गरीब झारखंडी आदिम जनजातीय परिवार से वादाखिलाफी करती सरकार

संविधान की पाँचवीं अनुसूची आदिवासियों को उनकी परंपरागत ज़मीन और जंगलों पर पूरे अधिकार की गारंटी देती है। झारखंड सरकार एक -एक कर 20 भूखे लोगों की मौत के अंबार पर बैठे होने के बावजूद अबतक इस समस्या की ओर आँखें मूंदे हुई है। वैसे मीडिया में बने रहने के लिए प्रदेश के  मुखिया रोज बड़ी-बड़ी बातें करते रहते है, लेकिन लातेहार के महुआडांड़ प्रखंड की अमवाटोली पंचायत के चिरचिरीटांड़ में आदिम जनजातीय बुधनी बृजिया की मौत के बाद उस परिवार को अब तक कोई सरकारी सहायता मुहैया नहीं कराई गयी  है

बुधनी (आदिम जनजातीय) की मौत 2019 साल के पहली जनवरी को आर्थिक तंगी से हो गयी थी, यही नहीं आर्थिक अभाव के लाचारी में उसका शव उसी घर में तकरीबन तीन दिनों तक पड़ा रहा था तब हो हल्ले के बीच बताया गया था कि उसकी मौत भूखजनित रोग व ठंड लगने से हुई है मामला सामने आने के दौरान प्रशासनिक जांच में माना गया था कि मृतक के परिजनों के पास राशनकार्ड, अपना घर या जमीन कुछ भी नहीं है इस मामले की लीपा पोती के लिए आनन-फानन में मृतिका के बहू सनकी बृजिया का पेंशन कार्ड निर्गत कर दिया गया, लेकिन आवंटन के अभाव में वह भी चार महीने से बंद है

बुधनी की मौत की खबर मीडिया में उछलने के बाद सीओ द्वारा 50 किलो चावल व 2000 रुपये दिए जाने के बाद शव का अंतिम संस्कार हो पाया था उस वक़्त सीओ ने आश्वासन दिया था कि बृजिया परिवार को सरकारी सुविधाएँ अतिशीघ्र मुहैया कराई जायेगी लेकिन सरकार की कार्यशैली से ही उसके तत्परता का पता चलता है कि बुधनी की मौत के छः माह उपरान्त भी इस आदिम जनजाति परिवार को किसी प्रकार का कोई लाभ, जैसे राशन कार्ड, प्रधानमंत्री आवास, स्वास्थ्य योजना, उज्ज्वला योजना के अंतर्गत गैस कनेक्शन आदि मुहैया नहीं कराया गया है यह मामला सरकार का आदिवासी-मूलवासी समाज के प्रति उदासीन रवैय्ये को बयान करता है।  

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