रसोईयों पर CM ने चलवाये पुलिसिया डंडे

प्रतीत होता है कि झारखंड में जनता द्वारा उठाए गये अपने हक़ और मांगों की आवाज को दबाना रघुबर सरकार का पेशा बन गया है। भाजपा राज में केवल पूंजीपति और कॉर्पोरेट वर्ग ही अपनी बात बेबाकी से रख सकते हैं, आम जनता अगर प्रयास भी करती है तो प्रशासन इन्हें कुचलने की कोई कसर नहीं छोड़ता। इसका ज्वलंत उदहारण मंगलवार को देखने को मिला। अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्वक मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने जा रही रसोइयों पर पुलिस ने डंडे बरसाये। इस दबंगई घटना में दर्जनों रसोईयों को गम्भीर चोंटे आई, कुछ गम्भीर चोटिलों को कथित तौर पर रिम्स  में भर्ती कराया गया, बाकी अन्य घायल रसोईयों का इलाज सदर अस्पाताल में चल रहा है।

जानकारी के अनुसार रसोईयों का कहना है कि विभाग से जुड़े अधिकारियों द्वारा हमेशा उनकी मांगों को लेकर आश्वासन ही मिला है इसलिए मुख्यमंत्री के अलावा किसी भी अधिकारी से वार्ता नहीं करेंगे। उनका कहना है की उन्हें प्रतिवर्ष दस माह की जगह पूरे साल का मानदेय दिया जाय, चतुर्थ वर्गीय कर्मी के श्रेणी में शामिल किया जाय तथा सभी रसोईयों का बकाया मानदेय का जल्द भुगतान हो। परन्तु मुख्यमंत्री से वार्ता होनी तो दूर, इनके प्रदर्शन को रोकने के लिए पुरुष पुलिसकर्मियों ने महिला रसोईयों पर जमकर लाठी भांजा। बहरहाल इस घटना के बाद झारखंड प्रदेश के रसोईया-संयोजिका संघ अभी भी अपनी मांगों पर अड़ी है और सरकार के खिलाफ आन्दोलन की घोषणा की है।

ऐसे में यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि भाजपा राज में झारखंड की जनता को सरकार पर सवाल करने या उनके समक्ष अपनी मांगों को रखने का अधिकार नही हैं। यदि आम जनता ऐसा करती है तो उन्हें सरकार के प्रशासन की दबंगई शिकार होना पड़ेगा। भाजपा सरकार का इस तरह संविधान को ताक में रखते हुए आम जनता के मूल अधिकारों का हनन करना इनकी तानाशाही मानसिकता को दर्शाती है।

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