DRDO वैज्ञानिक प्रदीप कुरुलकर जैसे किरदार क्या RSS के फ़ासीवाद को उजागर नहीं करता?

क्या अडानी सेल कंपनी काण्ड, DRDO वैज्ञानिक प्रदीप कुरुलकर जैसे किरदारों से फ़ासी तंत्र के देश व वर्ग विरोधी एजेंडे को नहीं समझा जाना चाहिए? लोकतंत्र के संस्थानों में फ़ासी घुसपैंठ नहीं समझा जा सकता? 

रांची : प्रधानसेवक! मोदी का 9 वर्ष का कार्यकाल क्या देश को नहीं सिखाता है कि फ़ासीतंत्र लोकतंत्र का दुश्मन होता है? लोकतंत्र अभिव्यक्ति व जनहित को महत्ता देता है, जबकि फासीतंत्र केवल पूँजीपति वर्ग को फायदा पहुंचाता है. वेतनभोगी, निम्न व मध्यम मध्यवर्ग के शिक्षा, चिकित्सा, आवास व सामाजिक सुरक्षा जैसे लोकतांत्रिक अधिकारों को ख़त्म कर पूँजीपति को टैक्स व क़र्ज़ा माफ़ी जैसी राहतें देता है. बदले में फ़ासी तंत्र को आर्थिक व संसाधन सहायता मुहैया होता है.

चूँकि फासी तंत्र लोकतंत्र विरोधी होता है मसलन यह व्यवस्था एक संगठित गिरोह द्वारा व्यस्थित होता है. अपनी सत्ता कायम रखने हेतु यह गिरोह लोकतंत्र के संस्थानिक इकाइयों में अपने गुर्गों के आसरे घुसपैठ करता है. राष्ट्रवाद के आड़ में न केवल लोकतंत्र के नायकों को समाप्त करने का प्रयास करता है. देश विरोधी कार्यों को भी अंजाम देने से नहीं चुकता. क्या इसका स्पष्ट उदाहरण अडानी सेल कंपनी काण्ड, DRDO वैज्ञानिक प्रदीप कुरुलकर जैसे किरदारों से नहीं समझा जा सकता?

क्या यह नहीं समझा जा सकता है कि फासी तंत्र हमेशा किसी वर्ग के लोभ व डर को उभार एक अन्धी प्रतिक्रिया को एक ठोस रूप देता है. जैसे मणिपुर में मैतेई को आदिवासी बनाना, झारखण्ड में कुम्डी को आदिवासी बनाना आदि. यही नहीं समाज के वर्गों के सद्भाव को खंडित करता है और भ्रम पैदा कर अपने ही पापों के आसरे लोकतंत्र के नायकों के जनहित कार्यों को बाधित करने का भी प्रयास करता है. क्या फासीवाद के इन एजेंडों को समझ जनता देश व सामूहिक वर्ग विकास को आगे नहीं बढ़ा सकती?

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