100 दिनों का रोजगार एक फीसदी परिवार तक को न दे पायी सरकार

रघुबर सरकार 100 दिनों का रोजगार एक फीसदी परिवार तक को दे पाने में असमर्थ

मोदी सरकार की ही तरह झारखंड में रघुबर सरकार के कारनामों से आम जनों का मोहभंग हो गया है। जिस कारण राज्य भर के मेहनतकश, छात्र-नौजवान एवं कर्मचारी सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। यही नहीं संघ परिवार द्वारा भी फैलाये जा रहे नफ़रत के ज़हर के ख़ि‍लाफ़ भी बुद्धिजीवियों-लेखकों-कलाकारों से लेकर आम नागरिक तक लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। छात्र-नौजवान इस विरोध में भी अगली कतारों में हैं। भाजपा की रघुबर सरकार का पाखण्डी मुखौटा तार-तार हो जाने से राज्य और देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उसकी थू-थू हो रही है।  इसके बावजूद भी यह सरकार जुमले परोसने से बाज नहीं आ रही।

यह सरकार मनरेगा की 87.56 फीसदी राशि खर्च करने का कितना भी दावा कर ले और बजबरन कहे कि उन्होंने मनरेगा के विभिन्न योजनाओं के तहत 416.22 लाख मानव दिवस सृजन किया है परन्तु यह कोरा झूठ ही होगा। क्योंकि यह योजना झारखंड में अपने मूल्य उद्देश्यों से कोसों दूर है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी क़ानून के तहत निहित ग्रामीण परिवारों को कम से कम 100 दिनों का रोजगार अधिकार को दे पाने में रघुबर सरकार पूरी तरह से फेल है।

23 जनवरी 2019 को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा पारित रिपोर्ट में या साफ़ कहा गया है कि पिछले 10 महीनों में आधे फीसदी जॉब कार्डधारियों तक को यह सरकार 100 दिनों का रोजगार दे पाने में असफल है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि झारखंड के कुल 44.99 लाख जॉब कार्डधारियों में से महज 23.51 लाख ही सक्रीय है। जबकि कहने को तो राज्य में मनरेगा से कामगारों की संख्या 81.12 लाख हैं, जिनमे 30.17 लाख ही सक्रीय है। इनमे से महज 0.394 प्रतिशत यानीं केवल 11895 लोगों को ही 100 दिनों का रोजगार प्राप्त हो पाया है। साथ ही इसका ग्राफ पिछले वित्त वर्षों में लगातार गिरा है।

मसलन, बेरोज़गारी से लड़ने के नाम पर सरकार द्वारा स्किल इण्डिया, स्टार्टअप इण्डिया, वोकेशनल ट्रेनिग जैसी तमाम योजनाओं पर जमकर पैसा लुटाने के बावजूद स्थिति पहले से फिस्स थी। अब रही सही कसर ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट ने पूरी कर दी है, जिसका सामना तमाम वर्गों के बेरोज़गारों को करना पड़ा है। ऐसे में रघुबर जी टूटे बसंती गीत के क्या मायने निकाला जाए…

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