झारखण्ड : आदिवासियों को बरगलाने में असफल भाजपा अब कर रही है ओबीसी कार्ड भुनाने का प्रयास 

झारखंड में भाजपा के पास जातिगत मुद्दों की घोर कमी हो चली है. और जनमुद्दों की राजनीति से उसे सरोकार नहीं. ऐसे में भाजपा के लिए ओबीसी कार्ड के आधार पर फिर से राजनीतिक जमीन खड़ा करने का प्रयास ताश के महल साबित होंगे.

रांची : झारखंड में पिछले विधानसभा चुनाव और उसके बाद तीन उपचुनावों में प्रदेश भाजपा लगातार असफल रही. इन चुनावों में भाजपा द्वारा साम, दाम, दंड भेद, सभी उपायों को अपनाया गया, बावजूद इसके हारती रही. भाजपा के लिए न बाबूलाल मरांडी की वापसी फायदेमंद रही और न ही अपनी सहयोगी पार्टी के पीठ में छुरा घोंप कर लाये गए नेता ही कोई फायदा पहुंचा सके. ज्ञात हो, आजसू से भाजपा में शामिल किए गए नेता गंगा नारायण सिंह मधुपुर उपचुनाव चुनाव में कोई करिश्मा नहीं दिखा पाये थे. 

आरएसएस समझ तले खड़ी वनवासी कल्याण केंद्रों के माध्यम से भी भाजपा आदिवासियों को हिंदू बनाने असफल रही. झामुमो ने हेमन्त सोरेन की अगुवाई में मंशे का पर्दाफाश किया और आदिवासी समाज में तीव्र विरोध हुआ. खिसकती राजनीतिक जमीन के मद्देनजर भाजपा को तब और झटका लगा जब मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन ने विधानसभा से सरना आदिवासी धर्मकोड के प्रस्ताव को पारित कराकर केंद्र में भेज दिया. भाजपा समझा चुकी है कि वह आदिवासी समाज में सेंध नहीं लगा सकती. मसलन, अब वह ओबीसी कार्ड भुनाने के प्रयास में है.

अन्नपूर्णा देवी को केंद्र में मन्त्री बनाना इसी गेमप्लान का हिस्सा

आदिवासी मुद्दों में असफल भाजपा ने रणनीति बदलते हुए अब झारखंड में ओबीसी कार्ड को भुनाने के प्रयास में जुटी है. राज्य में ओबीसी की जनसंख्या अच्छी तादाद में है. राजद से भाजपा में शामिल हुई अन्नपूर्णा देवी को केंद्र में मन्त्री बनाना इसी नये गेमप्लान का हिस्सा भर है. जिसके अक्स में अन्नपूर्णा देवी ने सोमवार से चार दिवसीय जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की है. कोडरमा, हजारीबाग, रांची, रामगढ़, बोकारो से होते हुए यह यात्रा धनबाद पहुंचेगी. झारखण्ड के इन जिलों मे ओबीसी आबादी की अच्छी संख्या है. ज़मीनी मुद्दे व पूर्व की रघुवर सरकार में दरकिनार ओबीसी अधिकारों के मद्देनजर भाजपा को क्या हासिल होगा यह अबूझ पहेली है.

चूँकि भाजपा-संघ की राजनीति का यह चरित्र रहा कि वह ज़मीनी मुद्दों से इतर भ्रम फैला जनता को गुमराह करती है. झारखंड में भाजपा राजनीतिक के सूर्यास्त के उपरान्त फिर एक बार भ्रम के गुब्बारे में हवा भर बेचने निकल पड़ी है. लेकिन,गंभीर सवाल है कि क्या दूध से जली झारखंड की जनता छांछ फूंक कर नहीं पियेगी. भाजपा के लिए जब झारखंड में आदिवासी मुद्दे अप्रासंगिक हो गए हैं, तो ऐसे में वह कैसे हवा-हवाई मुद्दों के आसरे ओबीसी को साध सकती है.  

भाजपा के पास जातिगत मुद्दों की घोर कमी है और जनमुद्दों की राजनीति से उसे सरोकार नहीं

मसलन, झारखंड में भाजपा के पास जातिगत मुद्दों की घोर कमी हो चली है. और जनमुद्दों की राजनीति से उसे सरोकार नहीं. ऐसे में भाजपा के लिए ओबीसी कार्ड के आधार पर फिर से राजनीतिक जमीन खड़ा करने के प्रयास ताश के महल साबित होंगे. क्योंकि दोनों ही परिस्थितियां भाजपा के उन दावों की पोल खोलती नजर आएगी, जहां उसकी सरकार न तो आदिवासियों के हितैषी बन सकी और न ही ओबीसी को आरक्षण ही दे पायी. 

मसलन, मौजूदा परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि भाजपा सिर्फ जनआशीर्वाद यात्रा जैसे झुनझुने से ओबीसी वर्ग को नहीं साध सकती है. न ही ओबीसी कार्ड के आसरे इस समाज को ठग सकती है. क्योंकि, वह झारखण्ड के ज़मीनी ओबीसी नेताओं के सवालों के अक्स तले मंडल-कमंडल के मध्य झूलती नजर आएगी.

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