रघुबर-सरकार के तिकड़मो से सावधान रहें, झांसे में ना आयें 

रघुबर-सरकार के तिकड़मो से सावधान रहें, पहले समस्या को हल्के से उछालते है, फिर मुद्दे को अपने पक्ष में भुना लेती है

भाजपा सबसे पहले समस्या को हल्के से उछालते है, फिर अपने एक लाख आई टी सेल से उसके खिलाफ माहौल बनाते है, अन्त में वार कर मुद्दे को अपने पक्ष में भुना लेती हैजैसे तीन तलाक हो या राष्ट्रवाद की आड़ में चुनाव जीतना हो अब चूँकि झारखण्ड में चुनाव होने हैं तो जाहिर है कि नये मुद्दे उछाले जायेंगे, जैसे सरकारी कर्मचारी मुफ्त का खाते हैं, कामचोरी करते हैं वगैरह-वगैरह असल में इन्हें सरकारी क्षेत्र को पूरी तरह से खत्म करना है ना रहेगा बाँस ना बजेगी बाँसुरी – न होंगे सरकारी क्षेत्र ना मिलेगी एससी-एसटी-ओबीसी को सरकारी नौकरियाँ। निजीकरण के अंतर्गत नौकरी देने के आड़ में यहाँ के आदिवासी-मूलवासियों की ज़मीनों पर बेरोक टोक हाथ डालेंगे – जो कि जारी भी है।  

अन्य शगूफ़ों की फेहरिस्त में मौजूदा रघुबर-सरकार ने पहले ही केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर देशी-विदेशी पूँजीपतियों को रिझाने के लिए ‘ईज़ ऑफ़ डूइंग’ बिज़नेस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर करते हुए श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर चुकी है। ज्ञात हो कि अगस्त 2017 में लोकसभा में ‘कोड ऑफ़ वेजेज बिल’ प्रस्तुत किया गया। इस विधेयक में मज़दूरों के प्रदर्शन और हड़तालों में भागीदारी होने पर मज़दूरी में कटौती के प्रावधान हैं। यही नहीं मालिकों को काम के घंटों और ओवरटाइम की परिभाषा में फेरबदल करने के भी अधिकार दिये गये हैं। इस विधेयक का एक प्रावधान यह है कि नये नियुक्त मज़दूरों को प्रॉविडेण्ट फ़ण्ड सरकार देगी। ज़ाहिर है कि इस प्रावधान से करदाताओं की जेब काटकर उद्योगपतियों की तिज़ोरी भरने की तैयारी है। 

जबकि उपरोक्त विधेयक की तुलना पहले के श्रम क़ानूनों से करने पर पता चलता है कि श्रमिकों के न्यूनतम वेतन तय करने के सुरक्षा मानकों को कमज़ोर किया जा रहा है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि महिलाओं के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारण प्रक्रिया में भी कोई तय नियम नहीं बनाया गया है। ‘सामाजिक सुरक्षा संहिता’ के माध्यम से सरकार ईपीएफ़ और ईएसआई को मिलाकर एक बड़ी सुरक्षा योजना बनाना चाह रही है। ऐसा करने से एक जगह जमा मज़दूरों के पैसे को सट्टा बाज़ार में आसानी से निवेश किया जा सकेगा। कहा जाये तो सुधार के नाम पर मज़दूरों के अधिकार छिनकर पूँजीपतियों को मुहैया कराये जा रहे हैं। मसलन, अब भी समय है चेत जायें और मौजूदा सरकार को जवाब देने के लिए कमर कस लें।

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