झारखण्ड : भात-भात कर भूख से मरने वाली संतोषी बेटी ही थी. पूर्व बीजेपी सीएम रघुवर दास से अपमानित होने वाला बाप एक बेटी के लिए ही न्याय की गुहार लगा रहा था. अधिकारों के एवज में पीठ पर लाठियां खाने वाली आंगनबाडी महिलायें राज्य की बेटियां ही थी.
रांची : विपक्ष के तथाकथित सामन्ती बुद्धिजीवियों का तिलमिलाता ट्विट देख कर प्रतीत होता है कि हेमन्त सरकार की महिला सशक्तिकरण का प्रयास पुरुषवादी मानसिकता के कई शतकों के एकाधिकार सत्ता से मुक्ति की दिशा में कारगर मानवीय पहल है. मसलन, सामन्ती बुद्धिजीवी ट्विट के आसरे राज्य के महिलायें, वंचितों और गरीब वर्गों को भ्रमित करने का प्रयास करते निरंतर दिखते हैं. लेकिन शायद उन्हें भान नहीं है यह 21वीं सदी है जहाँ गरीब वर्गों के बौधिक क्षमता में इजाफा हुआ है, जिसके अक्स में अब गरीबों का हर वर्ग सामन्ती एजेंडों को समझ रहे हैं.
झारखण्ड में पूर्व के बीजेपी शासनों में महिला त्रासदी
पूर्व बीजेपी शासनों में भात-भात कह भूख से मरने वाली संतोषी एक बेटी ही थी. पूर्व बीजेपी सीएम रघुवर दास से अपमानित होने वाला पिता एक बेटी के लिए ही न्याय की गुहार लगा रहा था. हक के एवज में पीठ पर लाठियां खाने वाली आंगनबाडी की महिलायें राज्य की बेटियां ही थी. बीजेपी काल में मानव तस्करों के चुंगल में फंसी महिलायें भी राज्य की बेटियां ही थी जिनकी मुक्ति घर वापसी के रूप में हेमन्त सरकार में हुई. पेशन की आस में त्रासदी झेलने वाली विधवायें, बेटियां ही थी.
एकल महिलाओं के दुख बयान भी नहीं किया जा सकता. खनिज लूट के अक्स में विस्थापित हुए परिवारों में गरीबी का सबसे ज्यादा असर महिलाओं में ही देखा गया. रिक्त सरकारी पदों के अक्स में अनुबंध के नाम पर कम वेतन पर खटने वाली राज्य की बेटियां ही थी. जिससे राज्य की महिलायें कुपोषण की शिकार हुई. मर्जर के आड़ में बंद हुए हजारों स्कूलों का सीधा सर महिला शिक्षा पर पड़ता दिखा. यहाँ तक कि बीजेपी शासन में बेटियों को भी मिल रहे स्कालरशिप बंद हुए. क्या तमाम परिस्थितियाँ बीजेपी शासनों की परिभाषा नहीं?
हेमन्त सरकार में उठे महिला सशक्तिकरण में कई ठोस कदम
सीएम हेमन्त की नेतृव वाली सरकार में महिला सशक्तिकरण के मद्देनजर एक ओर बेटियों के प्रतिभा पर पहली बार विश्वास जताया गया, तो दूसरी और योजनाओं के आसरे राज्य के महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक स्थित के सुदृढ़ीकरण के दिशा में कई ठोस निर्णय लिए गए. जिसका नतीजा है कि राज्य की बेटियों ने कोरोना में इस गरीब प्रदेश में किसी महिला-पुरुष को भूख से नहीं मरने दिया. पलाश जैसे ब्रांड ने राज्य-देश में अपना पृथक अस्तित्व पाया और हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी देखने को मिलने लगी.
महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक स्थित सुदृढ़ करने वाली प्रमुख योजनायें
- सावित्रीबाई फूले योजना: यह योजना बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है. इससे बालिकाओं को शिक्षा के अवसर मिल रहे हैं और वे एक स्वतंत्र और सशक्त जीवन जीने में सक्षम हो रही हैं.
- सर्वजन पेंशन योजना : यह योजना बुजुर्गों, विधवाओं, एकल और दिव्यांगों के लिए आर्थिक सुरक्षा का एक साधन है. इससे उन्हें अपने जीवन में आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता.
- फूलो-झानो योजना : इस योजना के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा रहा है. इससे न केवल महिलाओं का जीवन स्तर सुधर रहा है बल्कि समाज में भी महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है.
- अबुआ आवास योजना : इस योजना के तहत गरीब परिवारों को तीन कमरों के पक्के मकान मुहैया कराए जा रहे हैं. इससे लोगों को आवास की समस्या से निजात मिल रही है और उनका जीवन स्तर सुधर रहा है.
- गुरूजी क्रेडिट कार्ड योजना : एक बेहद उपयोगी योजना, जिसका उद्देश्य राज्य के सभी बेटे-बेटियों को उच्च शिक्षा प्राप्त हेतु आर्थिक सहायता प्रदान करना है. इस योजना के तहत, छात्रों को 15 लाख रुपये तक का ऋण कम ब्याज दर पर उपलब्ध कराया जाता है.
- मईया सम्मान योजना: यह योजना गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए शुरू की गई है. इससे मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर और कुपोषण दर को कम करने में मदद मिलेगी.
सीएम हेमन्त सोरेन ने कोरोना जैसे त्रासदी से लड़ाई के महिलाओं की ईमानदार मेहनत देख समझे कि केवल पुरुषों के आसरे ही राज्य-देश के संकटों से नहीं लड़ा जा सकता है. मसलन, उन्होंने राज्य विकास में महिला प्रतिभा को प्राथमिकता देने को ठानी. और उनकी नीतियों से सपष्ट हो चला है कि वह झारखण्ड के हर क्षेत्र में समान महिला प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने की दिशा में बढ़ चले हैं. और यहीं से बीजेपी शासन की और वर्तमान हेमन्त शासन की नीतियों में स्पष्ट अंतर समझा जा सकता है. कि यही वे ठोस रास्ते हैं जिसपर चल कर झारखण्ड अपना सुनहरा भविष्य लिख सकता है.