण्ड के दिशोम गुरु शिबू सोरेन की धरती, गिरिडीह से सीएम हेमन्त सोरेन का फिर एक बार सन्देश देना कि बेटियां सामाजिक बोझ नहीं होतीं, उन्हें शिक्षित कर मजबूत करें वह समाज का सशक्तीकरण करेंगी. पुरुषवादी मानसिकता के अक्स में देश में सदियों से चली आ रही कुप्रथाओं और रूढ़िवादी सोच पर यह जोरदार लोकतांत्रिक मानवीय हमला है. इसी के साथ सीएम ने स्पष्ट सन्देश दिया है कि उनकी विचारधारा के अनुसार शिक्षित बेटियां ही सशक्त समाज की परिभाषा है.

उन्होंने कहना कि शिक्षित बेटियां समाजिक परिवर्तन की अगुवाई करती हैं. जब वह जागरूक होती हैं तो अपने अधिकारों के साथ सामाजिक अधिकार के लिए भी लड़ती हैं. शिक्षित बेटियां आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो केवल परिवार का ही सहारा नहीं बनती हैं. भ्रमजाल से ग्रसित समाज को वैज्ञानिक दिरिश्तिकों से विकसित होने में भी महत्वपूर्ण कड़ी साबित होतो हैं. साथ ही वह अपनी प्रतिभा और संस्कारों से समाज का नजरिया बदलती है. स्वस्थ पीढ़ी का पोषण कर समाज को मानसिक कुपोषण से बाहर भी निकालती है, बेटियों को समाज का अमूल्य धरोहर बनाती हैं.

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