चोर मचाये शोर, झारखण्ड में फिर रघुवर के बिगड़े बोल!

 

झारखण्ड के रांची में रविवार को आंधी-तूफ़ान के थमने के उपरान्त रघुवर सरकार जहाँ शहर में 24 घंटे से बिजली उपलब्ध नहीं करा पायी है वहीँ इस प्रदेश के सिल्ली और गोमिया के क्षेत्रों में हो रहे उपचुनावों के प्रचार के क्रम में मुख्यमंत्री रघुवार दास अपने मस्तिष्क और मर्यादा को भूलते हुए अपने संबोधन में झारखण्ड की समस्त विपक्ष को ‘घटिया’ कहने से बाज नहीं आ रहे हैं। वैसे भी रघुवर जी और भाजपा के जुबाँ फिसलने का इतिहास पुराना रहा है। शायद इसी कारण वस जेहन में 2014 के  लोकसभा चुनाव-अजेंडे में मोदीजी के किए वादे-इरादे के दृश्य आँखों के सामने से महज चंद पल के अंतराल में गुजर गए।  प्रस्तुत लेख के माध्यम से आइए समझते है कि जब भी भाजपा सरकार में आती है तो क्यों इनकी विकास-वाहन वादे के गंतव्य दिशा से विपरीत दिशा की राह पकड़ लेती है? संघ की क्रिया कलाप कैसे देश को प्रभावित करने लगते है? और क्यों इनकी उदंडता सर चढ़ कर बोलने लगती है…?

भाजपा के सरकार बनाने से पहले किए गए वादे का क्या हुआ

जब भाजपा विपक्ष में थी तो मोदी सरकार के इर्द-गिर्द कालाधन, लोकपाल, 2जी, आदर्श घोटाला, कॉमनवेल्थ, स्वीसबैंक, विजय माल्या, जालीनोट, रोबर्ट वाड्रा जैसे अजेंडे घूमते थे लेकिन इनकी सरकार बनने के बाद लोकपाल की नियुक्ति आज तक नहीं हुई। रोबर्ट वाड्रा को सरकार एक दिन के लिए भी जेल नहीं भेज पायी। 2जी मामले में तमाम दोषी बरी यहाँ तक कि पूरे मामले को ही गलत मान लिया गया। आदर्श घोटाले में अशोक चौहान निर्दोष साबित। कॉमनवेल्थ के आरोपी कलमाड़ी जेल से बाहर। विजय माल्या 9 हजार करोड़ लेकर विदेश चंपत। नीरव मोदी 11 हजार करोड़ लेकर विदेश फरार। स्वीस बैंक के खाताधारक कौन, और कितने जमा धन है पता नहीं। जाली नोट का सिलसिला जारी है, पिछले साल ही 7,62,072 जाली नोट बरामद हुए।

 

अजेंडे के विपरीत कार्य हुआ

नोटबंदी में कईयों ने अपनी जान गवाई तो देश ने अपनी GDP। जहाँ 1000 के बडे नोट भ्रष्टाचार फैलाते थे वहीँ 2000 के बड़े नोट सदाचार फैलाते हैं। व्यापम घोटाला में कई पत्रकारों ने जान गवाई। जहाँ सृजन घोटाला ने बिहार की शान बढ़ाई तो वहीँ कंबल घोटाला और जेएसएलपीएस की घोटालों ने झारखण्ड की। सरकार के लिए जहाँ एकतरफ शराब बेचना पुण्य का काम हो गया तो दूसरी तरफ गौऊ हत्या पाप हो गया। सम्प्रदायक्ता की आड़ में निर्दोषों की हत्याएं होने लगी। गलत वीडियो के आधार पर विद्यार्थियों को जेल तक जाना पड़ा। पारित बजटों में फेलोशिप राशि में लगातार कटौती होने से कई विद्यार्थियों को आत्महत्या तक करनी पड़ी। झारखण्ड प्रदेश में CNT/SPT एक्ट के नियमों को ताक पर रख लैंड बैंक की स्थापना कर दी ताकि दलित-आदिवासियों की जमीनें आसानी से अधिग्रहण हो सके। जहाँ एक तरफ एक-एक कर लगातार 60 से अधिक दलित-उत्पीड़न की घटनाएं हुई तो वहीँ दूसरी तरफ जनहितों में बने कानूनों को कमजोर या ख़त्म करने का प्रयास भी हुआ। GST जैसे अतिरिक्त बोझ को जनता पर लादा गया। खुद को देशभक्त घोषित कर देश को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने लगे और प्रमाण पत्र भी बांटने लगे। भीड़ की आड़ में कानून की धज्जियाँ उड़ाने की पराकाष्ठा की इन्तेहां तब हुई जब ये अपने जेब में ही गंगोत्री लिए घूमने लगे और गुंडे, माफिया, आरोपियों इत्यादि को भाजपा में सदस्यता ग्रहण करा उनका शुद्दिकरण कर हरिश्चंद बनाने लगे। फेक न्यूज़ का प्रचलन हुआ इत्यादि… ।

