स्थानीय लघु उद्योगों को दरकिनार करती रघुवर सरकार

स्थानीय लघु उद्योगों से दूरी बनाती रघुवर सरकार

सवाल वाकई अबूझ है कि यदि मुख्यमंत्री पद के किसी भी दावेदार को मुख्यमंत्री बना दिया जाये तो वह करेगा क्या? यहां ये सवाल भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जो मौजूदा मुख्यमंत्री हैं उन्होंने ऐसा किया ही क्या है जिससे लगे की उन्हें हटाया न जाए। रघुबर सरकार की विकास और जन-विरोधी नीतियों का एहसास जनता के साथ–साथ अब तमाम संस्थाओं को भी होने लगा है कि झारखंड के विकास की गाड़ी थम गयी है।

दरअसल, सरकार की हमेशा मददगार संस्थाओं में से एक झारखंड लघु उद्योग संगठन ( जेसिया ) जैसे संगठनों को लगने लगा है कि झारखंड से निवेशक भाग रहे हैं। इस बाबत उद्योग विभाग द्वारा आयोजित बैठक को रघुवर सरकार द्वारा अचानक रद्द कर दिए जाने से स्थानीय लघु उद्योगों का संगठन जेसिया  बेहद नाराज है। परन्तु उनकी जायज़ नाराज़गी को प्रदेश की भोंपू मीडिया तरजीह ही नहीं दे रही है। सरकार द्वारा संवादहीनता बनाये रखने के कारण अब प्रदेश की इस महत्वपूर्ण संस्था को थक हारकर सोशल मीडिया जैसे स्रोतों का सहारा लेना पड़ रहा है। सरकार द्वारा स्थापित की गयी यह संवादहीनता प्रदेश और उसके विकास के लिए शुभ संकेत नहीं है। सोशल मीडिया का सहारा लेकर जेसिया ने सीधा निशाना मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के अड़ियल रवैये पर साधा है। जेसिया ने पिछले दिनों एक के बाद एक कई ट्वीट किया जिसमे  #Fail #ElephantDied हैशटैग का उपयोग कर लिखा कि, “मिस्टर रघुवर दास इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि झारखंड से निवेशक भाग रहे हैं।”

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा कि “सचिव द्वारा बुलायी गयी बैठक में कई तरह की परेशानियों के बावजूद संगठन के लोग वहां पहुंचे। कुछ देर इंतजार करने के बाद उन्हें बताया गया कि आज की बैठक रद्द कर दी गयी है। बैठक रद्द होने की सूचना उन्हें समय रहते दे देनी चाहिए थी। समय की बर्बादी और परेशानी के लिए किसी ने माफी मांगना तो दूर, अफसोस तक जाहिर नहीं किया।“

इस प्रकार की कड़ी निंदा साफ़ दर्शाता है कि उद्योग वर्ग रघुबर सरकार की विकास विरोधी नीतियों से ख़ासा नाराज़ है।

अलबत्ता, झारखण्ड के मुख्यमंत्री के उड़ते हाथी या उड़ते झारखंड में यहाँ के स्थानीय उद्योग ( स्थानीय लघु उद्योगों ) या घराने शामिल नहीं हैं। वैसे भी सरकार की कार्य प्रणाली से लगता है कि इस सरकार को स्थानीय लोग पसंद नहीं है। तभी तो झारखण्ड के लघु उद्योगों की समस्या हल किए बिना यह सरकार बड़े एवं बाहरी उद्योगपतियों को लाने में ज्यादा विश्वास दिखा रही है। दिखाए भी क्यों ना, उन बड़े पूंजीपतियों की तुलना में झारखण्डी लघु उद्योग घराने चुनावी फण्ड ना के बराबर उपलब्ध करा पाते है।

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