झारखण्ड : एक बार फिर झारखण्ड का दुर्भाग्य रहा कि राज्य बीजेपी ने स्पष्ट रूप से स्थानीय व नियोजन निति के अलावा आरक्षण नीति से दूरी बना ली. उन्होंने सर्वदलीय शिष्टमंडल से दूरी बनाते हुए सरकार के आग्रह ठुकरा दिया है.
झारखण्ड उच्च नयायालय से नई नियोजन नीति रद्द होना निश्चित रूप झारखण्ड वासियों के लिए दुखद खबर है. क्योंकि तीसरी-चौथी ग्रेड की नौकरियों में झारखण्ड के मूलवासियों की सुनिश्चितता हेतु हेमन्त सरकार अब एक और कदम चलना पडेगा. ज्ञात हो, झारखण्ड की वर्तमान नियोजन नीति को निरस्त करने में 19 बाहरी पिटीशनरों द्वारा एक आदिवासी चेहरे को आगे किया गया था.
ज्ञात हो, झारखण्ड सरकार ने 1932 वर्ष खतियान आधारित बिल व आरक्षण विधेयक को राज्यपाल के द्वारा केंद्र भेजने के लिए आग्रह करने हेतु सभी पार्टियों से अपील किया गया था. 20 दिसंबर 2022, दोपहर को सर्वदलीय शिष्टमंडल कोएक साथ राज्यपाल से मुलाक़ात कर विधेयक को केंद्र में भजने हेतु आग्रह करना था. लेकिन, एक बार फिर झारखण्ड का दुर्भाग्य रहा कि राज्य ऐसे गंभीर विषय में भी झारखण्ड बीजेपी साथ खड़ी नहीं दिखी. उन्होंने सर्वदलीय शिष्टमंडल से दूरी बना ली.
झारखण्ड के ऐसे गंभीर मुद्दे पर जहाँ एक तरफ बीजेपी दलीलदिया गया कि – सुप्रीम कोर्ट नौवीं अनुसूची की समीक्षा कर सकता है, अपनी मंशा स्पष्ट की. तो वहीं बाबूलाल मरांडी ने प्रेस वार्ता में 1932 खतियान आधारित स्थानीयता को गैर जिम्मेदाराना लहजे में ‘इस मुद्दे पर बहुत राजनीति हो चुकी है’ और सीएम का नीति बीजेपी के नियोजन नीति का तुष्टिकरण है, कह कर पल्ला झाड़ते दिखे.
ऐसे में सवाल है कि झारखंडियों के अधिकार को सुनिश्चित करने वाली नियोजन नीति कैसे बीजेपी के बीजेपी सरकार के नियोजन नीति का तुष्टिकरण हो सकता है, बीजेपी को जनता को बताना चाहिए. मसलन, तमाम परिस्थितियों से यह स्पष्ट हो चला है कि झारखण्ड की गरीमा के इस लड़ाई में राज्य को बीजेपी का साथ नहीं मिल सकता.