डीजीपी डी.के. पांडेय को रघुवर भजन के फल में मिली 50.9 डिसमिल झारखंडी जमीन

डीजीपी डी.के. पांडेय ने खरीदी न बिक पाने वाली झारखंडी जमीन 

पूँजीपति वर्ग ने पूरा जोर लगा कर मोदीजी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक इसीलिए पहुँचाया कि, आर्थिक मंदी दौर में वह उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को तेज़ी और सख्‍ती से आगे बढ़ायेगा। इसके लिए उन्होंने  श्रम क़ानूनों और कम्पनी क़ानूनों में भारी बदलाव किया व सरकारी संस्थानों का बड़े स्तर पर निजीकरण कर रहा है। उसका दूसरा निशाना इस देश के गरीब किसान व झारखंड जैसे पांचवी अनुसूची क्षेत्र में खनिजों से दबे पड़े ज़मीनों का बड़ी संख्या में बंदर बांट पूँजीपतियों व नौकर शाहों  के बीच हो सके।

मोदी से देशी-विदेशी पूँजीपतियों व नौकरशाहों को बड़ी आशा थी कि वह उनके लिए सस्ते व कम समय में बड़े स्तर पर जनता की ज़मीने उनसे जबरन छीन कर उन्हें मुहैया करायेंगे। मोदीजी अपने राज्य सरकारों की मदद से उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिशों में बड़े शिद्दत से से लगे भी हैं। झारखंड की भाजपा सरकार कहने को तो आदिवासी और गैर मजरुआ जमीन को संरक्षित करने में लगी है, लेकिन आंकड़े चीख कर कह रही है कि दलाल और ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों की सांठगांठ से यहाँ की गैर मजरुआ से लेकर आदिवासी जमीन तक की खरीद-बिक्री बदस्तूर जारी है।

पूर्व डीजीपी डी.के. पांडेय का रघुवर भजन अब तक जनता भूली न होगी, वह बेमतलब नहीं था उन्होंने अपने कार्यकाल में कांके अंचल के चामा मौजा की खाता नंबर 87, प्लाट नंबर 1232 के लगभग 50.9 डिसमिल गैरमजरूआ जमीन अपनी पत्नी पूनम पांडेय के नाम पर खरीदे, जो कि गैरमजरूआ मालिक प्रकृति की ज़मीन है। जबकि झारखंड सरकार ने इस नंबर के खाता और प्लॉट की जमीन को प्रतिबंधित सूची में डाला है, मतलब इस जमीन की खरीद-बिक्री नहीं हो सकती थी। इसके बावजूद डीजीपी के पद पर रहते, पांडेयजी ने न केवल यह जमीन अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी, बल्कि पॉवर का ग़लत इस्तेमाल करते हुए निबंधन से लेकर म्यूटेशन तक करवाया।

बहरहाल, प्रतिबंधित जमीन की खरीद बिक्री में केवल डीजीपी ही नहीं, बल्कि 15 से अधिक अन्य पुलिस अधिकारियों का अपने रिश्तेदारों के नाम जमीन खरीदा जाना भाजपा सरकार के कार्यविधि पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

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