झारखण्ड: “विधायिका एवं कार्यपालिका के दायित्व” पर चिंतन-मंथन

सीएम हेमन्त का कहना की विधायिका और कार्यपालिका के बीच असंतुलन गहराता है तब जनता व निगरानी संस्थानों के मध्य सवाल खड़े होते हैं. उनके संविधान के प्रति आस्था को दर्शाता है.

रांची : हेमन्त शासन में झारखण्ड में संविधानिक दायित्व के मजबूतीकरण पर जोर दिया गया है. संविधानिक दायित्व को सुचारू बनाने के दिशा में भी सीएम हेमन्त का कार्यकाल गंभीर चिंतन-मंथन का सच लिए है. राज्य में “विधायिका एवं कार्यपालिका के दायित्व” विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित हो रहा है. कार्यक्रम में सीएम की मौजूदगी और लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल आत्मा संविधान में निहित, जैसे मतवपूर्ण विषय पर उनका बोलना, लोकतंत्र के प्रति उनकी आस्था को प्रदर्शित करता है.

झारखण्ड: "विधायिका एवं कार्यपालिका के दायित्व" पर चिंतन-मंथन

भारतीय संविधान भारत देश के नागरिकों के मध्य एक संविधानिक समझौता है. यां नागरिकों के मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों और संवैधानिक संरचना को व्यवस्थित करता है. संविधान में लोकतांत्रिक विचारधारा, सरकारी शक्तियों की प्रतिबद्धता और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की गई है. संविधान निर्माताओं के द्वारा नीतियों और मानदंडों के माध्यम से, व्यवस्थायें सुनिश्चित की गई है. जिसकी अगुआई न्यायपालिका, विधायिका व कार्यपालिका जैसे सरकारे अंग करते है.

संविधान में लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल आत्मा का अन्य महत्वपूर्ण पहलु जैसे प्रेस, वाणिज्यिक व मतदान स्वतंत्रता आदि को मान्यता प्राप्त है. यह नागरिकों को स्वतंत्र रूप से विचार, अभिव्यक्ति की आजादी और मतदान के माध्यम से सरकारी निर्णयों पर सहमती-असहमती प्रदान करने की स्वतंत्रता देता है. ऐसे में कहा जा सकता है की मौजूदा दौर में जहां केन्द्रीय मोदी शासन के अक्स में जहां इन स्वतंत्रताओं का हरण हुआ है वहीं हेमन्त शासन में इन नागरिक स्वतंत्रताओं के संरक्षण पर जोर दिया गया है. 

विधायिका व कार्यपालिका के बीच बेहतर समन्वय लोकतंत्र का नीव – सीएम हेमन्त 

सीएम हेमन्त सोरेन का अपने संबोधन में कहना कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल आत्मा हमारे संविधानिक अंगों के कार्यप्रणाली में निहित है. विधायी व्यवस्थाओं के अंतर्गत जनहित नित नए कानून बनते हैं या कानूनों में संशोधन होते हैं. तमाम परिस्थितियों में ऐसी परिस्थिति में पारित विधेयक अथवा अध्यादेश का अनुपालन जरूरी होता है. जिससे सरकारी अंग अलग दिशा में चलने लगते हैं. ऐसे में जरूरी है कि सरकारी अंगों के बीच संगोष्ठी जैसे कार्यक्रम हो ताकि समन्वय कायम रहे.

विधायिका से जनहित में पारित नियम-कानून व विधेयक को कार्यपालिका व्यवस्था से गुजरना पड़ता है. ऐसे में विधायिका व कार्यपालिका के बीच स्थापित बेहतर समन्वय ही संवैधानिक दायित्व सुदृढ़ तरीके से पूरा करते हैं. जब विधायिका और कार्यपालिका के बीच असंतुलन गहराता है तब जनता व निगरानी संस्थानों के मध्य सवाल खड़े होते हैं. मसलन आवश्यक है सरकार के अंग समन्वय के साथ दायित्व का निर्वहन करें. मसलन, यह तमाम शब्द सीएम हेमन्त जैसे एक आदिवासी व्यक्तिव्य का संविधान के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाता है. 

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