झारखण्ड : CM हेमन्त के गरीबी से लड़ाई को फिर से ट्रोल करने का प्रयास

झारखण्ड : हेमन्त सरकार बहुजनों व गरीबों के हित जब भी अमल में लाती है तो अचानक मनुवादी एजेंट अपने ही फैलाये मकडजाल के नतीजों को सवाल बना सरकार के पग रोकने का प्रयास करते दिखते हैं. 

रांची : देश में मनुवादियों की अजीब लीला है. झारखण्ड में वह एक बार फिर ‘बनी बात में झगड़ा डालो, कुछ तो पंच दिलावेगा’ वाली नीति पर साफ चलते देखे जा रहे हैं. ज्ञात हो, देश में जब भी आपदा आई मनुवादी एजेंट या तो घर में छिपे रहे या फिर चुनावी प्रचार में व्यस्त दिखे. झारखण्ड प्रदेश में तो यह तस्वीरें कई मौकों पर और साफ तौर पर दिखी है. क्योंकि इस व्यवस्था को यह नहीं पचता कि बहुजन व गरीब जनता को सरकारी अधिकार मिले.

CM हेमन्त के गरीबी से लड़ाई को फिर से ट्रोल करने का प्रयास

ज्ञात हो, कोरोना काल में कभी यह मानसिकता अपनी जनता को मुसीबतों में छोड़ दिल्ली से झारखण्ड भागते दिखे. तो कभी झारखण्ड सरकार व जनता की आपदा से लड़ाई में कानून-व्यवस्था भंग कर रोड़े अटकाते दिखे. गौरतलब है कि हेमन्त सरकार जब भी झारखण्ड के बहुजन व गरीब जनता के पक्ष में फैसले पर अमल करती है, तो यह मनुवादी एजेंट अचानक सक्रिय हो जाते है और सरकार को ट्रोल कर उसके पग रोकने के प्रयास में जूटे दिखते हैं.

झारखण्ड गरीब प्रदेश नहीं बल्कि गरीबों का प्रदेश है. और मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन द्वारा कई मंचों से इस कटु सत्य को उजागर भी किया गया है. ऐसे में बहुजन व आम गरीब जनता तक योजनाएं व अधिकार पहुंचाने का प्रयास हेमन्त सरकार द्वारा “सरकार आपके द्वार” जैसे जन कल्याकारी कार्यक्रम के माध्यम से किया जाता है. तो अचानक इन मनुवादी एजेंट प्रकट होते दिखते हैं.

मनुवादी लूट के थैले से निकाल अधिकार को जनता तक पहुंचाने वाले प्रयास को रोकने का जतन 

ज्ञात हो,  हेमन्त सरकार को कभी भी ऐसे जनकल्याण कार्य में विपक्ष का साथ नहीं मिला है. बल्कि विपक्ष सामने से नहीं है तो अपने मनुवादी एजेंटों के माध्यम से, अपने ही मकड़जाल के नतीजों को आगे कर सरकार को ट्रोल कर सरकार के कदम रोकने का प्रयास करते दिखते हैं. ताकि मनुवादी लूट के थैले से निकाल जनता तक पहुंचाने वाले अधिकार के प्रयास को रोका जा सके.

बहुजन एवं गरीब जनता को मनुवादी लूटेरों के पैंतरे, स्टंट को समझना ही होगा

मसलन, राज्य व देश के बहुजन एवं गरीब जनता को मनुवादी लूटेरों के पैंतरे, स्टंट को समझना ही होगा. और उन्हें मुंह-तोड़ जवाब अपने लेखनी के माध्यम से देना ही होग. अपने टूटे-फूटे कम्प्युटर या फोने के माध्यम से उन्हें पुछना ही होगा कि-

  • जब मनुवादी व्यवस्था द्वारा सरकारी रिक्त पदों को ठंडे बस्ते में डाल अनुबंध पर नियुक्तियाँ ली जाती है तब यह एजेंट क्यों चुप रहते हैं? 
  • जब झारखण्ड सरकार गरीबों व बहुजनों के हित कदम बढ़ाते हैं तो क्यों इन एजेंटों का क्यों उदय हो जाता है?
  • जब राज्य में अधिकांश सत्ता भाजपा की रही तो कैसे बांग्लादेसियों को राज्य में परिश्रेय मिला?
  •  आज जब हेमन्त सरकार 1932 की दिशा में बढ़ चली है तो क्यों यह एजेंट बंगलादेसियों के आड़ में बाहरियों को संरक्षण देने का प्रयास कर रहे हैं?
  • आज जब झारखण्ड समेत पूरे देश में महंगाई चरम पर है, शिक्षा बजट में भारी कटौती किए जाने के बावजूद क्यों इन एजेंटों के लिए केंद्रीय नेतृत्व बेहतर है और गरीबों व राज्य हित में काम करने वाले, डूबती अर्थव्यवस्था के बीच रिक्त पदों को भरने के कवायद करने वाले, शिक्षा के बुनियाद को फिर से दुरुस्त करने वाले आदिवासी सुयोग्य मुख्यमंत्री खटक रहे हैं?
  • मनुवादी व्यवस्था के शुद्ध हिन्दी व्याकरण की सड़ी-गली मानसिकता के परे टूटे-फूटे अपने जुबान में ही इनसे सवाल पुछना ही होगा. अन्यथा बहुजन व गरीब वर्ग को इनके जबड़े से निकालना मुश्किल होगा.

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