झारखण्ड : राजनीति में कल्पना सोरेन के आने से महिला समस्या समाधान को मिली धार. राज्य के महिला विधायक-मंत्रियों में बढ़ा कॉन्फिडेंस और उर्जा. क्या यह सत्य नहीं?
रांची : विपक्ष के इम्पोर्टेड नेता ही नहीं केन्द्रीय मंत्री तक ज़मीनी मुद्दों से दूर केवल उड़ते मुद्दों के आसरे झारखण्डी जनता और युवा को भ्रमित करने का प्रयास करते देखे गए. राज्य में सुखाड़ की संभावना जताई गई लेकिन केन्द्रीय मंत्री ‘मामा’ जिन्हें झारखण्ड विधानसभा चुनाव का भार सौपा गया है केवल राजनीति का निकलटे दिखे. उन्होंने सुखाड़ की तैयारी हेतु कोई सहयोग नहीं किया. जबकि बजट में राज्य के किसान टकटकी लगाए बैठे रहे, मदद सीएम हेमन्त के तरफ से दिखी, यही सच है.
उसी प्रकार पोषण सखी योजना को पूर्व के रघुवर काल में ही केंद्र सरकार ने बंद कर दिया गया. हजारों पोषण सखी बहने सड़क पर आन्दोलनरत दिखीं. झारखण्ड के बीजेपी नेता उनके दुःख के आड़ में राजनीति करते दिखे. आडम्बरवाद की पराकाष्ठा तब हो गई जब केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान यानी मामा भी यही करते दिखे. उनका कभी प्रयास नहीं दिखा कि केंद्र सरकार यह योजना राज्य में फिर से शुरू करे. इस समस्या का हल भी कल्पना सोरेन की जिद्द और सीएम हेमन्त ने ही की.
कल्पना सोरेन के राजनीती में आने से महिला समस्या समाधान को मिली धार
कल्पना सोरेन के राजनीति में आने से बिना संकोच कहा जा सकता है कि राज्य के महिला समस्या समाधान को धार मिली है. राज्य की महिला विधायक-मंत्रियों में कॉन्फिडेंस और उर्जा बढ़ा है. उनके आवाज महिला हित में गूंजी है. राज्य की आधी-आबादी के आर्थिक-सामाजिक सुदृढ़ीकरण की दिशा में तेजी से ठोस फैसले हुए हैं. और उनके कॉन्फिडेंस लेवल में भी इजाफा देखा गया है. और इस कड़ी में जानलेवा महंगाई के बीच राज्य के दस हजार पोषण सखी बहनों के दुखों का अंत हुआ है.
मुख्यमंत्री सही ही कहते थे महिला-पुरुष एक वाहन के दो पहिये हैं. पुरुष समझ को जब महिला समझ का साथ मिलता है तो अचंभित परिणाम दिखते हैं. झारखण्ड में यह देखा जा सकता है. सीएम के जनहित समझ को जब कल्पना सोरेन की समझ और प्रतिभा का साथ मिला तो झटके में महिला समस्याओं का समाधान सिरे से होता दिखने लगा है. बड़े भाई के रूप में हेमन्त ने पोषण सखी की पुनर्बहाली को स्वीकृति दी तो कल्पना सोरेन ने कहा पोषण सखी से किया उनका वादा पूरा हुआ.
झारखण्ड की हजारों पोषण सखी बहने फिर से हुई बहाल
सीएम का स्पष्ट कहना है केंद्र सरकार ने इस योजना को बंद करते हुए हिस्सा राशि देने से इंकार कर दिया था. बार-बार उनके तरफ से अनुरोध किया गया लेकिन सुनवाई नहीं हुई. अल्प मानदेय पर भी सेवा दे रही इन बहनों के परेशानियों पर केंद्र का दिल नहीं पसीजा. यहीं से कल्पना सोरेन की जिद्द और प्रतिभा ने अपना कमाल दिखाया और राज्य साकार ने अपनी क्षमता पर उनकी बहाली सुनिश्चित की. मसलन, कल्पना के जिद्द ने मामा जैसे पुरुष राजनीति को फीका कर दिया. कहा जा सकता है कि झारखण्ड राज्य में यह एक नई सामाजिक क्रांति की शुरुआत है.