झारखंड कौशल विकास योजना में हुए गड़बड़ी का होगा स्पेशल ओडिट!

झारखण्ड की रघुबर सरकार ने मोदी भक्त के रूप में गाजे-बाजे के साथ कौशल विकास योजना की शुरुआत की थी। झारखण्ड के ग़रीबों-मज़दूरों की अच्छी-ख़ासी तादाद इस योजना की ओर आस की निगाहों से देख रही थी। जनता को भ्रम हो गया था कि इस बार भाजपा सरकार अपने वायदे सचमुच निभाने वाली है। वैसे देखा जाये तो इस बार भाजपा ने जिस अंदाज में  जनता के बीच जुमलों की बरसात की थी, प्रदेश की भोली जनता उसपर यकीन करती चली गयी।

इस योजना के तहत रघुबर सरकार चंद वर्षों में ग़रीबों और निम्न मध्यवर्ग के बेटे-बेटियों को कुशल श्रमिक बना रोज़गार देने वाली थी। चूँकि पहले से ही असंगठित क्षेत्रों में लाखों कामगार काम कर रहे थे, विशेष योजना तहत सरकार द्वारा उन्हें कारख़ानों में ही प्रशिक्षण दिया जाना था। यही इस योजना का असली पेंच था। सवाल यह है कि जब इतने कारख़ाने हैं ही नहीं तब भला इतने बड़े-बड़े दावे क्यों किये जा रहे थे! असल में यह कौशल विकास के नाम पर मज़दूरों को लूटने और पूँजीपतियों को सस्ता श्रम उपलब्ध कराने का हथकण्डा मात्र था।

देश में एपेरेन्टिस एक्ट 1961 नाम का एक क़ानून है जिसके तहत चुनिन्दा उद्योगों में ट्रेनिंग की पहले से ही व्यवस्था मौजूद है। सरकार के अनुसार इस समय देश में मात्र 23800 कारख़ाने ऐसे हैं जो एपेरेन्टिस एक्ट 1961 के अन्तर्गत आते हैं। सरकार की मंशा है कि आगे इन कारख़ानों की संख्या बढ़ा दिया जाये ताकि ज़्यादा से ज़्यादा कारख़ानों को श्रम क़ानूनों और न्यूनतम वेतन क़ानून के दायरे से बाहर किया जा सके।जाहिर है सरकार खुले आम ऐसा नहीं कर सकती इसलिए ट्रेनिंग या कौशल विकास नामक योजना लायी गयी। साथ ही पूंजीपतियों का इतना कल्याण मुफ्त में तो कोई कर नहीं सकता। गड़बड़ियाँ तो निश्चित ही होगी और शायद हुआ भी यही।

बहरहाल, बहुत हो-हल्ले के बाद झारखंड कौशल विकास योजना मिशन के अंतर्गत चल रहे कार्यक्रमों में हुए बेहिसाब खर्चे की जांच रिपोर्ट में पुष्टि होने के बाद इसकी महालेखाकार से स्पेशल ओडिट कराने को नीरा यादव ने पत्र लिखा है। अब आगे देखते है कितना सच बाहर निकल कर आता है।

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