मणिपुर हिंसा : फ़ासी सत्ता के नफ़रती प्रयोग का एक वीभत्स रूप

मणिपुर – 20 अप्रेल गृह मंत्री का दावा -मोदी काल में देश के पूर्वोत्तर राज्यों में शान्ति व समृद्धि, चौतरफा विकास. 3 मई, मणिपुर हिंसा ने देश में सामन्तवाद के नफरती प्रयोग के असल तस्वीर पेश दी है.

रांची : बिना आरक्षण कोटा बढ़ाए झारखण्ड के आदिवासी वर्ग में अन्य जाति को शामिल करने का भरसक सामन्ती प्रयास हुआ. लेकिन, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की सूझ-बुझ के अक्स में सामन्तवाद के तमाम नफरती मंसूबे विफल हुए. आरएसएस के भ्रामिक एजेंडों का पर्दाफास हुआ. और शान्ति के अक्स में झारखण्ड न केवल मणिपुर की भांति जलने से बचा, विकास के द्योतक शिक्षा, नियुक्ति, चिकित्सा, रोजगार जैसे कई मूल भूत क्षेत्रों में ठोस कदम बढाने में सफल हुआ. 

मणिपुर हिंसा : फ़ासी सत्ता के नफ़रती प्रयोग का एक वीभत्स रूप

मणिपुर आग के कोहरे में चीनी घुसपैठ के सच को छिपाने का फ़ासी प्रयास

वहीं सामन्ती सत्ता के अक्स में देश का पूर्वोत्तर राज्य विधायक ख़रीद-फरोक्त जैसे फ़ासी दुःसाहस के आसरे दुनिया के सबसे लोकतंत्र के संवैधानिक अक्षरों को मिटाने के कुप्रयास का गवाह बना. तो मणिपुर जैसा राज्य सामन्तवाद के नफरती प्रयोग का प्रयोगशाला के सच के रूप में सामने है. बिना शक कहा जा सकता है कि आरएसएस-बीजेपी का यह प्रयोग मणिपुर को फूट के आग में शाजिशन जला जा रहा है ताकि उसके कोहरे में संसदन लूट के साथ चीनी घुसपैठ के सच भी छुपाया जा सके.

मणिपुर सुनियोजित हिंसा में अबतक 98 मौतें हो चुकी है, क़रीब 310 लोगों की घायल होने की खबर सामने है. लगभग 37000 से लोग विस्थापित हो चुके हैं और 272 राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं. हिंसा शुरू हुए महीना बीत चुका है, लेकिन, केंद्र सरकार के अमानवीय रवैये के सच तले स्थिति सामान्य होता प्रतीत नहीं हो रहा है. स्थिति का अन्दाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि वहाँ इण्टरनेट सेवा तक बाधित है और विपक्षीय नेताओं भी वहां जाने से रोकने का प्रयास हो रहा है. 

मणिपुर जनजतियों को जल, जंगल, ज़मीन से बेदखल करने का सामन्ती सच

मणिपुर में घाटी और पहाड़ी के समुदायों के बीच मतभेद का पुराना इतिहास रहा है. मैतेई 53% हैं और आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से प्रभुत्वशाली समुदाय है. जबकि नगा और कुकी की आबादी कुल आबादी 40% है. कॉलेजियम के अक्स में मणिपुर उच्च न्यायालय का एक फैसला, जिसमें राज्य सरकार को एक महीने में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी देने के लिए केन्द्र सरकार को सुझाव भेजने का आदेश दिया गया था. से प्रदेश में हिंसा भड़क उठी है.

ज्ञात हो, आरएसएस व भाजपा के नफ़रती फ़ासिस्ट प्रयोग में चहेते पूँजीपतियों के विकास के अक्स में देश के क्षेत्रीय, बहुजनों व गरीबों के बीच असन्तुलन बढ़ा दिया है. जिसके अक्स में मणिपुर में जनजतियों को जल, जंगल, ज़मीन, व संसाधनों पर क़ब्ज़ा कर बेदखल करने का सामन्ती सच है. मणिपुर सीएम एन. बीरेन सिंह का खुलकर मैतेयी का पक्ष लेना और हिंसा के लिए कुकी मिलिटेंसी को ज़िम्मेदार ठहराना सामन्ती पक्ष को स्पष्ट कर सकती है.

मसलन, सामन्ती राजनीति व एजेंडों ने मणिपुर को तितर-बीतर करने में अहम भूमिका अदा की है. और हालात को ऐसे नाजुक मोड़ पर पहुंचाया है. ऐसे में झारखण्ड सरकार के द्वारा झारखण्ड में तमाम फ़ासी एजेंडों को दरकिनार करने में उठाये गए कदम राहत के दिशा में एक हल हो सकता है. यदि देश अब भी सामन्ती या फ़ासीवाद के भ्रम से तत्काल बाहर नहीं निकल पाया तो मणिपुर की भांति जलने, मरने और अपने वासस्थान से बेदखल होने को तैयार रह सकते हैं. 

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