झारखण्ड खबर में प्रकाशित रिपोर्ट का हुआ असर

 

विकास मंत्री ने जेएसएलपीएस की नियुक्तियों पर दिए जाँच के आदेश

देश के जिस भी राज्य में भाजपा की सरकार है वहाँ के मंत्रियों ने भी बिलकुल झारखण्ड के ही तर्ज पर दमन और शोषण की जो लकीरें खिंची है लगता है वह जनता को रास नहीं आ रही है। शायद इसी कारण वस जनता समय समय पर अपनी प्रतिक्रिया विचित्र ढंग से देती रहती है। उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार झारखण्ड के जमशेदपुर में मुख्यमंत्री रघुवर दास का जूतों से स्वागत हुआ था ठीक उसी प्रकार गुरुवार 17 मई को हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री खट्टर का भी स्याही फैक लोगों ने स्वागत किया। खट्टर ने रुमाल से अपने चहरे की कालिख तो पोंछ ली लेकिन इनके करतूतों से देश की साख पर जो कालिख लगी है वह कैसे साफ़ होगी? लगता है पिछले दिनों झारखण्ड की ज़मीन पर जो घोटालों की बीहीन रोपी गई थी वह अब अंकुरित होकर कभी कम्बल घोटाला रूप में तो कभी फलाना घोटाला के रूप में एक एक कर बाहर आने लगी है। इसी फेहरिस्त में झारखण्ड खबर ने चंद दिनों पहले जेएसएलपीएस की शंकाभरी कार्यप्रणाली पर कुछ जायज सवाल उठाए थे जिसका झारखण्ड की जनता पर होते असर को देखते हुए घबराई सरकार ने आनन-फानन में जाँच के आदेश दिए हैं।

आईये जाँच के अंतर्गत होने वाले बिन्दुयों पर एक नजर डालते हैं

  1. कार्मिक विभाग के संकल्पानुसार तृतीय और चतुर्थ स्तरीय पदों में साक्षात्कार की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी है जबकि फिल्ड थीमेटिक एवं एफटीसी पदों के चयन में इसका उलंग्घन हुआ है और वीडियोग्राफी भी नहीं करायी गयी है।
  2. एक ही अधिकारी कैसे लम्बे समय तक मुख्य कार्यपालक पदादिकारी के रूप में कार्यरत रह सकते हैं जबकि इन पदों पर कार्यरत पदाधिकारी का तबादला तीन सालों में हो जाना चाहिए।
  3. वर्तमान में कार्यरत कमुनिटी कोडीनेटरों की नियुक्तियों में जिला रोस्टर का अनुपालन नहीं किया गया।
  4. वर्ष 2017 में बीपीएम के कुल 96 रिक्ति पदों के लिए जो दो विज्ञापन निकाले गए थे उनमें एससी, एसटी और ओबीसी की एक भी नियुक्ति नहीं हुई और उम्र सीमा का भी स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया था।
  5. कोटिवार न्यूनतम अहर्तांक सामान्य- 40 प्रतिशत, बीसी 2 – 36.5 प्रतिशत, बीसी 4 – 34 प्रतिशत एवं एसएससी- 32 प्रतिशत लागू है जबकि जेएसएलपीएस द्वारा की गयी सभी नियुक्तियों में न्यूनतम अहर्तांक 40 प्रतिशत ही रखा गया जो सरकारी आदेशों की धज्जियाँ उड़ाती है।
  6. सरकार ने जेपीएससी जैसी कठिन परीक्षा में न्यूनतम अहर्तांक की अहर्ता सिर्फ लिखित परीक्षा में राखी है जबकि जेएसएलपीएस ने लिखित और साक्षात्कार दोनों में रखी, इसके अलावे मेघा अंक का भी प्रकाशन नहीं किया गया जो भी हुआ अंदर ही अंदर हुआ।

सत्ता के नशे में चूर ये व्यापारी गिरोह वाली सरकार उस बुनियादी शर्म-ओ-हया को भूल गया है, जिसका पालन राजनीतिज्ञ भी आम तौर पर किया करते हैं; यानी भ्रष्टाचार करते हैं, तो थोड़ी पर्देदारी रखते  हैं! मगर बहुत दिनों से सत्ता में आने का इन्तज़ार कर रहे भाजपाई जब सत्ता में आये तो उनके सब्र का प्याला एकदम से छलक गया और अब कमाई करने और अपनी सात पुश्तों की ज़िन्दगी सुरक्षित कर देने की अन्धी हवस में ये एकदम आपा खो बैठे हैं!

 

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