निर्वाचन आयोग क्या झारखंड में चुनावी घोषणा को लेकर निष्पक्ष है?

खबर है कि भारत निर्वाचन आयोग की टीम चुनावी तैयारी की समीक्षा हेतु 3 नवंबर को राँची पहुँचेगी। जबकि आयोग में अब तक कार्यक्रमों की मिनट टू मिनट सूची नहीं भेजा गया है। लेकिन आयोग के दौरे की वजह से अटकलें लग रही है कि झारखंड में चुनाव की घोषणा छठ के बाद संभव हो सकती हैस्वाभाविक भी है, देश की तमाम “सम्मानित संस्थाओं” का हाल है किसी से छुपा नहीं है। चुनाव आयोग पर निगाह डालें तो साफ पता चलता है कि यह संस्थान सत्ता के इशारों पर काम करने को मजबूर हैं। जिस प्रकार हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनाव के बाद ऑडियो-वीडियो वायरल हो रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता  है कि चुनाव आयोग देश का न होकर भाजपा का ही कोई मोर्चा है।

लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के नेता खुले तौर पर चुनावी रैलियों में भारतीय सेना को ‘मोदी की सेना’ बताती रही, लेकिन भारत निर्वाचन आयोग शर्माते-शर्माते केवल ‘चेतावनी’ देकर रह गयी थी। याद होगा आपको ‘नमो टीवी’ नामक एक चैनल साहेब की महिमामण्डन के लिए अचानक रहस्यमय तरीके से प्रकट हो जाता है, फिर भी चुनाव आयोग के द्वारा कोई क़दम नहीं उठाया जाता है, वह भी तब जब कि इस चैनल के लिए न तो कोई पंजीकरण हुआ था और न ही कोई अनुमति ली गयी थी! साहेब के जीवन पर बनी फ़िल्म का धड़ल्ले से प्रचार हो रहा था, लेकिन काफ़ी हंगामे के बाद आयोग ने नमो टीवी और फ़िल्म पर रोक लगाने का आदेश दिया। 

अब भी हरियाणा व महाराष्ट्र चुनाव के दौरान विपक्ष ने भाजपा और संघ परिवार चुनाव की आचार संहिता की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने का विरोध किया, लेकिन भारत निर्वाचन आयोग लगभग शांत रही। ऐसे में कैसे, इस संस्था की तथाकथित निष्पक्षता की सच्चाई पर जनता द्वारा प्रश्नचिन्ह लगाना गलत करार दिया जा सकता है। उधाहरण के तौर पर यह सोचने वाली बात है कि गिरिडीह में मुख्यमंत्री जी के स्वागत के लिए हनी होली, गर्ल्स स्कूल, महिला कॉलेज समेत अन्य कई स्कूलों के बच्चों को कतार में खड़े किये गए थे, लेकिन कार्यवाही केवल कार्मेल स्कूल पर ही की जा रही है। क्या यह सवाल खड़े नहीं करते…

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