जिस राम नाम से होती थी भाजपा की चुनावी वैतरनी पार, उसी राम मंदिर को बनाया संघ प्रचारक ने भ्रष्टाचार का शिकार, जिससे उठने लगे हैं राष्ट्रवाद पर सवाल
- अयोध्या राम मंदिर निर्माण में हुए जमीन घोटाले के सच से उठे संघीय विचारधारा पर गंभीर सवाल.
- झारखंड में बाबूलाल जैसे संघ प्रचारक का सांगठनिक भ्रष्टाचार को व्यक्तिगत स्वार्थ बताना दर्शाता है कि जेएमएम के सवालों का जवाब देने की नैतिक बल उनमे नहीं
मार्च 2024 में होगा राम मंदिर तैयार, आम चुनाव 2024 भाजपा के लिए मंदिर ही बन सकता है एक मात्र चुनावी मुद्दा
रांची: देश में विचित्र परिस्थिति हो चली है. जहाँ संघ प्रचारक कॉर्पोरेट के प्रॉफिट प्रेमी . संघ प्रचारक प्रधानसेवक. संघ प्रचारक देश का गृहमंत्री-मुख्यमंत्री. तो कहीं संघ प्रचारक पर घोटालेबाज होने का भी आरोप है. राष्ट्रवाद के मद्देनजर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यह कैसी विचारधारा हो सकती है, जहाँ प्रचारकों के राजनीतिक शुद्धिकरण के बावजूद, देश रेंगने को मजबूर है. देश का पालनहार किसान सड़क पर है. अनुसूचित जाति हासिये के अंतिम छोर पर आ खड़ा हुआ है. आदिवासी असहाय हैं सबसे अधिक दर-बदर हुए हैं, क्योंकि आजादी के बाद इन्ही के शासन में सबसे अधिक जंगल काटे गए.
देश में आजादी के बाद बेरोजगारी सबसे अधिक है. कॉर्पोरेट हित में आरबीआई से सबसे अधिक पैसे निकाले गए. देश के मेहनत पर खड़ी लगभग संस्थाने बेच दी गयी. या बिकने के कगार पर खड़ी हुई है. उच्च शिक्षा ध्वस्त हो गयी. और अब जो खबर बाहर आयी है वह भक्तों को असहनीय पीड़ा दे सकती है. गरीब जनता के अराध्य के नाम पर उगाही की गयी चंदे के बन्दर-बाँट के मद्देनज़र, ज़मीन घोटाले का सच बाहर आया है. और घोटाले में संघ प्रचारक का नाम आना, संघ के विचारधारा, उसकी शुद्धिकरण पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसे में देश को संघ के राष्ट्रवाद पर सवाल उठाते हुए अब गंभीरता से समझना होगा कि संघ विचारधारा जिस थाली में खाता है उसी में छेद करता है.
मनुवाद विचारधारा को समझने के लिए सबसे सटीक उदाहरण है ज़मीन घोटाला
यहाँ समझने की भूल न करें कि भाजपा और संघ के कर्तव्य अलग-अलग हैं. जी हाँ यह अटल युग नहीं मोदी युग है. जहाँ संघ ही भाजपा है और प्रचारक ही सत्ता है. और भाजपा जिस राम नाम पर दशकों से चुनावी वैतरणी पार करती आ रही है उसी विश्वास पर बट्टा लगा दिया है. ऐसे में देश यह सोचे कि संघ-भाजपा ने अपने नाव में खुद छेद कर दिए तो कतई गलत नहीं हो सकती. क्योंकि मनुवाद विचारधारा को समझने के लिए इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता. जहाँ ज़मीन दलाल कुसुम पाठक, हरीश पाठक, रविमोहन तिवारी हैं. संघ सेवक चम्पक राय घोटाले के आरोपी है. गवाह अनील मिश्र है तो मुदा उठाने वाला पवन पाण्डेय है.
मामला तब और दिलचस्प हो जाता है जहाँ परशुराम का वंसज, उसी अयोध्या में, सरयू नदी में आकंठ डूब संविधान का नहीं बल्कि जनेऊ की कसम खाते हैं कि वह आगामी चुनाव में भाजपा को हराएंगे. और अपना बदला लेंगे. झारखंड में भी बाबूलाल मरांडी जैसे संघ प्रचारक, झारखंड मुक्ति मोर्चा के सवालों के जवाब में केवल इतना भर कहने का नैतिक बल जुटा पाए कि यह मामला व्यक्तिगत स्वार्थ से जुड़ा है. और 2 करोड़ की ज़मीन महज़ चंद मिनटों में 18.5 करोड़ रुपये में खरीदे जाने वाले दस्तावेजों को फर्जी बता दिए. और 5.79 लाख की सर्किल रेट वाली ज़मीन 5 मिनट पहले 2 करोड़ में और चंद मिनटों में 18.5 करोड़ रुपये में बिकने के सच को सिरे से ख़ारिज कर दिया.
2024 के आम चुनाव में राम मंदिर अब कैसे करेगा भाजपा का वैतरणी पार
राममंदिर निर्माण मार्च 2024 में होना है, देश का आम चुनाव भी अप्रैल 2024 में ही होना है. ऐसे में भाजपा के लिए राम मंदिर निर्माण एक बड़ा चुनावी मुद्दा होगा. लेकिन, जमीन घोटाले के सच ने भाजपा के तमाम मंशे पर सवालिया निशान खड़े कर दिए है. ऐसे में भाजपा के लिए बड़ा सवाल है कि देश में भगवान राम के भक्त पूरे मामले को कैसे लेंगे. क्या देश अपने अराध्य के नाम के साथ विश्वासघात करने वाली विचारधारा को माफ़ कर सकेगा. या बदला लेगा?
बहरहाल, देश के दुर्दशा के मद्देनजर शायद भाजपा ने उस सच को भांप लिया है. जहाँ राष्ट्रवाद पर सवाल के मातहत वह समझ रही है कि अब सत्ता उसके हाथ नहीं लगेगी. मसलन, जिस हद तक आर्थिक लूट हो सकती है वह लूटने से नहीं चूक रहा. वैसे तो पहले वह राम के नाम पर लूटते थे. लेकिन इस बार अपने लालच की पराकाष्ठ पार करते हुए उन्होंने देश के अराध्य भगवान राम के घर में ही सेंध लगा दी है.