झारखण्ड : CM हेमन्त को संविधान पर तो बाबूलाल को ED पर भरोसा

झारखण्ड : लोकसभा व झारखण्ड विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, घबराहट सीएम हेमन्त के चेहरे पर नहीं बाबूलाल में बढ़ चला है. विपक्ष की टकटकी निगाह केवल ईडी की जांच पर. 

रांची : 15 नवंबर के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी का आगमन झारखण्ड प्रदेश में होने जा रहा है. जाहिर है देश की भांति झारखण्ड की जनता में भी पीएम मोदी के दस वर्ष कार्यकाल की नीतियों को लेकर कई जायज सवाल हैं. जिसका जवाब वह पीएम से सुनना चाहते हैं. और वह बाबुलाल जी से भी यही अपेक्षा रखते है. लेकिन, परदेश भाजपा और बाबूलाल मरांडी का जनता को उनके सवालों के प्रति आस्वस्थ करने के बजाय ईडी जांच के आसरे उन्हें गुमराह करते दिख चले हैं. 

CM हेमन्त को संविधान पर तो बाबूलाल को ED पर भरोसा

ज्ञात हो, ईडी डायरेक्टर मिश्रा जी के दौर से ही झारखण्ड के आदिवासी सीएम को जांच के आसरे घेरने का प्रयास होता दिखा है. लेकिन जैसे ही जांच बीजेपी के पूर्व सीएम रघुवर दास के चौहदी तक पहुँचती है. न केवल जांच थम जाती है नए एंगले सीएम को घेरने की कवायद शुरू हो जाती है. अंततः सीएम हेमन्त सोरेन ने नयायालय की राह पकड़ी. हालांकि यह सीएम, न्यायालय और ईडी संस्थान की बात है. लेकिन बाबूलाल जी की बेसब्री बीजेपी की मंशा का खुलासा जरुर करती दिखती है. 

यह वह संवेदनशील दौर है जब पीएम को जनता व विपक्ष के सवालों का जवाब देकर अपनी चुनावी ज़मीन सुरक्षित करना चाहिये. और बाबूलाल मरांडी जैसे बीजेपी नेताओं को चाहिए कि वह पीएम से जन सवालों के जवाब दिलाने में अग्रीन भूमिका निभाये. न्यायालय की जांच हो या ईडी जांच हो दोनों का अंतिम मंजील न्याय ही होता है. ऐसे में इसे झारखण्ड बीजेपी और बाबूलाल मरांडी सरीखे नेताओं का मुद्दा बनाया जाना न केवल जनता का ध्यान भटकान है जन सवालों से भागना भी प्रतीत होता है.  

बाबूलाल मरांडी आखिर बेचैन क्यों -झामुमो महासचिव 

बाबूलाल मरांडी के इस रवैये पर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के महासचिव के द्वारा दो टुक सवाल किया गया है. उनका स्पष्ट सवाल है कि बाबूलाल मरांडी जी आखिर बेचैन क्यों हैं? कहीं यह गलत नीतितियों और मुद्दा विहीन होने की बौखलाहट में राजनीतिक ज़मीन बचाने का प्रयास भर तो नहीं है. वे किस आधार पर ईडी की कार्रवाई नहीं होने पर कानून पर से विश्वास उठने की बात कर सकते हैं? झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को भारतीय संविधान पर पूरा विश्वास और भरोसा है. 

उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जब सीएम को राजनीतिक कारणों से प्रताड़ित करने का प्रयास हुआ तो वह कानून की शरण में गए. और वह न्यायालय के फैसले के अनुसार आगे बढ़ना चाहेंगे. लेकिन इस विकट परिस्थितियों के बीच बाबूलाल मरांडी का केंद्रीय एजेंसियों पर दबाव बनाने का प्रयास उनकी हताशा का दर्शन भर है. और यह केवल झारखण्ड की बात नहीं जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां के नेताओं में भी ऐसे ही बेचैनी है. राज्य सरकारों को अस्थिर करने हो रहा है.

भाजपा और आरएसएस की छलावा विचारधारा अलग झारखण्ड राज्य का श्रेय राज्य के महापुरुषों को दरकिनार कर लेने का प्रयास करती दिखती है. सीएम हेमन्त सोरेन की कल्याणकारी जननीतियों के बढ़ते प्रभाव के अक्स में भाजपा की खोखली जमीन खिसक चली है, ऐसे में ऐसा करना उसकी मजबूरी हो चली है. क्योंकि, भाजपा की मनु विचारधारा को एक आदिवासी सीएम की उपस्थिति और उसे मात खाने की सच्चाई को पचा पाना उसके लिए कष्टदायक हो चला है.

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