बीजेपी के लिए ओबीसी का मतलब केवल साहू समाज 

चुनाव के वक़्त बीजेपी के शीर्ष नेतागण अपने भाषणों में बड़ी निर्लज्जता से खुद को ओबीसी कहने से नहीं चूकते वोट बटोरने के कवायद में इन्हें पूरे ओबीसी समाज एक जैसा दिखता है, लेकिन सत्तासीन होते ही ओबीसी से इनका सीधा मतलब केवल साहू समाज से रह जाता है। मोदी जी जैसे बड़े नेता भी यह कहने से नहीं चूकते कि गुजरात में छत्तीसगढ़ के साहू समाज को मोदी कहा जाता है, राजस्थान में राठौर और दक्षिण भारत में वन्नियार जाहिर है कि ऐसा कह के वह केवल साहू समाज की भावनाओं को उभारने का काम करते हैं

सच्चाई तो यह है कि बीजेपी साशित राज्यों में हमेशा ओबीसी के अधिकारों का हनन होता है और तब इन्हें पिछड़े वर्ग की याद नहीं आती। विभिन्न भर्तियों में आरक्षण लागू न करने के मामलों में, सीधे प्रधानमंत्री के अधीन आने वाले डीओपीटी ने प्रतिष्ठित आईएएस परीक्षा में चयनित सैकड़ों विद्यार्थियों की जॉइनिंग जाति प्रमाण पत्र में गड़बड़ियाँ बताकर रोक ली। पिछड़े वर्ग के द्वारा 200 पॉइंट रोस्टर, यूजीसी का वजीफा बढ़ाने, मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व बढ़ाने, केवल सवर्णों को प्रमुख पदों पर नियुक्त करने को लेकर सवाल उठाते रहे, फिर भी इनका चुनावी ओबीसी कभी नहीं जागा

झारखण्ड की कुल जनसँख्या की लगभग 50 प्रतिशत आबादी ओबीसी समाज की है और इनमें से ज्यादातर उप जातियां बीजेपी को वोट करते रही हैं वर्ष 2014 के पहले तक ओबीसी-भाजपा का यह गठजोड़ ठीक-ठाक ढंग से चल भी रहा था, लेकिन स्थिति तब बदली जब राज्य के मुख्यमंत्री साहू समाज के रघुबर दास जी बने साथ ही जिले के उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक अन्य अधिकारी की पोस्टिंग से लेकर तमाम सरकारी कामों के ठेके देने तक हर जगह साहू-तेली व स्वर्ण समाज के लोगों को तरजीह मिलने लगी रघुबर दास जी का यह जाति प्रेम आज राज्य में चर्चा का विषय बना हुआ है दबी जुबान से विपक्षी दलों के साथ-साथ भाजपा के लोग भी इसे झारखण्ड के लिए घातक मान रहे हैं

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