झारखण्ड: शांति-समृद्धि, अधिकार संरक्षण के मद्देनजर राज्य के आदिवासी समेत सभी वर्गों की केवल एक ही पुकार है. राज्य में बतौर सीएम उन्हें केवल हेमन्त की दरकार है.
रांची : जैसे किसान वर्ग गेहूँ, धान, सब्जी आदि की खेती करता है, वैसे ही सामन्ती वर्ग झूठ, धूर्तता आदि की खेती करता है और वह उन्हें ही रोपते, खाद-पानी देते बड़ा करता है. इसी धंधे में वह जीता है, साँस लेता है और फिर मरता है. उनकी इस परम्परा को उनकी पीढियां आगे बढ़ाता है. नतीजतन, श्रमण अर्थात आदिवासी, दलित, पिछड़ा व गरीब जैसे श्रमिक वर्ग न केवल मूल-भूत सुविधा तक से वंचित किये जाते हैं. उनके जल, जंगल, ज़मीन व संवैधानिक अधिकारों पर हमले अक्स के रूप में दिखते हैं.
चूँकि झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन एक आन्दोलाकारी बीज है, आदिवासी हैं. इसलिए उन्होंने इन तमाम त्रादियों को न केवल देखा है, झेला भी है. घांठ-लापस, मडुआ के स्वाद से परिचत हैं. शायद यही वह वजहें हैं कि उनकी शासन व्यवस्था में गरीबी, दलित, आदिवासी व पिछड़ों के दर्द को प्राथमिकता मिली है. और उनकी सरकार में सरना धर्म कोड़, आरक्षण बढ़ोतरी, शिक्षा, चिकत्सा, महिला उत्थान में न केवल मजबूत पहलें हुई है, धरातल पर उतारने में प्रयासरत दिखे हैं.
झारखण्ड की जनता को हो चला है केंद्र की शाजिश का समझ
नेक नियत के अक्स में उनका यह ईमानदार प्रयास छवि के रूप में झारखंडी जनता के मन-मस्तिस्क में सुखद अनुभव लिए उतर चली है. तभी तो झारखण्ड आदिवासी महोत्सव -2023 में बिरसा स्मृति उद्यान में पहुंचे आदिवासी हों या अन्य वर्ग की जनता, सभी का मन खुश और पाँव लेय में थिरकते दिखे. किसी भी पत्रकार ने जब उनसे हेमन्त सोरेन के बारे में पूछा, तो वह एक स्वर में न केवल बोल उठे कि उन्हें आगे भी सीएम के रूप में हेमन्त चाहिए. वह केंद्र की शाजिश को भी समझ रहे हैं.
मसलन, तमाम परिस्थियों मद्देनजर बुद्धिजीवियों के द्वारा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सीएम हेमन्त का सभी वर्ग के लिए शान्ति, समृद्धि से ओत-प्रोत हितकारी, नीतियां संदेश बन राज्य के आम जन तक पहुँच चुकी है. और जनता सीएम के जन समर्थित नीतियों को सराह भी रहे हैं. यही सत्य है सामन्ती वर्ग को डरा रहा है. जिसके अक्स वह शान्ति और विकास के पक्षधर सीएम को बदनाम करने में तमाम शक्तियां झोक दी है. मगर मस्त-मलंग सीएम जन-पथ पर आगे ही बढ़ रहे है.