पाकिस्तान के क़ायदे आज़म, संघियों के फ़ायदे आज़म!

 

सतनारायन पांडे

देश में जब भी बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्‍टाचार जैसे बुनियादी मुद्दे उभरने लगते हैं, भाजपा खुद को बैकफुट पर पाती है और वो कोई छोटा सा बेतुका मुद्दा उठा देते हैं। उसके बाद पूरे देश की राजनीति में हिंदू मुस्लिम की बात होने लगती है। देश की सारी एजेंसिया भी गुड़ में लगे मक्खी की तरह उस बेतुके मुद्दे के इर्द-गिर्द मंडराने लगती है और सारा राष्ट्र बुनयादी मुद्दों को भूल जाती है। वर्तमान में जिन्‍ना विवाद को देख कर इसे बलि भांति समझा जा सकता है। कर्नाटक चुनाव में भ्रष्‍टाचारी रेड्डी बंधुओं के साथ गलबहियां कर रहे संघ परिवार को अब ध्‍यान भटकाने के लिए ऐसे ही मुद्दे की जरूरत थी।

इस घटना के बाद इंटरनेट पर मैसेज फैलाए जा रहे हैं कि तुम मुस्लिम जिन्ना की मूर्ति रखोगे और मदरसों में लादेन की फोटो लगाओगे (वैसे आज तक किसी मदरसे में लादने की फोटो का जिक्र भी नहीं सुना) तो तुम्हारी देशभक्ति पर क्यों शक ना किया जाए ? लोग बिना सोचे समझे इस मैसेज को आगे बढ़ाते रहे और समाज में हिंदू मुस्लिम के बीच की खाई को और ज्यादा बड़ा करते रहे।

पहली बात तो यह है कि जिन्ना धर्म के आधार पर अलग राष्ट्र बनाना चाहता था और इस मामले में जिन्ना और सावरकर के एक जैसे ही विचार थे। जिन मुस्लिमों ने भारत में रहना चुना वो असल में जिन्ना के खिलाफ ही थे क्योंकि जिन्ना का मानना था कि सभी मुस्लिमों को पाकिस्तान में जाना चाहिए। आज भारत में शायद ही कोई मुस्लिम होगा जो जिन्ना को सेलिब्रेट करता हो लेकिन संघ जैसा बड़ा संगठन भारत को धर्म के आधार पर विभाजन करने की सोच रखने वाले सावरकर को न सिर्फ सेलिब्रेट करता है बल्कि संसद में उसकी फोटो भी लगवाता है।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मे स्टूडेंट यूनियन उन सब की फोटो लगाती है जिन्हें स्टूडेंट यूनियन की आजीवन सदस्यता दी जाती है। 1938 में जब जिन्ना की फोटो लगी तो उस वक्त देश के हालात बहुत अलग थे और तब जिन्‍ना भी अलग थे। बाद में देश का विभाजन हुआ और लाखों की लाशों पर दो देश बनें। जाहिर है इस पूरे प्रकरण का बड़ा जिम्मेदार जिन्ना था पर बहुत सारे मुस्लिमों ने जिन्ना की बात ना सुनकर भारत में रहना ही चुना। अब इतने सालों बाद में जिन्ना की फोटो हटाने की बात करना और वह भी उन लोगों द्वारा जो खुद धर्म आधारित राष्ट्र के पक्षधर हैं कुछ अटपटा लगता है जहाँ इनके सावरकर ने 3 मई 1940 को आजाद मुस्लिम सम्मेलन के पाकिस्तान योजना संबंधी निर्णय पर सम्मेलन को बधाइयां देते हैं, ये नौटंकी के अलावा कुछ और नहीं प्रतीत होता।

