शिक्षा-स्वास्थ्य को ले कर मुख्यमंत्री जी का बयान केवल भ्रम! है

स्कूल को बच्चों के ज्ञान का स्त्रोत कहा जाय तो कुछ ग़लत नहीं होगा, क्योंकि बच्चे को सही अक्षर ज्ञान तो स्कूल जाने के बाद ही होता है। स्कूल वही स्थान है, जहाँ बच्चों में सामूहिकता की भावना के अतिरिक्त कला व श्रम संस्कृति का बोध होता है। स्कूल केवल शिक्षा का ही केन्द्र नहीं, बच्चों के मानसिक-शारीरिक विकास की नीव गढ़ने वाला स्थान भी होता है। इसलिए किसी भी देश के सरकार द्वारा स्कूलों की दी जाने वाली अहमियत से पता चलता है कि वह राष्ट्र का भविष्य कितना स्वालंबी व मजबूत होगा। साथ ही उस देश की सुदृढ़ता का आंकलन भी इससे लगाया जा सकता है कि उस देश व राज्य की सरकार शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ जनता को कितना मुहैया करवाती है।

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास एक तरफ तो हज़ारों की तादाद में स्कूलों को बंद कर कर देते हैं और दूसरी तरफ पूँजी ओर से पल्ला झाड़ लेते हैं, और जनता को बरगलाने के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ राजीव कुमार के साथ बैठक कर मीडिया को बयान देते है कि सरकार राज्य के सवा तीन करोड़ लोगों के विकास के अंतर्गत अच्छी स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा और आधारभूत संरचना उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। सुनने में कितना मोहक लगता है लेकिन अंदर की सच्चाई तो बिलकुल जुदा है।

दावा यह भी करते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में झारखंड ने काफी बेहतर किया है और आने वाले समय में और सुधार होगा शिक्षा के क्षेत्र में सरकार राज्य को प्रथम पंक्ति में पहुंचाना चाहती है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कैसे? एक तरफ तो आप स्कूल बंद कर रहे हैं वही दूसरी तरफ विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती करने में भी अक्षम हैं। बच्चों के भविष्य बनाने वाले पारा शिक्षकों की हालात इतनी दयनीय हो गयी है कि वे आत्मदाह तक करने को विवश हैं। झारखंड का जच्चा-बच्चा पूरे देश में सबसे अधिक कुपोषित हैं। इस परिस्थितियों के बीच मुख्यमंत्री जी का शिक्षा-स्वास्थ्य को लेकर बयान देना राज्य में भ्रम फेलाना नहीं है तो और क्या हो सकता है?  

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