केंद्र ने फिर दिखायी दोहरा नीति, पहले डीवीसी कटौती अब 3850 करोड़ कम अनुदान

जीएसटी का करीब 2,500 करोड़ और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों पर 45,000 करोड़ रुपये का है बकाया और अब 3850 करोड़ कम अनुदान दोहरी नीति नहीं तो क्या?

केंद्रीय करों में राज्यों के हिस्सेदारी मद में 2020-21 में मिले थे 25900 करोड़, 2021-22 में 22050 करोड़ मिंलने का अनुमान 

रांची। सहकारी संघवाद देश का वह मजबूत कड़ी होता है जहाँ केंद्र व राज्य आपस में सहयोगात्मक संबंध स्थापित कर देश के समस्याओं का हल निकालते हैं। केन्द्र और राज्य के बीच टकराव की परिस्थिति हमेशा देश के विकास में बाधक होती है। देश की अखंडता कमजोर होती है। यदि बीजेपी व उनके प्रदेश नेता मोदी सरकार में सहकारी और प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद को बरकरार रखने का दंभ भरे, देश के विकास की असली कुंजी बताए, वहां यह सत्य उभरे कि उनकी मानसिकता केवल भाजपा शासित राज्यों तक ही सीमित है। तो कैसे देश मान ले कि उनकी विचारधारा सहकारी संघवाद के संरक्षण दे सकती है।  

झारखंड में सत्ता खोने की बौखलाहट में जो केन्द्र हेमंत सत्ता को असंतुलित करने के लिए, केन्द्रीय शक्तियों का दुरपयोग करने से न चूके। संकट काल में गरीब राज्य के तरफ मदद के हाथ बढाने के बाजाय, राज्य के हक-अधिकार पर ही हमला बोल दे। जहाँ जीएसटी क्षतिपूर्ति 2,500 करोड़ रुपये का भुगतान करने से मुकर जाए। जहाँ अपनी ही सरकार के शाजिस के मद्देनज़र डीवीसी बकाए के रूप में अधिकार कटौती करे। तो राज्य कैसे मान सकता है कि भाजपा लोकतांत्रिक है? और यह भी कैसे मान ले कि केंद्र जनता की चुनी सरकार के राहों में रोड़े नहीं अटका रही। 

मसलन, तामाम परिस्थितियों के बीच आरोप को तब और बल मिल सकता है, जब राज्यवासियों को ज्ञात होता है कि बजट 2021-22 में झारखंड को केंद्रीय करों में, राज्यों के हिस्सेदारी मद में 3850 करोड़ रुपये कम देने वाली है। असे में मामला तब और गंभीर हो सकता है जब प्रदेश भाजपा इकाई निंदा तक न करे। बाबूलाल जी पत्र लिखने के बजाय चुप्पी साध ले या फिर केंद्र की प्रशंसा करे!

झारखंड को 2021-22 में केंद्रीय करों में राज्यों के हिस्सेदारी मद में मिलेगा 3850 करोड़ कम अनुदान 

1 फरवरी 2021, केंद्रीय वित्त मंत्री ने वित्तीय वर्ष 2021-22 का बजट पेश किया। बजट में केंद्र द्वारा झारखंड को मिलने वाले अनुदान पर विशेष तौर पर नकारात्मक असर पड़ा। ज्ञात हो कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में झारखंड को केंद्रीय करों में राज्यों के हिस्सेदारी मद में 25,900 करोड़ रुपये का अनुदान तय हुआ था। लेकिन मौजूदा दौर में, वित्त वर्ष 2021-22 में यह राशि बढ़ने के बजाय घट कर 22050 करोड़ रह गयी है। जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 3850 करोड़ रुपये कम है। झारखंड को केंद्र से मिंलने वाले ग्रांट्स इन एड में भी कमी करने की बात की गयी है। केंद्र राज्यों के बंटवारे में तय राशि में कमी होने की बात कह पल्ला झाड़ती दिख रही। 

केंद्र का ऐसा रवैया कोई पहली बार हेमंत सरकार के प्रति नहीं दिखी है 

झारखंड के प्रति कोई पहली बार केंद्र ने ऐसा दोहरा रवैया पहली बार नहीं अपनाया है। पहले भी केंद्र जीएसटी बकाया, डीवीसी के बकाया वसूली व केंद्रीय उपक्रमों पर राज्यों के करोडो रुपये का बकाया भुगतान न कर, साफ़ तौर पर अपनी सोच के संकेत दे चुकी है। और अब मौजूदा परिस्थिति इस बात की पुष्टि करती है कि केंद्र शाजिसन हेमंत सरकार को अस्थिर करना चाहती है। 

कैसे झारखंड सरकार को किया जा रहा है परेशान 

  1. जीएसटी का 2,500 करोड़ का भुगतान नहीं किया।
  2. वित्तीय वर्ष 2020-21 में झारखंड को तकरीबन 2,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन केंद्र भुगतान करने से मुकर रही है। 
  3. 45,000 करोड़ जो केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम पर बकाया है, का भी केंद्र ने भुगतान नहीं किया। 
  4. केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए झारखंड सरकार केंद्र को 50 हजार एकड़ जमीन उपलब्ध करायी है, जहां निरंतर खनन कार्य हो रहे हैं। इसके एवज में लगभग 45 हजार करोड़ का है बकाया, केंद्र ने नहीं दिया है।
  5. भाजपा की रघुवर सरकार के शाजिश (त्रिपक्षीय समझौता) का सारा ठीकरा केंद्र की भाजपा सरकार ने हेमंत सरकार पर फोड़ते हुए, अनुचित तरीके से डीवीसी बकाये की राशि कटौती की। ज्ञात हो कि रघुवर के तानाशाही त्रिपक्षीय समझौते के मातहत, उनकी डीवीसी 5608.32 करोड़ का बकाया बीते वर्ष अक्टूबर महीने में राज्य के खजाने से 1417.40 करोड़ और जनवरी में 714 करोड़ की अनुचित कटौती केंद्र द्वारा की गयी।
  6. मौजूदा दौर में राज्यों के हिस्सेदारी मद में अब 3850 करोड़ रूपए कम अनुदान।

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