माटी के कई रंग उभारने वाले कुम्हार की झारखण्ड में स्थिति दयनीय 

माटी के रंगों को उभारने वाले कुम्हार की अनदेखी करता भाजपा

बात शुरू करते है माटीकला बोर्ड के अध्यक्ष श्रीचंद प्रजापति, महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेन्द्र महतो के मौजूदगी में भाजपा के बेरमो विधायक योगेश्वर महतो ‘बाटुल’ के दुख भरी व्यथा से – “ कुम्हार जाति सिर्फ बंधुआ वोटर नहीं हैं, उन्हें राजनीति में हिस्सेदारी चाहिए”। बाटुल भाजपा के विधायक होते हुए भी राजनीतिक पार्टियों पर कुम्हार जाति की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए यह बात कही है। झारखंड प्रजापति कुम्हार महासंघ के संरक्षक होते हुए उनका यह कहना, दर्शाता है कि भाजपा द्वारा इस जाति की अनदेखी किये जाने से कितने दुखी हैं। 

झारखंड में माटी के रंगों को उभारने वाले कुम्हारों की जनसंख्या अन्य ओबीसी जातियों की तुलना में अधिक है, लगभग 32 लाख जो कि किसी भी चुनाव के लिए निर्णायक वोटर साबित होते हैं। पाल, भकत, कुम्भकार, बेरा, प्रधान, चौधरी, प्रजापति आदि उपनाम वाले कुम्हार यहां के मूलवासी हैं, इसलिए इस समाज की भाजपा हमेशा अनदेखी करता है। यदि यह सत्य नहीं है तो फिर क्यों भाजपा के ओबीसी का मतलब केवल तेली-साहू या साहूकार समाज ही हो गया है। रिपोर्ट कहती है कि राज्य के कुम्हारों को न राजनीति में हिस्सेदारी मिल रही है और न ही शासकीय योजनाओं का ही कोई लाभ मिल रहा है। 

इनके आर्थिक स्थिति में सुधार के मद्देनजर कई योजनाएं संचालित तो हुई, लेकिन लाभ कुम्हारों को नहीं मिला,  योजनाएं सिर्फ कागजों में सिमटकर रह गई। मिट्टी कला बोर्ड के माध्यम से कुम्हारों को व्यवसाय के लिए सामग्री खरीदने हेतु  एक लाख रुपए लोन दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन अब तक जिले के एक भी कुम्हार को लोन नहीं मिला है। कुम्हारों को मुफ्त दिया जाने वाला इलेक्ट्रानिक चाक तक उन्हें नहीं मिल पाना अनदेखी ही तो दर्शाता है। शासन पर यह आरोप है कि योजना के तहत वैसे स्थानों पर चाक बांटे गए जहां उपयोगिता कम है। जरूरतमंद मांग तो करते हैं लेकिन उन्हें आश्वासन के सिवाए कुछ नहीं मिलता। भाजपा में ओबीसी के नाम पर सभी राजनैतिक भागीदारी केवल साहू को देकर अपनी पीठ थपथपा लेती है, ऐसे में राज्य के कुम्हारों का सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक विकास पर बड़ा प्रशन चिन्ह लग गया है।

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