इनकी उपलब्धियां

  • फोबर्स की सूची में रिश्वत और भ्रष्टाचार में देश को एशिया में नम्बर वन होने का गौरव हासिल हुआ।
  • पांच साल में बैंकों में 1 लाख करोड़ से ज्यादा, 23 हज़ार घोटाले हुए।
  • नोटबंदी से वापस आने वाले काले धन का देश को पता नहीं चला।
  • काला धन के खिलाफ बनी SIT का एक्शन देश में नहीं दिखा।
  • सरकारी स्कीम से सिर्फ 76 हज़ार करोड़ रूपये मिले।
  • HSBC में 627 खाताधारकों के नामों में से सिर्फ 22 नामों की जानकारी अबतक हुई।

यह तो भाजपा के सरकार में आने के बाद की पूरी कहानी है। अब हम संघ और उसके क्रिया कलाप के साथ सरकार में उसके हस्तक्षेप को समझने का प्रयास करते हैं।

संघवाद क्या है?

हिन्दू, लेकिन सारे हिन्दू नहीं! इनके हिसाब से उच्च जाति के पुरुष हिन्दू। स्त्रियों को हिटलर और मुसोलिनी के समान ही पुरुष का सेवक और स्वस्थ बच्चे पैदा करने के यन्त्र से अधिक और कुछ नहीं माना गया है। दूसरी बात, वे हिन्दू होते हैं जिनके पास समाज के संसाधनों का मालिकाना हक है। मज़दूर वर्ग का काम है कि महान प्राचीन हिन्दू राष्ट्र की उन्नति और प्रगति के लिए बिना सवाल उठाये खटते रहें – 12 घण्टे और कभी-कभी तो 18-20 घण्टे तक। इस पर सवाल खड़े करना या श्रमिक अधिकारों की बात करना राष्ट्र-विरोधी माना जाएगा। हर कोई अपना ‘कर्म’ करे, सवाल नहीं! कर्म आपके जन्म से तय होता है। आप जहाँ जिस घर में, जिस परिवार में जन्मे, आपको वैसा ही कर्म करना है। या फिर जैसा आपके राष्ट्र, धर्म और जाति का नेता आपसे कहे! प्रतिरोध, विरोध और प्रश्न राष्ट्रद्रोह है! श्रद्धा-भाव से कर्म कीजिये! मज़दूरों का यही धर्म है कि वे ‘राष्ट्र प्रगति’ में अपना हाड़-मांस गला डालें! बताने की ज़रूरत नहीं है कि संघ और भाजपा के लिए राष्ट्र का अर्थ है पूँजीपतियों, दुकानदारों, टुटपूँजियों की बिरादरी। जब ये मुनाफाखोर तरक्की करते हैं और मुनाफा कमाते हैं तो ही राष्ट्र तरक्‍की करता है।

 

