CCL : गिरीडीह में कोयले का काला खेल बदस्तूर जारी

देश की पाँच केन्द्रीय ट्रेड यूनियन – एचएमएस, बीएमएस, इंटक, एटक, सीटू ने 6 जनवरी से कोयला ख़ान मज़दूरों की पाँच दिवसीय हड़ताल का आह्वान किया था। हड़ताल का प्रमुख कारण मोदी सरकार द्वारा कोल इण्डिया लिमिटेड के निजीकरण और विराष्ट्रीकरण किये जाने का विरोध करना था।

साथ ही कोल इण्डिया लिमिटेड में श्रम के ठेकाकरण की व्यवस्था को पूर्ण रूप से ख़त्म करना भी शामिल था। लेकिन, 6 जनवरी को शुरू हुई हड़ताल अगले ही दिन शाम को अचानक तोड़ दी गयी। क्योंकि कोयला मन्त्री पीयूष गोयल ने इन यूनियनों के नेताओं को आश्वासन दिया कि जैसा वे समझ रहे है मामला वैसा है नहीं। और इन्हें यह भी भरोसा दिलाया गया कि मोदी सरकार कोयला ख़ान के मज़दूरों के हितों की रक्षा करेगी।

परन्तु जैसा कि अक्सर होता है इस बार भी हुआ, उदाहरण के तौर पर झारखंड, गिरिडीह के कोलियरी (CCL) की घटना से समझने का प्रयास करते है। झारखंड कोलियरी मजदूर यूनियन की तरफ से स्व. श्री जयनाथ राणा ने पिछले महीने मरने से पहले कहा था कि भाजपा सरकार षड्यंत्र कर यह कोलियरी (CCL) को बंद करने का प्लानिंग कर रही है।

CCL मैनेजमेंट अपने दस्तावेजों

उनकी दलील यह थी कि मौजूदा सरकार में कोलियरी मैनेजमेंट अपने दस्तावेजों में दिखा रही है कि इस परियोजना में लगातार 14 महीने से प्रोडक्शन (उत्खनन) बंद है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि CTO (Consent to operate) नहीं होने के बावजूद मेन स्ट्रीम खनन तो बंद है परन्तु अवैध उत्खनन लगातार जारी है। तथा रेल एवं माफियाओं के ट्रकों द्वारा धड़ल्ले से डिस्पैच भी लगातार हो रहा है।

मजदूरों का कहना है कि जब से यहाँ भाजपा सांसद रविंद्र पाण्डेय ने दखल दिया है कभी भी रोड सेल सुचारू ढंग से संचालित नहीं हो पाया है। जबकि सांसद महोदय के ट्रकों से कोयले की ढुलाई बे-रोक-टोक बदस्तूर जारी है। मतलब सीसीएल (CCL) मैनेजमेंट के इस कदम से जहाँ एक तरफ हजारों लोकल सेल मजदूर बेरोजगार हो गए हैं तो वहीं अवैध उत्खनन करवाकर मैनेजमेंट चंद चुनिंदे लोगों को फायदा पहुंचाने का कार्य बेशर्मी से कर रही है।

सरकार कोलियरी को बंद करना चाहती है।

हालांकि, इस विषय में झामुमो का साफ़ कहना है कि यह सरकार इस कोलियरी को बंद करना चाहती है। और इसी के तहत सांसद रविंद्र पाण्डेय स्थानीय मजदूरों को बेरोजगार कर खुद ही मलाई लूटने में संलग्न हैं। साथ ही सरकार के अजेंडे जैसे पूंजीपतियों की लूट कि छूट जैसी मंशा में भरपूर योगदान भी कर रहे हैं।साथ ही यह मांग भी की है कि सरकार CTO भुगतान कर रोड सेल को दुबारा एवं अतिशीघ्र आरम्भ करे ताकि हजारों बेरोजगार हुए मजदूरों का रोजगार सुनिश्चित हो सके और कोयले का अवैध प्रोडक्शन और डिस्पैच भी बंद हो सके।

बहरहाल, मोदी-रघुबर सरकार की पूँजीपरस्त नीतियां जो पूँजीपतियों द्वारा क़ुदरत की खुली लूट को आसान बनाती है, जग जाहिर है। कोयला ख़ान (विशेष प्रावधान) अध्यादेश इसी दिशा में उठाया नया क़दम है। इस अध्यादेश के मुताबिक़ देश के कोयला भण्डार ब्लॉकों को ई-नीलामी के तहत निजी पूँजी द्वारा दोहन के राह को आसन करेगी।

ताकि सत्ता के साँठ-गाँठ से चल रहा यह मलाई का गोरख धंधा गिरिडीह कोलियरी के भाँती बदसतूर जारी रह सके। भले ही क्यों न कोल इण्डिया लिमिटेड -ccl गिरीडीह में कोयले का काला खेल बदस्तूर जारी , जोकि देश के कोयले की 80 प्रतिशत हिस्सा पैदा करने वाली सबसे बड़ी सार्वजनिक/राष्ट्रीयकृत कोयला खनन कम्पनी उसके 3.50 लाख कोयला ख़ान मज़दूरों के साथ क्यों न बलि देनी पड़े। सरकार को इससे कोई लेना देना नहीं…।  

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