2030 तक 12 मिलियन महिलाओं को नौकरी गवानी पड़ सकती है

हमारे देश में काम करने वाली महिलाओं की हालत तो नर्क से भी बदतर है। इनकी दिहाड़ी पुरुष मज़दूरों से भी कम होती है, जबकि सच्चाई यह है कि सबसे कठिन व महीन काम इन्हीं से कराये जाते हैं। बानगी यह है कि सारे कानून बस किताबों में धरे के धरे रह जाते हैं और इन्हें कोई हक़ नहीं मिलता। कई फैक्ट्रियों में तो इन औरतों के लिए अलग शौचालय तक नहीं होते, पालनाघर तो बहुत दूर की बात है।

दमघोंटू माहौल में दस-दस, बारह-बारह घंटे हड्डियाँ गलाने के बावजूद, हर समय इन्हें काम से हटा दिये जाने का डर लगा ही रहता है। साथ ही इन्हें मैनेजरों, सुपरवाइज़रों, फोरमैनों की गन्दी बातों, गन्दी निगाहों और छेड़छाड़ का भी सामना करना पड़ता है। ग़रीबी के हालात में घर में जो नर्क सा माहौल उत्पन्न होता है, उन परिस्थितियों को भी इन्हें ही झेलना पड़ता हैं।

इन्हीं परिस्थितिओं बीच एक सर्वे की जो रिपोर्ट आयी है वह और भयावह है, आंकड़े कहते हैं कि 2030 तक लगभग 12 मिलियन भारतीय महिलाओं को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट के एक नए अध्ययन के अनुसार कम महिला श्रम वाले देश में, रोबोट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और स्वचालन के प्रश्रय दिए जाने के कारण इतनी बड़ी तायदाद में महिलाओं को नौकरी का नुकसान हो सकता हैं।

कृषि, वानिकी, मछली पकड़ने, परिवहन, और भंडारण जैसे क्षेत्र जहाँ स्वचालन का प्रश्रय दिए जाने से भारत की महिला श्रमिकों के लिए यह नुकसान सबसे तीव्र और पीड़ादायक होगा। भविष्य में नौकरी चाहने वालों महिलाओं को खुद ही आगे बढ़ान होगा जिसमे इन्हें माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करना अति आवश्यकता हो जाएगा। जबकि  मैकिन्से के ही अनुसार स्वचालन के दौर के इसी अवधि में भारत में लगभग 44 मिलियन पुरुषों को भी नौकरियों का नुकसान हो सकता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया भर के श्रमिकों के लिए स्वचालन खतरे की घंटी बन गयी है। खास कर वह अर्थव्यवस्था जो विनिर्माण और सेवाओं में मैनुअल श्रम पर अत्यधिक निर्भर करती हैं। ऐसी स्थिति में इनके लिए बच्चे के लालन-पालन से लेकर घर की दवा-इलाज और बच्चों की शिक्षा तक के लिए जद्दो-जहद बढ़ जायेगी।

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