प्लेस ऑफ सेफ्टी का निर्माण वयस्क आरोपी बच्चों के लिए क्यों नहीं हुआ है?

झारखंड के व्यस्क आरोपी बच्चों को प्लेस ऑफ सेफ्टी के जगह रखा जा रहा है रिमांड होम में 

जेल और क़ैदी का नाम सुनते ही अमूमन दिमाग़ में क्रूर ख़ूँख़ार व्यक्तियों की तस्वीरें उभरती है।लेकिन ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क नामक संस्था के मुताबिक पढ़ा था कि देश के जेलों में बंद 80 प्रतिशत कैदी बिना मुक़दमे के ही जेल में जीवन जीने को अभिशप्त हैं, जिन्हें विचाराधीन क़ैदी कहा जाता है। यानी हर पाँच में चार लोग बिना अपराध साबित हुए ही जेलों में बंद है। इन विचाराधीन क़ैदियों की संख्या लाखों में है। संसद में एक सवाल के जवाब में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू भारत के विचाराधीन क़ैदियों की संख्या 2,54,852 (दो लाख चौवन हजार आठ सौ बावन) बताई थी।

लेकिन, अब झारखंड के राँची डुमरदगा रिमांड होम में राँची सहित लातेहार, खूंटी, गुमला व गढ़वा जिले के करीब 30-35 ऐसे आरोपी हैं, जिनकी उम्र 16-18 वर्ष से अधिक है जिन पर रेप व मर्डर समेत कई अन्य गंभीर आरोप हैं। स्थिति यह है कि इनके साथ इसी रिमांड होम में करीब 70 की संख्या में छोटे बच्चे को भी रखा जा रहा हैं और ये वयस्क आरोपी लड़कों को मारपीट व अन्य जुल्म सहना पड़ रहा हैं। मीडिया तक में ख़बर है कि इस रिमांड होम के आरोपी वयस्क छोटे बच्चों को बाथरूम या किसी अन्य जगह पर बंद कर मारते हैं। अक्सर अनहोनी होने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। एक बार हालात इतने बिगड़े कि कुछ बड़े लड़कों को इस रिमांड होम से हटा कर दुमका व हजारीबाग के रिमांड होम में शिफ़्ट कर दिया गया था।

नियमानुसार तो 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के बच्चों को किसी अलग सुरक्षित जगह (प्लेस ऑफ़ सेफ्टी) में रखा जाना चाहिए। जबकि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को यह अधिकार है कि वह गंभीर अपराध वाले 16 से 18 वर्षीय बच्चों को भी प्लेस ऑफ सेफ्टी में भेज सकता है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत ट्रायल के दौरान 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के बच्चों को यहाँ रखा जाता हैं। आरोप सिद्ध होने पर इन्हें जेल के बजाय विशेष गृह में रखा जाता है। अगर ट्रायल के दौरान किसी आरोपी की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो जाये, तो उसे रिमांड होम के बजाय किसी अन्य सुरक्षित जगह पर रखा जाना होता है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (सेक्शन-2 (46) ऑफ जेजे एक्ट) में इसे प्लेस ऑफ सेफ्टी कहा परिभाषित किया गया है, जो पुलिस लॉकअप या जेल नहीं हो सकता। 

लेकिन विडंबना यह है कि झारखंड में कोई प्लेस ऑफ सेफ्टी है ही नहीं। इसलिए वयस्क हो चुके लड़कों को छोटे बच्चों के साथ उसी रिमांड होम में रखा जा रहा है। इससे पहले गंभीर अपराध वाले 16 वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले बच्चों को होटवार जेल में रखा जाता था, लेकिन जेजे एक्ट के अनुसार जेल तो प्लेस ऑफ सेफ्टी नहीं हो सकता। बाद में झारखंड उच्च न्यायालय ने इस पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि 6 से 18 वर्षीय सभी बच्चों को उनके जिले या पास के रिमांड होम शिफ्ट कर दिया जाये। लेकिन बड़े-बड़े वादे करने वाली यह सरकार अब तक प्लेस ऑफ सेफ्टी का निर्माण न करवा पायी, जिससे रिमांड होम में लौटने के बाद या वयस्क बच्चे यहीं रह गये हैं। 

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