हूल दिवस : सीएम समेत नई पीढ़ी तक ने महानायकों को किया याद 

हूल दिवस : भारतीय सामन्ती इतिहास के पन्नों में बिसरे ईस्ट इण्डिया कंपनी के खिलाफ देश का पहला विद्रोह, 1855 के महानायकों को सीएम हेमन्त समेत नई पीढ़ियों का श्रद्धांजलि अर्पण सुखद.

रांची : मानवीय पक्ष-विपक्ष में, समय के दामन में घटित हर घटना चेतन-अचेतन स्मृतियों में, मिट्टी में, में व यूनिवर्स में कहीं न कहीं अपनी अमरता दर्ज कर ही जाता है. फिर सामन्ती या फ़ासी विचार या कोई अन्य अमानवीय विचार लाख छिपाने-मिटाने का प्रयास क्यों ना करे, वह सत्य सतह पर आ ही जाता है और अपनी प्रासंगिकता का बोध करा देता है. 30 जून 1855, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के खिलाफ झारखण्ड के महानायकों का पहला हूल क्रान्ति इसी सत्य का हिस्सा है. 

हूल दिवस : सीएम समेत नई पीढ़ी तक ने महानायकों को किया याद 

भारतीय सामन्ती इतिहास के पन्नों में बिसरे ईस्ट इण्डिया कंपनी के खिलाफ 30 जून 1855, देश के पहले हूल विद्रोह के नायकों को सीएम हेमन्त सोरेन, झारखंडी जन मानस समेत नई पीढ़ियों के द्वारा भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पण किया जाना, मिट्टी में सूखे अमर शहीदों के लहू, लोकगीतों में छिपे दर्द व सिसकियों को न्याय देने का सच लिए है. और झारखंडी पाठ्यक्रम में झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार का हूल दिवस को शामिल करने की फ़रियाद सामंती भूल को सुधारने का प्रयास है.

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा झारखंडी विचार व सम्मान संरक्षण में अडिग खड़ा 

सीएम हेमन्त सोरेन व झारखण्ड मुक्ति मोर्चा हमेशा से ही झारखंडी सम्मान व मूल विचारधारा के संरक्षण में अडिग रहा है. इस विचारधारा की नीव दिशोम गुरु शिबू सोरेन, स्वर्गीय विनोद बिहारी माहतो, निर्मल महतों सरीखे मह्पुरुसों ने रखी  है. झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की विचारधारा की खासियत दिखी है कि वह न तो जन पक्ष से पृथक होता है और ना ही झारखंडी गरीब जनता का हाथ छोड़ता है. साथ ही, सामन्ती विचारधारा से जन रक्षा के लिए झारखण्ड को अपडेट भी करता है.

वर्तमान में झारखण्ड में यह तमाम सच सीएम हेमन्त का झुझारू कार्यकाल में देखा जा सकता है. एक तरफ वह सामन्तवाद के तमाम हथकंडों का मुंहतोड़ जवाब देते देखे जा रहे हैं तो दूसरी ओर न केवल राज्य के सभी मूल वर्गों के सांस्कृतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक व सामाजिक अधिकार संरक्षित कर रहे हैं, राज्य को शिक्षा, चिकित्सा, नियुक्ति, नारी सम्मान जैसे हर महत्वपूर्ण मोर्चे पर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं. जिसे विपक्ष के बयानों में महसूस भी किया जा सकता है.

सामन्ती प्रताड़ना में भी सीएम ने न अपने कार्यकर्ता-जनता को छोड़ा, ना ही विचारधार 

झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन ने तमाम सामंती प्रोपगेड़े व धमकी के बीच भी न अपने नेता, कार्यकर्ता व गरीब जनता का साथ छोड़ा और ना ही झामुमो की मानवीय विचारधारा को. बल्कि राजनीति से परे झामुमो कार्यकर्ताओं के उपर गरीब जनता को तरजीह है. क्योंकि वह मानते हैं कि झारखण्ड की गरीब जनता का विकास होगा तो झामुमो के कार्यकर्ताओं का विकास स्वतः ही होगा. और झारखंडी जनता अपने सिपाहियों का ख्याल रखना जानती है.

क्या इसी सच एक रूप झारखण्ड का हूल दिवस नहीं है? सामन्ती भेद-भाव के बीच भी झारखण्ड के महानायकों को याद किया गया. और सीएम की उपस्थित सांसद विजय हांसदा, पूर्व मंत्री हेमलाल मुर्मु के साथ झारखण्ड के अंतिम छोर, अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू की पवित्र भूमि संताल में रही. जहाँ उन्होंने गरीब जनता को 16434. 841 लाख रुपए की 616 योजनायें समर्पित किए. योजनाओं की जानकारी स्वयं जनता को दी और कार्यकर्ताओं को जन पक्ष में संघर्षरत रहने की अपील की.

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