आदिवासी समाज को गुरूजी जैसे सशक्त आवाज की जरूरत क्यों

आदिवासी समाज के संगठनों के अथक प्रयास के बल पर ही अनुसूचित जनजातीय उप योजना टीएसपी कि शुरुआत 1979 को हुई, जिसके अंतर्गत इस समाज के उत्थान के लिए किये जाने वाले आवंटन का अलग पहचान कोड 796 दिया गया। साथ ही इन संगठनों ने जाधव कमीटी के सुझावों को भी लागू करने पर ज़ोर दिया ताकि हर एक मंत्रालय इन योजना के अंतर्गत राशि आवंटित कर सके, ताकि आदिवासी समुदायों से देश के दूसरे समुदाय के बढ़ते दूरी को पाटा जा सके। और सामाजिक न्याय के मद्देनज़र इन तक फायदा सीधे पहुँच सके।

लेकिन, वर्तमान विश्लेषण यह साबित करता है कि मौजूदा केंद्र व झारखंड सरकार का टीएसपी के अंतर्गत आवंटन काफी निराशाजनक रहा। केंद्र की सरकार ने टीएसपी के अंतर्गत बजट का 8.66 प्रतिशत आवंटन करने के बजाय मात्र 5.36 प्रतिशत ही आवंटित किया। ऊपर से इस आवंटित राशि को दूसरे ऐसे योजनाओं के मद में खर्च किये, जिसका अनुसूचित जनजातियों से कोई सीधा जुड़ाव नहीं था। सरकार ने टीएसपी के अंतर्गत आवंटित राशि के मात्र 23-25 प्रतिशत ही इस समुदाय के वास्तविक लाभ एवं विकास के लिए खर्च किये। नतीजतन दलित व आदिवासियों की स्थिति में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं देखा जा सका है।

इस योजना के तहत अनुसूचित जाति के 49.5 फीसदी महिलाओं पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। आंकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2014-15 व 2013-14 के टीएसपी के 2559 करोड़ राशि शेष बची रह गयी। लेकिन इन तथ्यों के बीच दिलचस्प बात यह है कि इस सरकार ने एक तरफ तो टीएसपी के अंतर्गत आवंटित राशि को दूसरे योजनाओं में डाइवर्ट किया तो वहीं बची शेष राशि का भी कोई हिसाब नहीं है। ऐसे में यह भली भांति समझा जा सकता कि गुरूजी आदिवासी व दलित समाज के लिए मसीहा से क्या कम हो सकते हैं -नहीं और आदिवासी व दलित समाज की भलाई भी इसी में होगी कि मौजूदा सत्ता से जितनी जल्दी हो वे दूरी बना लें।  

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