गलत प्रचार-प्रसार कर जनता को बरगलाना

इनके द्वारा गरीब जनता के दिमाग़ में यह बात भरी जाती है कि उनके हालात के ज़िम्मेदार अल्पसंख्यक हैं जो उनके रोज़गार आदि के अवसर छीन रहे हैं। इन फ़ासीवादी संगठनों के नेताओं के मुँह से अक्सर ऐसी बात सुनने को मिल जाती है – ”17 करोड़ मुसलमान मतलब 17 करोड़ हिन्दू बेरोज़गार।” यह बरबस ही फ्रांस के फ़ासीवादी नेता मेरी लॉ पेन के उस कथन की याद दिलाता है जिसमें उसने कहा था – ”दस लाख प्रवासी मतलब दस लाख फ्रांसीसी बेरोज़गार।” मज़दूरों के बीच सुधार के कार्य करते हुए ये संघी संगठन मज़दूरों की वर्ग चेतना को भोथरा बनाने का काम करते हैं। वे उन्हें हिन्दू मज़दूर के तौर पर संगठित करने की कोशिश करते हैं और इस प्रकार वे आमजनों की वर्ग एकता को तोड़ते हैं। साथ ही, ‘कमेटी’ डालने (सूद पर पैसा देने वाली एक संस्था जिसे संघी संगठन मज़दूरों के पैसे से ही बनाते हैं, जो देखने में आपसी सहकार जैसी लगती है) जैसी गतिविधियों के ज़रिये थोड़ी देर के लिए ही सही, मगर पूँजीपति वर्ग से अन्तरविरोधों को तीख़ा नहीं होने देते। संघ का एक ऐसा ही संगठन है ‘सेवा भारती’। साथ ही संघी ट्रेड यूनियन भारतीय मज़दूर संघ अक्सर मुसोलिनी की तर्ज़ पर औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए ‘कारपोरेटवादी’ समाधान सुझाती है। बजरंग दल एक ऐसा ही आतंकवादी संगठन है जो हर प्रकार के राजनीतिक विरोध को असंवैधानिक रास्ते से सड़क पर झुण्ड हिंसा के ज़रिये निपटाने के लिए संघ द्वारा खड़ा किया गया है। यह समाजवादियों, उदारवादियों, साहित्यकारों समेत मज़दूरों और ट्रेड यूनियन प्रतिरोध को गुण्डों और मवालियों के झुण्ड के हिंस्र हमलों द्वारा शान्त करने में यकीन करता है। यानी, भारत के फ़ासीवादियों ने जर्मन और इतालवी तरीकों का मेल किया है।

संक्षेप में कह सकते हैं कि संघ हमेशा राष्ट्रवाद की ओट में अमीर वर्ग की सेवा करते हैं। राष्ट्र से उनका मतलब अमीर वर्ग और उच्च मध्‍यम वर्ग हैं, बाकी वर्गों की स्थिति अधीनस्थ होती है और उन्हें उच्च राष्ट्र की सेवा करनी होती है; यही उनका कर्तव्य और दायित्व होता है। प्रतिरोध करने वालों को ‘दैहिक और दैविक ताप से पूर्ण मुक्ति’ दे दी जाती है। संघवाद समाज में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए हमेशा ही सड़क पर झुण्डों में की जाने वाली हिंसा का सहारा लेता है। जर्मनी और इटली में भी ऐसा ही हुआ था और भारत में भी संघ ने यही रणनीति अपनायी। संघ के आनुषंगिक संगठन जैसे विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल अक्सर इस तरीके को अपनाते हैं। अब आप ही तुलना कर बताइये क्या संघी रघुवर द्वारा ‘घटिया’ शब्द का इस्तेमाल में लाना ही इनके मानसिकता को दर्शाता है। क्या ये कैमूर के पदचिन्हों पर चलने वाले प्रतीत नहीं होते कि एक ही झूट को 100 बार बोलो सच हो जायेगा। सच ही कहा गया है ‘चोर मचाये शोर’।

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