खनिज बाहुल्य गैर बीजेपी शासित राज्यों व क्षेत्रों पर है मोदी सरकार की नजर

मोदी सत्ता द्वारा जीएसटी क्षतिपूर्ति में मिले धोखे कारण गैर बीजेपी शासित राज्य केन्द्रीय नीतियों से चाहती है बचना

राँची :  दूसरी बार केंद्र की सत्ता में आयी बीजेपी सरकार की नजर खनिज बहुल संसाधन वाले गैर-बीजेपी शासित राज्यों व क्षेत्रों पर है। केन्द्रीय सत्ता ने जिस प्रकार अपने कार्यकाल में तानाशाही नीतियों से राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप किया है, उसे तो प्रतीत यही होता है। 

मोदी सरकार का बिना किसी तैयारी और बिना सलाह मशवरे के कोरोना संकट से उबरने के लिए किए लॉकडाउन की घोषणा ने राज्यों की आर्थिक कमर तोड़ दी है। इसी बीच आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत खनिज क्षेत्र को लेकर केंद्र द्वारा अहम घोषणाएँ हुई। साथ ही जल्दबाजी में हुए कोल ब्लॉक की नीलामी प्रकिया और अवैध खनन के लिए माइंस एंड मिनरल एक्ट-1957 में संशोधन ने राज्यों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

ऐसा नहीं हो सकता कि मोदी सत्ता को गैर बीजेपी शासित राज्यों के आर्थिक नुकसान का अनुमान नहीं होगा। फिर भी केंद्र द्वारा फैसले लेना दर्शाता है कि यह एक सोची- समझी प्लान का हिस्सा हो सकता है। केंद्र की इस मंशे को गैर बीजेपी शासित राज्य समझ रहे हैं। नतीजतन उनके केंद्र की नीतियों को राज्यों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। 

चहेते पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह तमाम खेल रचा गया

दरअसल, इन राज्यों (झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान व छतीसगढ़) की सत्ता पर पहले बीजेपी काबिज थी और जनता ने उसके लूटनीति से तंग आकर उसे सत्ता से बाहर कर दिया। पश्चिम बंगाल, ओडिसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में पहले से ही बीजेपी शासन से बाहर है। बता दें कि 2019 के आंकड़ों के मुताबिक ओडिशा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड देश के शीर्ष 5 खनिज उत्पादक राज्य है। जहाँ बीजेपी अब प्रत्यक्ष तौर पर अपने चहेते गिद्ध नजरों वाले पूंजीपति मित्रों को लाभ नहीं पहुंचा सकती है। मसलन, उसने अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए यह तमाम खेल रचा है। 

केंद्र

आर्थिक दृष्टिकोण से लाचार राज्यों को मदद करने के बजाय लालच देकर काम निकालना चाहती है केंद्र 

केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत निजी क्षेत्र के लिए 41 कोल ब्लॉक्स की नीलामी प्रक्रिया शुरू की थी। कोयला मंत्रालय के मुताबिक इन कोल ब्लॉक्स की कॉमर्शियल माइनिंग में अगले पांच-सात साल में करीब 33,000 करोड़ रुपये का निवेश अनुमानित है। मसलन, केंद्र खनिज  बाहुल्य राज्यों को लालच दिखा रही है, जिससे उसका काम आसानी से निकल जाए। 

लेकिन, इत्तेफ़ाक़न झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विचारधारा लूट विचारधारा से भिन्न है और केन्द्रीय सत्ता से मेल नहीं खाती। उनका स्पष्ट मानना और कहना है कि केंद्र की यह नीति सहकारी संघवाद के विपरीत है। तेल, प्राकृतिक गैस, कोयले और हाइड्रोकार्बन जैसे संपदाओं की खोज करने वाली संस्थान जिन्हें पर्यावरणीय मंजूरी देनी होती है, एक झटके में उसके नियमों को बदलकर मोदी सरकार ने जिस प्रकार उसकी अवहेलना की। राज्यों के अधिकारों का हनन साफ़ दिखता है। 

प्रस्तावित अवैध खनन की परिभाषा में बदलाव से होगा राज्यों को नुकसान

इसी प्रकार केंद्रीय खान मंत्रालय द्वारा अवैध खनन की प्रस्तावित परिभाषा में बदलाव कर दिए गए हैं। यह बदलाव माइंस एंड मिनरल एक्ट-1957 में किये प्रस्तावित संशोधन के तहत हुए हैं। इस संशोधन के लिए राज्यों से सुझाव मांगा गया है। केंद्र का दलील है कि खनन क्षेत्र में विकास और रोज़गार सृजन के लिए वह कुछ बदलाव करना चाहती है। और केंद्र ने इस बदलाव को आत्मनिर्भर भारत अभियान का हिस्सा बताया है।

ज्ञात हो कि एक्ट में किये जाने वाले संशोधन को लेकर केंद्र द्वारा भेजे गए प्रपोजल में यह साफ़ कहा गया है – अब से माइनिंग लीज एरिया के बाहर या माइनिंग लीज एरिया में, लीजधारक द्वारा माइनिंग प्लान से अधिक उत्खन्न किया जाता है तो उसे किसी प्रकार का जुर्माना नहीं देना पड़ेगा। और  पर्यावरण व वन कानून का उल्लंघन किये जाने बावजूद भी लीजधारक से जुर्माना नहीं लिया जाएगा।

निजी कंपनी को अधिकार देने पर राज्यों को है ऐतराज

खनन मामले में नीजि कंपनियों को इतनी रियायत देने से गैर-बीजेपी शासित राज्यों को खनिज व संसाधनों की लूट की स्थिति साफ़ दिख रही है। दिखना भी ज़ायज है क्यों यह भविष्य में होने वाली लूट का रोड मैप ही तो है। मसलन, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साफ़ कह दिया कि इस संशोधन से झारखंड में सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ेगा।

नीति निर्धारक जानते है कि वह खनन क्षेत्रों में सत्ता से बाहर है। ऐसे में उनका राज्यों में अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखने के लिए लालच देना जरूरी है। लेकिन, जीएसटी क्षतिपूर्ति में राज्यों के साथ धोखा होने के कारण केंद्र ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। और ऐसे में उसे राज्यों से एतराज का दंश झेलना पड़ रहा है। 

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