लोकसभा में केंद्र ने माना कि बिना आंकड़े के EWS पारित किया लेकिन 1932 पर दे रहे ज्ञान 

केंद्र सरकार ने लोकसभा में माना है कि EWS आरक्षण देने के लिए कोई सर्वे नहीं कराया गया था. न तो EWS की संख्या उसे मालूम है और न ही ग़रीबी की कोई आँकड़ा. फिर भी पारित किया और झारखण्ड में स्थानीय नीति व आरक्षण पर बीजेपी नेता क़ानून का ज्ञान अलाप रहे.

रांची : एक तरफ केंद्र सरकार ने लोकसभा में मान लिया कि EWS आरक्षण देने के लिए किसी तरह का कोई सर्वे नहीं कराया गया था. सरकार को न तो EWS की संख्या मालूम है और न ही उनकी ग़रीबी की कोई आँकड़ा उसके पास है. 10% कोटा का कोई आधार नहीं  होने के बावजूद सवर्ण समुदायों को EWS दे दिया गया जिस पर न्यायालय द्वारा भी जल्दबाजी में मुहर लगा दी गयी.

लोकसभा में केंद्र ने माना कि बिना आंकड़े के EWS पारित किया लेकिन 1932 पर दे रहे ज्ञान 

वहीँ झारखण्ड के मूलवासियों को अधिकार देने के लिए हेमन्त सरकार आगे बढ़ रही  है तो बाबूलाल समेत तमाम बीजेपी के मनुवादी नेता विधि -विधान की दुहाई देते हुए अपना थोथा ज्ञान अलापते देखे जा रहे है. इस बाबत पत्रकार दिलीप मंडल के द्वारा सटीक ट्विट किया गया है – 1932 खतियान और ओबीसी आरक्षण को लेकर हेमन्त सोरेन सरकार केंद्र सरकार से आग्रह कर रही है, इन्हें दिक्कत है.

1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये मांगने में भी इन्हें दिक्कत है. सरना आदिवासी धर्म कोड मांगने में भी इन्हें दिक्कत है. झारखण्ड बीजेपी को हर काम में सिर्फ दिक्कत ही दिक्कत है. ‘कोलिजियम सिस्टम के बाद से बेईमानी बढ़ी है और भाई-भतीजावाद चरम पर पहुँच गया है. निकम्मे जज आ रहे हैं. पेंडिंग केस बढ़ गए हैं’. 

कोलिजियम सिस्टम के गुमान का सटीक उदाहरण बीजेपी नेताओं के बयानों में स्पष्ट दिखता है 

झारखण्ड में कोलिजियम सिस्टम के गुमान का सटीक उदाहरण बाबूलाल मरांडी व दीपक प्रकाश जैसे झारखण्ड के बीजेपी नेताओं के बयानों में स्पष्ट देखने को मिला है. बाबूलाल मरांडी के बयानों में स्पष्ट मंशा झलकी है कि हेमन्त सरकार मूलवासियों को अधिकार देने का जिद्द छोड़ दे. कोर्ट आपत्ति के मद्देनजर वह बाहरियों के पक्ष में नीति बनाने का ज्ञान परोस रहे हैं. और शातिराना रतीके से सुप्रीम कोर्ट जाने और नौवें शेड्यूल में डालने का जिद्द छोड़ने हेतु ताक़त लगा रहे हैं.

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के बयानों में झलकता है कोलिजियम सिस्टम का गुमान 

ऐसी ही कुछ मंशा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के बयानों में झलक रहा है. इनका स्पष्ट कहना है कि राज्य सरकार 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, नियोजन नीति व आरक्षण विधेयक की फिर से समीक्षा करे. लेकिन EWS के दादागिरी पर कुछ नहीं कहते. इस बाबत बाकायदा उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिख का सुझाव भी दिया है. मसलन उन्हें पहले से ही पता है कि सर्वोच्च न्यायालय 9वीं अनुसूची में शामिल विषयों की भी समीक्षा हो सकती है.  

बीजेपी नेताओं के बयान से स्पष्ट है कि झारखण्ड के मूलवासियों को अधिकार दिलाने के मद्देनजर हेमन्त सरकार से सारे प्रयास विफल होंगे. क्यों कि कोर्ट समीक्षा में झारखण्ड के इस महत्वपूर्ण विषय पर हो रहे सारे प्रयासों पर पानी फेर देगा. मसलन, स्पष्ट है कि झारखण्ड बीजेपी खतियान आधारित स्थानीय नीति, नियोजन नीति व आरक्षण के मुद्दे पर राज्यवासियों के साथ खडी नहीं है बल्कि राज्य के इस गंभीर विषय के राहों में कांटे भी बिछा रही है. 

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