वनभूमि को नज़रअंदाज़ कर केंद्र का खनिजों का दोहन संभव बनाने की तैयारी

वनभूमि को नज़रअंदाज़ कर केंद्र का खनिजों का दोहन संभव बनाने की तैयारी केंद्र सरकार की नयी नीति के तहत अब पर्यावरण एनओसी लेने से पहले ही कोयला व दूसरे खनिजों की माइनिंग शुरू हो सकती है।

अभी देश में किसी भी प्रकार इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे औद्योगिक अथवा खनन परियोजना को शुरू करने के लिए सरकारी या प्राइवेट एजेंसियों को पर्यावरण प्रभाव आकलन की रिपोर्ट सौंपनी होती है। जिससे पर्यावरण या वन क्षेत्र में होने वाले संभावित नुकसान या उसकी भरपाई के तरीकों की रिपोर्ट तैयार की जाती है।

लेकिन, कमर्शियल माइनिंग जैसे विवादास्पद फैसले के बाद मोदी सरकार इससे संबंधित एक और नया फैसला अचंभित करने वाली है। केंद्र सरकार की नयी नीति के तहत अब पर्यावरण एनओसी लेने से पहले ही कोयला व दूसरे खनिजों की माइनिंग शुरू हो सकती है। जिसका अर्थ है वनभूमि को नज़रअंदाज़ कर अब खनिजों के बेहिसाब दोहन को अंजाम और आसानी दिया जा सकेगा। 

ऐसे में अब थर्मल पावर प्लांट और हवाई पट्टी के निर्माण शुरू करने से पहले पर्यावरण सम्बन्धी एनओसी लेने की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी। भारत सरकार के पर्यावरण प्रभाव आकलन के नए मसौदे में इसका प्रावधान किया गया है। केंद्र की ओर से इसे झारखंड सरकार के पास भेजा गया है।

केंद्र द्वारा भेजे नए पर्यावरण मसौदे का संताली भाषा में अनुवाद 

झारखंड सरकार का राजभाषा निदेशालय केंद्र द्वारा भेजे नए पर्यावरण मसौदे का संताली भाषा में अनुवाद कर रहा है। राज्य सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग की ओर से इस ड्राफ्ट का अध्ययन किया जा रहा है। इसके आपत्तिजनक प्रावधानों के बारे में झारखंड का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केंद्र सरकार को संशोधन का सुझाव भेजने की तैयारी कर रहा है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन के नए मसौदे में 40 प्रकार की परियोजनाओं को पर्यावरण एनओसी लेने की अनिवार्यता से बाहर रखा गया है। जिसमे प्रतिदिन 10 हजार लीटर तक देसी दारू के उत्पादन वाले संयंत्र, क्रशर प्लांट से लेकर खनन कार्य तक के संयंत्र शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस ड्राफ्ट को अमल में लाया जाता है तो झारखंड में बड़े पैमाने पर पर्यावरण विनाश की पृष्ठभूमि तैयार हो जाएगी। 

मसलन, अब क्रशर प्लांट जैसे संयंत्र पर्यावरण नियमों के उल्लंघन करने के बाद भी अपनी मीलों चालू रख सकेगी। और पर्यावरण का विनाश कर चुकी परियोजनाओं को पेनाल्टी लेकर हरी झंडी दे दी जाएगी। पर्यावरण प्रभाव आकलन के नए प्रावधानों का मसौदा निश्चित ही झारखंड के वनभूमि लिए महाविनाशकारी साबित होगा। ना जाने मोदी सत्ता का जनता के हित व पर्यावरण को कुचल कर पूँजीपतियों का हित साधने वाली रथ के पहिये कब थामेंगे।   

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