भाजपा सत्ता द्वारा किए जाने वाले प्रतिनिधित्व चुनाव के नंगे नाच को झारखण्ड में आखिरकार हेमंत सत्ता ने चुनौती दी
भाजपा के शासनकाल में संसदीय जनतन्त्र के खोल को उतारे बगैर प्रतिनिधित्व चुनाव का नंगा नाच शुरू किया था, उसे आखिरकार हेमंत सत्ता ने चुनौती दी। आम जनता का तो यह वास्तव में कभी भी प्रतिनिधित्व किया ही नहीं। उनका कार्यशैली साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण के दौर में पूँजीपति वर्ग के प्रति समर्पित चरित्र को ही दर्शाता था।
गिरिडीह के फर्जी मेयर सुनील कुमार पासवान को बरख़ास्त करने की तैयारी शुरू
लेकिन अब झारखंड में हालात बदल चुके हैं। हेमंत सरकार न्यायालय द्वारा फ़र्जी ठहराए गए भाजपा के नगर निकाय के निर्वाचित प्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की है। फ़र्ज़ी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर चुनाव जीतने वाले गिरिडीह मेयर सुनील कुमार पासवान को बरख़ास्त करने की तैयारी कर ली है। नगर विकास विभाग ने सुनील कुमार पासवान को शो-कॉज नोटिस जारी किया है। सात दिनों के उसे अपना पक्ष रखने के लिए कहा गया है। पक्ष नहीं रखने के स्थित में सरकार एकतरफ़ा कार्रवाई करने को बाध्य होगी।
ज्ञात हो कि अप्रैल 2018 में हुए नगर निगम चुनाव में सुनील कुमार पासवान ने अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र के आधार पर आरक्षण का लाभ ले यह चुनाव जीता था। झामुमो के वर्तमान विधायक सुदिव्य कुमार सोनू कार्यकर्ता व बुद्धिजीवियों ने उनके जाति प्रमाण पत्र को संदिग्ध बताते हुए जांच की मांग की थी। जांच के बाद जाति प्रमाण पत्र फ़र्ज़ी पाया गया।तब के तत्कालीन गिरिडीह अंचलाधिकारी ने उनके जाति प्रमाणपत्र को रद्द कर मुफस्सिल थाना में मामला दर्ज कराया था। लेकिन, भाजपा सत्ता के ज़ोर पर असंवैधानिक तरीके से मेयर को संवैधानिक पद पर बनाए रखी।
जबकि राज्य निर्वाचन आयोग ने गिरिडीह मेयर सुनील कुमार पासवान को पद से हटाने की अनुशंसा की थी। आयोग ने कहा था कि पासवान बिहार के रहनेवाले हैं इसलिए वे झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते। अतः उनका निर्वाचन रद्द कर देना चाहिए। गिरिडीह का मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। और नियमों के अनुसार आरक्षण का लाभ केवल राज्य के ही अनुसूचित जाति निवासी को ही इसका लाभ प्राप्त हो सकता है।