कंबल घोटाले के दबे राज उजागर कब होंगे…?

 

कंबल घोटाला प्रकरण के मद्देनज़र खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय जी ने सीएम रघुवर दास जी को चिट्ठी लिखकर सलाह दिया था कि मामले की गंभीरता से लेते हुए इसकी जाँच सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी से करायी जानी चाहिए। मंत्री राय के अनुसार इस घोटाला का खेल चारा घोटाले से भी अधिक शातिराना है।

ज्ञात रहे कि झारक्राफ्ट के इस घोटाले की ख़बर ने लगभग राज्य के सभी प्रमुख अखबारों के प्रथम पृष्ठ में मुख्यता से जगह बनायी थी, और इन ख़बरों का आधार नियंत्रक एवं महालेखाकार परीक्षक द्वारा अंकेक्षण के प्रमाणों पर आधारित था। राज्य के विकास आयुक्त ने इस घोटाले की निगरानी जाँच कराने का आदेश करीब दो माह पूर्व सचिव उद्योग एवं खान विभाग सह प्रधान सचिव, मुख्यमंत्री सचिवालय को दिया था परन्तु इस सम्बंध में कोई कार्यवाही अबतक नहीं हुई है । फिर घोटाले के आरोपी झारक्राफ्ट की सीईओ के त्यागपत्र देने और त्यागपत्र देने के बाद उद्योग निदेशक पर गंभीर आरोप लगाने की भी खबरें लगातार अखबारों में प्रमुखता से छपी लेकिन इस बाबत भी कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। और तो और इतना सब होने पर भी दोनों बेरोक-टोक मीडिया के सामने आकर टिपण्णी करने में व्यस्त रहे।

बाद में कंबल घोटाला की जांच के लिए उद्योग विभाग नेगोड्डा, लातेहार, रांची, लोहरदगा, पलामू एवंरामगढ़ सहित सात जाँच टीमों का गठन किया गया। प्रत्येक टीम में एक अध्यक्ष और तीन सदस्य नियुक्त किए गए। महालेखाकार की जांच रिपोर्ट में पाई गई अनियमितता के आलोक में जाँच के निर्देश दिए गए। परन्तु आज तक इस प्रकरण में गठित जाँच टीम कोई भी नया मोड़ नहीं दे सकी है। सरकार न कुछ बोल रही है और ना ही जाँच टीम की रिपोर्ट को सार्वजनिक ही कर रही है। यह भी मालूम नहीं है कि असल में ऐसी कोई टीम ने जाँच की भी है या नहीं।

बहरहाल, इस पूरे घोटाले में या साफ़-साफ़ दिख रहा है कि धागा बेचने और फिनिशिंग करने वाली कंपनियों को इरादतन अधिक फायदा पहुंचाया गया है। कंबल बनाने के लिए सखी मंडलों और बुनकर समितियों को धागा उपलब्ध कराया जाना था। सखी मंडल से जुड़ी महिलाएं और बुनकर समिति से जुड़े लोगों को इन धागों से बुनकर कंबल बनवाना था। कंबल हस्तकरघा से बनाया जाना था। रफ तरीके से कंबल तैयार होने के बाद कंबलों को फिनिशिंग के लिए कंपनी के पास भेजा जाना था जहाँ कंबलों को आखिरी फिनिशिंग दी जानी थी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। धागा कंपनियों से नाम मात्र के धागे खरीदे गए लेकिन भुगतान पूरा कर दिया गया। वहीं नाम मात्र के कंबल फिनिशिंग करने वाली कंपनी तक फिनिशिंग के लिए पहुंचे, पर उन्हें भी भुगतान पूरा कर दिया गया। इस घोटाले के पूरे प्रकरण में सरकार के शीर्ष अफसर आश्चर्यजनक तरीके से चुप हैं। उनकी यह चुप्पी भविष्य में उनके लिए ही गले की फांस बन सकती है। साथ ही उपरोक्त घोटाले से यह भी पता चलता है कि रघुवर सरकार पूरी तरह से भष्टाचार के दलदल में अपना कमल खिला रही हैं।

सवाल है कि, झारक्राफ्ट के सीईओ के पद का सृजन किस परिस्थिति में किया गया? किस प्रक्रिया के तहत एवं किस विशेषता के कारण नियुक्ति हुई? इसे भी जाँच के दायरे में लाया जाना जरूरी है। चूँकि झारक्राफ्ट में ये अनियमितताएं काफी दिनों से चल रही थी इसे नियंत्रक एवं महालेखाकार परीक्षक ने अंकेक्षण में संपुष्ट किया है। आश्चर्य कि बात यह है कि उद्योग सचिव जो मुख्यमंत्री कार्यालय के सचिव भी हैं, उनके ध्यान में ये अनियमितताएं इतने दिन बीत जाने के बाद भी क्यों नहीं आई? क्या किसी ने जानबूझ कर इन जानकारियों को उद्योग सचिव से छिपाया या उद्योग विभाग की ही मिलीभगत से यह खेल चल रहा था? इसका भी खुलासा होना आवश्यक है। इसलिये तथ्यों को देखते हुए सीबीआई जाँच की सहमति दी जा सकती थी? परन्तु सरकार की कार्यप्रणाली इस सम्बंध में संदिग्ध प्रतीत हो रहा।

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