आदिवासी महोत्सव : आदिवासी सीएम के दर्शन में आदिवासी चिंतन

झारखण्ड आदिवासी महोत्सव : बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान, आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन ने देश भर के आदिवासी समुदायों किया जोहार. उनके व्यक्तित्व में दिखी आदिवासी संरक्षण का स्पष्ट चिंतन.

रांची : बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान, दिशोम गुरु शिबू सोरेन और सीएम हेमन्त सोरेन, बतौर मुख्य अतिथि झारखण्ड आदिवासी महोत्सव -2023 का भव्य शुभारंभ. दिशोम गुरु के वचन – महोत्सव आदिवासी समुदाय की एकजुटता, भाईचारा और शिक्षा को दर्शाता है, के भाव त्रासदी के दौर में सीएम हेमन्त सोरेन आदिवासियों के विभिन्न समुदायों का एक होने का सुझाव सामन्ती परिवेश में उसके अस्तित्व संरक्षण की राह दिखाए. तो क्यों नहीं कहा जा सकता कि झारखंडी सीएम हेमन्त सोरेन का दर्शन आदिवासी उत्थान में एक मात्र सशक्त विकल्प है. 

आदिवासी महोत्सव : आदिवासी सीएम के दर्शन में आदिवासी चिंतन

विश्व ख्याति प्राप्त भाषा वैज्ञानक डॉ राजेन्द्र प्रसाद सिंह कहे कि ‘आर्य आए द्रविड़ों के देश में, इसलिए आर्य हुए गैर द्रविड़ न कि द्रविड़ हुए अनार्य. अंग्रेज आए भारत तो अंग्रेज हुए अभारतीय न कि भारतीय हुए गैर अंग्रेज. जैसे स्पष्ट थेर सोच अक्स में झारखण्ड आदिवासी महोत्सव आदिवासी जीवन-दर्शन, प्राचीन संस्कृति-इतिहास के खोज में विभिन्न आदिवासी समूहों की विशिष्ट पहचान में परस्पर संवाद की शुरुआत हो. तो निश्चित रूप से सीएम हेमन्त का दर्शन आदिवासी उत्थान के लिए प्रेरक है. और यही रास्ता आगे चल कर दलित-ओबीसी को अपने इतिहास के प्रति जागरूक कर सकता है.

सीएम हेमन्त के सुझाव से सहमत विभिन्न राज्यों के आदिवासी समूह

सीएम हेमन्त के वक्तव्य में उभरे कि आदिवासी समाज नृत्य, संगीत, संघर्ष व श्रमण संकृति का पहचान लिए हो. बिना झिझक कहे कि मौजूदा राजनीतिक चलन में देश का विभिन्न क्षेत्र आदिवासी प्रताड़ना की छाप लिए है. अस्तित्व के लिए संघर्ष को मजबूर हैं. क्या मध्य प्रदेश, क्या मणिपुर, क्या राजस्थान, क्या छत्तीसगढ़, क्या गुजरात, क्या तमिलनाडु? हजारों घरों का जलाना, सैकड़ों को मारा जाना, महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ होना सदियों के संघर्ष की जुड़ी कहानी कहे. 

जिसके अक्स में भारत देश का 13 करोड़ से अधिक आदिवासी के विभिन्न समुदाय गोंड, मुंडा, भील, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उराँव, चेरो, विस्थापन का दर्द, भेदभाव, पक्षपात, भाषा-पहचान छिनने, बंधुआ मजदूरी जिसी दुर्दशा का सच लिए हो. और मौजूदा दौर में भी आदिवासी जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बंटे हुए हो. जबकि उनकी संस्कृति एक हो, खून एक हो, लक्ष्य और संघर्ष एक हो, तो विभिन्न आदिवासी समाज को भी एक हो जाना ही चाहिए.

वर्चस्ववादी सामन्ती ताकतों और समानता तथा भाईचारे की ताकतों के बीच, धार्मिक कट्टरपंथियों और ‘जियो और जीने दो’ की उदार ताकतों के बीच. भविष्यवादी, भाग्यवादी चिंतकों और वर्तमान को समृद्ध करने वाली शक्तियों के बीच वर्तमान में भी संघर्ष जारी हो. प्रकृति पर कब्जा करने वाली विनाशकारी शक्तियों एवं धरती आबा बिरसा के संतानों जैसे प्रकृति का सहयोगियों, श्रमजीवियों के बीच संघर्ष जारी हो. तो अस्तित्व संरक्षण के लिए एकजुटता जरुरी ही नहीं नितांत आवश्यक है.

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