कई राज्य सरकारें जहां रेल परियोजना को लेकर सजग नहीं, वहीं झारखंड सरकार ने विकास आयुक्त की अध्य़क्षता में गठित की समिति के प्रस्ताव को दी स्वीकृति
राज्य के अधूरे विकास में कई जिले मुख्यालयों का रेल सेवा से जुड़ाव नहीं हो पाना भी प्रमुख कारण
रांची। 1980 के दशक के दौर में देश में एक शब्द काफी चर्चित हुआ था। वह शब्द था “बीमारू राज्य की परिकल्पना”। दरअसल बीमारू (BIMARU) शब्द मूलतः देश के चार राज्य बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश के अंग्रेजी नाम के पहले अक्षरों को मिलाकर गढ़ा गया एक शब्द था। उस दौर में झारखंड बिहार का ही हिस्सा था। बीमारू शब्द “बीमार” से संबंधित था। जिसके पीछे का मूल भाव इन राज्यों में गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्या थे।
2000 में अलग राज्य बनने के बाद झारखंड को विकास के मार्ग में ले जाना एक बड़ी चुनौती थी। तत्कालीन भाजपा सरकार ने इस चुनौती को पार करने की कोशिश का केवल दिखावा किया। नतीजतन राज्य को विकास के राह पर ले जाने में असफल रही। विडंबना है कि झारखंड के कई जिले आज भी विकास से कोसो दूर है। कई वजहों में से एक प्रमुख वजह रेल परियोजना से इन जिलों को जुड़ाव न होना है। ऐसे श्रेणी में सिमडेगा, चतरा और खूंटी जैसे जिले प्रमुखता से शामिल है। इन जिलों के मुख्यालय आज तक रेलवे नेटवर्क से नहीं जुड़ पाए हैं। पिछले 20 सालों में राज्य में अमूमन किसी सत्तारूढ़ (अधिकांश समय भाजपा) सरकारों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। लेकिन अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ऐसे दूर-दराज और अछूते इलाकों से रेल नेटवर्क से जोड़ने की पहल की है, जो उनके दूरदर्शी सोच का परिचायक है।
विकास आयुक्त की अध्यक्षता गठित समिति ने ऐसे जिलों को रेल से जोड़ने का दिया था प्रस्ताव
बीते दिनो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विकास आयुक्त की अध्यक्षता में गठित जिस समिति के प्रतिवेदन को मंजूरी दी है, उसमें ऐसे कई जिलों को रेल कनेक्टिविटी से जोड़ने का सुझाव हैं, जहाँ के विकास का पहिया रेल सेवा के कारण रुका हुआ है। भविष्य में इन रेल परियोजनाओं के निर्माण और उन पर होने वाले खर्च पर भी समिति के सुझाव पर सीएम ने सहमति दी है। इन रेल परियोजनाओं को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 50-50 प्रतिशत के भागीदारी खर्च पर निर्माण किया जाएगा। यानी रेल परियोजनाएं ज्वाइंट वेंचर के तौर पर पर शुरू होगी।
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि यह रेल परियोजना राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। समिति के रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जो रेल परियोजनायें दूरस्थ इलाके में है, वहां पर रेल कनेक्टिविटी के लिए चलने वाली योजनाओं में होने वाले खर्च में राज्य सरकार की हिस्सेदारी कम होगा। हालांकि, ऐसे दूरस्थ इलाकों की पहचान में जेआरआईडीसीएल प्रमुख भूमिका निभाएगा।
हर बार रेल बजट में झारखंड को लगी है निराशा, हेमंत की पहल से मिलेगी राहत
ज्ञात हो कि हर साल संसद में पेश होने वाले रेल बजट में झारखंडवासियों को निराशा ही हाथ लगती आयी है। ऐसे में पहली बार झारखंड की किसी सरकार ने राज्यवासियों के हित में एक बड़ा कदम उठाया है। दूरस्थ इलाकों को रेल से जोड़ने की यह पहल भविष्य में झारखंड के लोगों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध है। इस परियोजना से छुटे इलाके के लोगों की आसान पहुंच अन्य जगहों तक हो सकेगी। लोगों को यात्रा करने में सुलभता व काफी कम समय लगेगा। जिसका सकारात्मक असर निश्चित रूप से राज्य के व्यापार पर भी पड़ेगा। राज्य के विद्यार्थियों को भी इस परियोजना से लाभ होगा। ऐसे लोग रोज राजधानी रांची से अपने शहर तक अप-डाउन आसानी व सुरक्षा के साथ कर सकेंगे। जो राज्य के आर्थिक विकास में कारगर साबित होगा।
रेल परियोजनाओं के विस्तार को लेकर सजग दिखती हेमंत सरकार
अमूमन ऐसा देखा जाता है कि कई राज्य सरकारें अपने यहां रेल परियोजनाओं को लेकर गंभीर नहीं दिखती। उनकी भूमिका केवल रेल मंत्रालय तक मांग तक ही सीमित रह जाती है। लेकिन हेमंत सरकार राज्य में रेल परियोजनाओं के विस्तार और इससे जुड़ी परियोजनाओं को लेकर काफी सजग दिख रही है। हेमंत सरकार ने विकास आयुक्त की अध्य़क्षता में एक समिति का गठन और उसके प्रतिवेदन पर अपनी सहमति देकर राज्य में रेल परियोजनाओं के विकास को एक प्रमुख आधार दिया है। इसमें दो बातें भी काफी सराहनीय है।
- भविष्य की इन रेल परियोजनाओं पर होने वाली खर्च की हिस्सेदारी भी तय कर दी गयी है, ताकि परियोजना शुरू होने के बाद केंद्र के साथ कोई विवाद न हो।
- महत्वपूर्ण परियोजनाओं को पूरा करने में यदि राज्य सरकार की कोई हिस्सेदारी बढ़ती भी है, तो वह पीछे नहीं हटेगी।