मतदाता दिवस पर विकास मंत्र एवं हिन्दु राष्ट्रवाद का सपना फुस

25 जनवरी मतदाता दिवस

बीते वर्षों में भाजपा ने साबित किया कि राजनीतिक सत्ता ही उनके लिए वंदे मातरम है और इस देश का राजनीतिक सच ही लोकतंत्र हो गया है। यहाँ कुल लोकसभा और राज्यसभा सदस्य 786 हैं और कुल विधायकों की संख्या 4120 है। साथ ही देश के 633 जिला पंचायतों में कुल 15 हजार 581 सदस्य हैं और ढाई लाख ग्राम सभा में करीब 26 लाख सदस्य हैं। मतलब सवा सौ करोड़ के देश को यही  26,20,487 लोग चला रहे हैं। जबकि इससे सौ गुना यानी 36 करोड 22 लाख, 96 हजार लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं। जो उन्हीं गांव, उन्हीं शहरों में रहते हैं। दूसरी सच यह है कि बीपीएल और एपीएल परिवारों के 78 करोड़ लोगों की जिन्दगी दो जून की रोटी की व्यवस्था में कटती है।

आज 25 जनवरी मतदाता दिवस के मौके पर देश का नायाब सच यह भी है कि देश में 80 करोड़ वोटर है। ज्यादातर वोटर युवा हैं और वो भी अधिकांश बेरोजगार। जिनके लिये मौजूदा सरकार 10 से 15 हजार रुपये की नौकरी देने की भी स्थिति में नहीं है। इन स्थितियों में क्या कोई गणतंत्र दिवस के एक सांझ पहले यह कह सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बनना भारत के लिये सबसे महंगा सौदा हो गया। क्योंकि देश चलाने के लिये पहले देश बनाना पड़ता है पर जब देश बनाने का रास्ता भ्रष्टाचार और कालेधन की जमीन पर संसदीय चुनावी लोकतंत्र की परिभाषा गढ़ा जाना हो तो इससे अधिक दुखद और क्या हो सकता है।

बहरहाल, हाल ही में हुए चुनावों एवं उपचुनावों के परिणामों के संकेत से यह समझा जा सकता है कि मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव के फैसले को पलटने की तैयारी कर ली है। या फिर देश की संसदीय राजनीति ऐसे पायदान पर जा खड़ी हुई है जहां आगे बढ़कर पीछे लौटने के अलावे देश की जनता के पास कोई विकल्प शेष नहीं। मतलब मोदी ने विकास मंत्र की धार को भोथरा बना दिया और हिन्दु राष्ट्रवाद का सपना ही फुस हो गया, भागे वोटर तो यही  हकीकत बयान कर रही है।

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