जिन्‍ना की फोटो के बहाने इन्‍होने वहां हथियारबंद गुण्‍डा गिरोह भेजकर हामिद अंसारी के काफिले पर अटैक करवाया, वहां की स्‍टुडेण्‍ट यूनियन के प्रतिनिधियों पर पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया और उसके बावजूद जब छात्रों ने गुण्‍डों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया तो पुलिस ने बिना कार्रवाई किए उन्‍हें छोड़ दिया। जाहिर है कि इस कार्रवाई का मतलब मुस्लिम आबादी के मन में दहशत पैदा करना है। फासीवाद की पूरी कार्यप्रणाली ऐसी ही होती है। अगर कोई ये सोचता है कि मुद्दा जिन्‍ना है तो वो गलतफहमी में है। मुद्दा कुछ भी हो सकता है। कल को ये गली चलते व्‍यक्ति को रोककर बोल सकते हैं कि आपकी टोपी मुझे अच्‍छी नहीं लगती या फिर आपके घर में घुसकर आपको पीट सकते हैं और बोल सकते हैं कि वहां बीफ मिला भले ही वहां चिकन हो। आईये आपको एक प्रसिद्ध कहानी सुनाता हूँ उसे सुनिए और सोचिये कि भेड़ि‍या क्‍या करना चाहता है। इनको अगर आज मुसलमानों पर दहशत फैलाने की आजादी दी जाएगी तो कल को यह बाकी हिंदू आबादी का भी वही हाल करेंगे जो जर्मनी में हिटलर ने किया था। इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि देश की बड़ी आबादी को अब चेत जाने में ही उनकी भलाई है।

भेड़िया और मेमना

एक बार एक भेड़िया किसी पहाड़ी नदी में एक ऊंचे स्थान पर पानी पी रहा था। अचानक उसकी नजर एक भोले-भाले मेमने पर पड़ी, जो पानी पी रहा था। भेड़िया मेमने को देखकर अति प्रसन्न हुआ और सोचने लगा- ‘वर्षों बीत गए, मैंने किसी मेमने का मांस नहीं खाया। यह तो छोटी उम्र का है। बड़ा मुलायम मांस होगा। आह! मेरे मुंह में तो पानी भी आ रहा है कितना अच्छा होता जो मैं इसे खा पाता।’

और अचानक वह भेड़िया चिल्लाने लगा- ”ओ गंदे जानवर! क्या कर रहे हो? मेरा पीने का पानी गंदा कर रहे हो? यह देखो पानी में कितना कूड़ा-करकट मिला दिया है तुमने?“

मेमना उस विशाल भेड़िये को देखकर सहम गया। भेड़िया बार-बार अपने होंठ चाट रहा था। मेमना डर से कांपने लगा। भेड़िया उससे कुछ गज के फासले पर ही था। फिर भी उसने हिम्मत बटोरी और कहा- ”श्रीमान! आप जहां पानी पी रहे हैं, वह जगह ऊंची है। नदी का पानी नीचे को मेरी ओर बह रहा है। तो श्रीमान जी, ऊपर से बह कर नीचे आते हुए पानी को भला मैं कैसे गंदा कर सकता हूं?“

”खैर, यह बताओ कि एक वर्ष पहले तुमने मुझे गाली क्यों दी थी? “ भेड़िया क्रोध में दांत पीसता हुआ कहने लगा।

”श्रीमान जी! भला ऐसा कैसे हो सकता है?  वर्ष भर पहले तो मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। आपको अवश्य कोई गलतफहमी हुई है। “ मेमना इतना घबरा गया था कि बेचारा बोलने में भी लड़खड़ाने लगा।

भेड़िये ने सोचा मौका अच्छा है तो कहने लगा- ”मूर्ख! तुम एकदम अपने पिता के जैसे हो। ठीक है, अगर तुमने गाली न दी थी तो फिर वह तुम्हारा बाप होगा, जिसने मुझे गाली दी थी। एक ही बात है। फिर भी मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। मैं तुमसे बहस करके अपना भोजन नहीं छोड़ सकता। “यह कहकर भेड़िया छोटे मेमने टूट पड़ा।

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