आखिर पूर्व के शासन में भाजपा-आजसू झारखण्ड के 40% जेनरल वर्ग को क्यों अधिकार से वंचित करती रही? – क्या भाषा विवाद सिर्फ वोट बैंक के खातिर? 

भाषा विवाद : महत्वपूर्ण सवाल है कि भाजपा अपने शासनकाल में राज्य की 40% जेनरल वर्ग का भी भला क्यों नहीं चाह सकी? …क्यों भाजपा राज्य के मूल जेनरल वर्ग को आरक्षण का भय दिखा वोट बैंक के रूप में साधे रही और फायदा बाहरियों को पहुंचाती रही है? 

हेमन्त सरकार की नीतियां जब तमाम वर्गों को साथ लेकर चल रही है तो भाजपा को सताने लगा है वोट-बैंक फिसलने का डर  

राँची : अलग झारखण्ड के इतिहास में बाहरियों की बैसाखी पर खड़ी भाजपा की राजनीति, झारखण्ड में हर वर्ग के मूल वासियों के अधिकारों के लिए ग्रहण साबित हुआ है. लूट मानसिकता से ओतप्रोत वह राजनीति झारखण्ड के हर वर्ग के अधिकार हनन का सच लिए है. ऐसे में झारखण्ड की हेमन्त सरकार नीतियों के आसरे सिरे से झारखंडी मूल जनता के अधिकार सुनिश्चित करने में जुटी है, तो राज्य की भाजपा-आजसू रूपी विपक्षीय राजनीति भ्रम के आसरे, ऐसे महान कार्य में बाधा उत्पन्न करती साफ़ दिखती हैं.

झारखण्ड की असल लड़ाई बाहरी लूटेरे बनाम झारखंडी अधिकारों का संरक्षण

यह जानना जरुरी हो जाता है की कौन 40% जेनरल मूलवासी वर्ग? इसका सीधा आंकड़ा यह है कि यदि राज्य में 60 फीसदी जनता आरक्षित वर्ग से आते हैं तो शेष 40%जनता जेनरल वर्ग के मूलवासी ही हुए. और झारखण्ड के 21 वर्षों के इतिहास में इन 40 फीसदी आबादी को भाजपा शासन में फायदे के रूप में केवल आरक्षण का डर दिखाया और असल फायदा बाहरियों को पहुंचाया गया. अब स्थिति यह हो चली है कि ऐसे 40 फीसदी जेनरल वर्ग भूल गए हैं कि वह झारखण्ड के मूलवासी भी हैं.

मौजूदा हेमन्त सरकार की नीतियां झारखण्ड के तमाम मूल वासियों की हिसाब/सुध ले रही है तो भाजपा-आजसू राजनीति के पैरों तले ज़मीन खिसकने लगी है. उन्हें अपने अस्तित्व को लेकर अँधेरा भविष्य नजर आने लगा है. यदि ऐसा नहीं है तो आजसू-भाजपा बताए कि वह क्या कारण रहे कि सरकार में रहते हुए उन्होंने जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को हर बार हाशिए पर ला खड़ा किया? क्या कारण रहे कि भाषा मे 100 अंक लाने पर भी अभ्यर्थियों को मात्र 7 अंक मिलता रहा? क्या इसका खामियाजा 40 फीसदी मूल जेनरल वर्ग आबादी को नहीं भरना पड़ा है.

मसलन, झारखंडी हितों का ढोंग रचने वाली आजसू-भाजपा की राजनीति ने झारखण्ड के तमाम वर्गों को छला है. उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर बाहरियों को फायदा पहुंचाया है. झारखंडी की मौजूदा हेमन्त सरकार नीतियां झारखण्ड के तमाम वर्गों के हित से जुडी है. क्योंकि झारखण्ड की असल लड़ाई बाहरी लूटेरे बनाम झारखंडी अधिकारों का संरक्षण है.

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