BJP और उसके अनुषंगी संगठनों का न भारत के स्वतंत्रता संग्राम में, न ही किसी जन आन्दोलन में भागीदारी रही है. वह केवल भारतीय नायकों और महापुरुषों के इतिहास हड़प राजनीति करती दिखी है, झारखण्ड में भी यह होता दिख चला है.
रांची : बीजेपी और उसके अनुषंगी दल का भारत के स्वतंत्रता संग्राम और अन्य जन आन्दोलनों में कोई भागीदारी नहीं रही है. वह नायकों-महापुरुषों के पुरुषार्थ को हड़प, ऐतिहासिक नाम बदल, रंग, जात-पात, खान-पान, सामाजिक मतभेद और सांप्रदायिकता के आसरे राजनीति करते दिखी है. ज्ञात हो झारखण्ड में उसने कई आदिवासी-दलित चेहरों को मुख्यमंत्री पद जैसे लोभ के आसरे पार्टी में लाया, लेकिन आखिरी सच यही उभरा कि उसके नीतियों के अक्स में ही न केवल सभी बेअसर रहे, उनकी व्यक्तिगत छवि भी धूमिल हुई.
क्योंकि, झारखण्ड प्रदेश एक आन्दोलनकारी धरती रही है. यहाँ की जनता दशकों से अन्याय और सामंतवाद के खिलाफ आन्दोलन करती आई है. नतीजतन, राज्य के नसों में आन्दोलन की समझ समाया हुआ है. नतीजतन वनवासी, कमल कलब, लैंड बैंक, संप्रदायीकरण जैसे बीजेपी के तामाम प्रोपोगेन्डा ज़मीन पर दम तोडती दिखी. अंततः साम-दाम-दंड-भेद के आसरे इस बार वह एक दूसरी पंक्ति के आन्दोलनकारी चंपाई सोरेन पार्टी में शामिल करने में सफल तो हुई है. लेकिन उसका मंशा सधना न केवल संदिग्ध, असंभव प्रतीत होता है.
आन्दोलनकारियों और उसके वंशजों की प्रमुख पार्टी – झारखण्ड मुक्ति मोर्चा
झारखण्ड प्रदेश में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा आन्दोलनकारियों और उसके वंशजों की एक प्रमुख पार्टी के रूप में अस्तित्व है. जिसकी अपनी पृथक लोकतांत्रिक और मानवीय विचारधारा है. मसलन, बीजेपी के थिंक टैंकों को यहाँ इस विचारधारा से झारखण्ड में टकराना पड़ता है. और जन विरोधी नीतियों के अक्स में बीजेपी थिंक टैंकों को बेबस होना पड़ता है. ऐसे में उसके राजनीति को इस राज्य में विभिन्न हथकंडे अपनाने पड़ते हैं. इसी कड़ी में आदिवासी सीएम की जेल यात्रा, विधायक खरीद-फरोख्त साम्प्रदायिक नीतियाँ जैसे सच सामने हैं.
चूँकि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा मूल रूप से आदिवासी महापुरुषों और बाबा साहेब आंबेडकर के महान मानवीय – लोकतांत्रिक विचारधारा को समर्पित पार्टी है, इसलिए वह समाज में स्थापित पुरुषवादी विचारधारा की जगह आधी आबादी की आर्थिक-सामाजिक मजबूती और समानता सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस रणनीति के साथ कार्य करना शुरू किया है. व कहते हैं कि अच्छे नियत के कार्य करने की ठानों तो प्रकृतिक भी साथ देता है, मसलन, इस दल को कल्पना सोरेन जैसी कई प्रतिभावान नेत्रीयां भी मिल गई है. जो पुरुषवादी मानसिकता के समक्ष चुनौती पेश कर रही है.
वैचारिक रूप से कमजोर पुरुषवादी नेताओं को कल्पना की प्रतिभा कर रहा भयभीत
मोदीकाल में भारतीय राजनीति में बदलव देखा गया है, साम्प्रदायिकता, अनैतिकता, धार्मिकता, संगठित जातिवाद, पुरुषवादी विचारधारा, मौकापरस्ती, सामंतवाद और अलोकतांत्रिक गतिविधियों का प्रवेश जबरन राजनीति में हुआ है. इन्हीं हथियारों के आसरे बीजेपी केन्द्रीय सत्ता के शक्तियों के आसरे ने झारखण्ड प्रदेश में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की चुनी हुई सरकार गिराने और उसके नेताओं में फूट डालने का सामन्ती प्रयास हुआ है. इस बीच कल्पना सोरेन की प्रतिभा इन्हें दारा रहा है. मसलन महिला प्रतिभा को धाराशाही करने के मद्देनजर चंपाई सोरेन जैसे नेता का शिकार किया गया है.
यहीं से सबसे बड़ा सवाल उभरता है कि क्या बीजेपी की मौकापरस्त राजनीति केवल चंपाई सोरेन के आसरे आन्दोलनकारियों और आधी आबादी की समझ को चुनौती दे सकती है. एक तरफ राज्य के महिलायों के आत्मा पर बीजेपी सत्ता के दिए जख्म, राज्य के आदिवासियों-मूलवासियों के अधिकारों पर बीजेपी सत्ता का बाहरी वर्चस्व जैसी खाई, वहीँ दूसरी तरफ सीएम हेमन्त सत्ता और कल्पना सोरेन का महिला ज़ख्मों पर मरहम और राज्य के आदिवासी-मूलवासी अधिकारों को सुनिश्चित करने का मानवीय प्रयास के अक्स में बीजेपी की मौक़ापरस्त लालसा सपना ही न रह जाए.