झारखण्ड : भाजपा शासन में आदिम जनजातियों का उत्थान सपना ही रहा, हेमन्त सरकार उस सपने को धरातल पर रही उतार

झारखण्ड राज्य में हेमन्त सरकार में पहली बार सही मायने में आदिम जनजातियों के इलाकों तक पहुंच रहा विकास, स्वास्थ्य-शिक्षा और रोज़गार का मिल रहा लाभ

रांची : झारखण्ड आसिवासी-आदिम जनजाति बाहुल्य राज्य भी है. लुप्त हो रही आदिम जनजाति समुदाय का विकास-संरक्षण झारखण्ड ही नहीं देश के लिए भी एक चुनौती है. लेकिन बिडम्बना रही कि झारखण्ड प्रदेश में भाजपा के प्रत्यक्ष-आप्रत्यक्ष 17 वर्षों के शासन में आदिम जनजातियों के उत्थान जैसे गंभीर विषय को हासिये पर रखा गया. और प्रदेश में लुप्त हो रही आदिम जनजातियों के जीवन रक्षा से जुडी, उसका उत्थान महज एक सपना बनकर रह गया. बस एक-आधे पुरानी बिल्डिंग में इस समुदाय के बच्चों पकड़कर चिड़ियाघर के भांति रख दिया गया और मीडिया के समक्ष इसे समुदाय संरक्षण का नाम दे दिया गया.

न कभी उस शासन में इस समुदाय को स्वास्थ्य-शिक्षा-रोजगार जैसे मूल भूत अधिकारों से जोड़ा गया और ना ही इनके इलाकों को विकास से जोड़ने के प्रयास हुए. आदिम जनजाति के युवाओं के हित में कभी सीधी नियुक्ति जिसे विचार आये ही नहीं. जबकि, हेमन्त सोरेन सरकार में इस जनजाति के विकास के लिए सिरे से काम हो रहे है. आज आदिम जनजातियों के संरक्षण से जुड़े तमाम सपनों या सोच को धरातल पर उतारने के नेक प्रयास हो रहे हैं. ज्ञात हो, हेमन्त सरकार में पहली बार आदिम जनजाति के इलाकों तक विकास को पहुंचा जा रहा है. इन्हें स्वास्थ्य-शिक्षा जैसे मूल-भूत सेवाओं से जोड़ा जा रहा है. साथ ही इस समुदाय के लिए सीधी नियुक्ति जैसी प्रक्रिया आरम्भ हुई हैं. 

आदिम जनजाति के गावों पर हेमन्त सरकार ने किये 5 करोड़ रुपये खर्च

ज्ञात हो, सत्ता में आते ही हेमन्त सरकार द्वारा आदिम जनजाति परिवार व उनके गांवों के विकास पर जोर दिया गया. वित्तीय वर्ष 2020-21 में, नीतिगत फैसलों के अक्स में सरकार द्वारा 5 करोड़ रुपये खर्च करने का अहम फैसला लिया गया. इस राशि का उपयोग आदिम जनजाति परिवारों को पक्के घर देने, पेंशन, बच्चों की शिक्षा, गांवों में पानी, बिजली, सड़क जैसी सुविधा बहाल करने के लिए था. सीएम हेमन्त सोरेन ने भाजपा की तरह केवल घोषणाएँ ही नहीं. बल्कि इनके विकास में 5 करोड़ रुपये का भुगतान भी आदिवासी कल्याण आयुक्त को किया.

इस 5 करोड़ रुपये में क्षेत्रीय उपयोजना के तहत आदिम जनजाति गांव बाहुल्य योजना में 1 करोड़ और जनजातीय क्षेत्रीय उपयोजना अंतर्गत 4 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया. इसी राशि में आदिम जनजाति ग्रामोत्थान योजना के लिए भी राशि खर्च की गयी. बात दें कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य इनके बाहुल्य गांवों का समेकित विकास करते हुए आदर्श ग्राम के रूप में परिणत करना है. 

पहली बार झारखण्ड में शुरू हुआ बाइक एंबुलेंस योजना, मिलेगा आदिम जनजाति को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा.

हेमन्त सरकार के प्रयास यहीं नहीं रुके. आदिम जनजाति समुदाय तत्काल स्वास्थ सुविधा उपलब्ध कराने हेतु हेमन्त सरकार द्वारा बाइक एंबुलेंस योजना शुरू की गयी. बता दें कि इनके इलाकों में सुविधाएं और संपर्क व्यवस्था सुदृढ़ नही है. नतीजतन गंभीर बीमारियों से पीड़ित आदिम जनजाति समुदाय के लोग खासकर गर्भवती महिलायें व बुजुर्ग को इमरजेंसी में अस्पताल पहुंचाना मुश्किल होता था. योजना के तहत सरकार द्वारा एक ऐप भी लांच किया गया है. जिलों में उपायुक्त के निर्देश पर इसका संचालन होगा. प्रत्येक बाइक एंबुलेंस में जीपीएस सिस्टम से होगा, ताकि उसकी निगरानी आसान हो.

आदिम जनजाति के कर्मियों को नौकरी देने की राह पर हेमन्त सरकार

विकास और स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने के बाद हेमन्त सोरेन सरकार अब आदिम जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरी देने की राह पर चल पड़ी है. दरअसल, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने पहाड़िया और बिरहोर आदिम जनजाति के कर्मियों के आश्रितों को सरकारी नौकरी देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. इस फैसले पर केवल कैबिनेट की स्वीकृति ही बाकी है. इसमें गोड्डा जिले के पोड़ैयाहाट प्रखंड कार्यालय के पूर्व पंचायत सचिव बलिराम पहाड़िया की आश्रित पत्नी फुलमुनी पहाड़िन, रामगढ़ स्थित दुलमी प्रखंड कार्यालय के पूर्व अनुसेवक स्वं.पुना बिरहोर की आश्रित पत्नी जीतो देवी की अनुकम्पा के आधार पर नौकरी दी जाएगी. इन्हें समूह ‘घ’ के पद पर नियुक्ति हेतु मंजूरी दी गयी है.

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