PEGASUS से जासूसी : जनान्दोलनों के दुर्ग की सेंधमारी में मोदी सत्ता का नया घातक हथियार

ख़र्चीले ख़ुफ़िया तंत्र व गली तक में बैठे भक्त निश्चित ही पर्याप्त नहीं थे, इसलिए स्पाईवेयर पेगासस (PEGASUS) के लिए सरकार ने जमकर पैसे दिये. प्रति व्यक्ति जासूसी के सात लाख और साफ्टवेयर इन्स्टॉल करने के 3.7 करोड़ रुपये की लागत पर यह स्पाइवेयर लम्बे समय से देश में काम कर रहा है

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फासीवादी सत्ता अँधेरगर्दी और आतंक-राज का अँधेरा गहराने की स्थिति में,  भय से आक्रान्त है कि जनता संगठित हो उठ न खड़ी हो. यह भय जितना बढ़ता जाता है उतना ही अधिक उसका अत्याचार भी बढ़ता जाता है. और वहां इस दौर में प्रचार-तंत्र और सैन्य तंत्र के अतिरिक्त ख़ुफ़िया तंत्र को भी अभेद्य बना देना चाहता हैं. मसलन,पेगासस का भण्डाफोड़ मात्र पानी पर तैरते आइसबर्ग का टिप मात्र हो सकता है! – कविता कृष्णपल्लवी (पत्रकार)

फ़ासीवादी सत्ता अपनी सुरक्षा के मद्देनजर आसपास से लेकर जनता को संगठित करने वाले सभी सोच के बारे में खबर रखना चाहती है. पेगासस पर पैसा बहा कर मोदी सरकार जनाक्रोश के सैलाब पर नियंत्रण करना चाहती है. भारी भरकम ख़र्चीले ख़ुफ़िया तंत्र व गली तक में बैठे भक्त निश्चित ही पर्याप्त नहीं थे, इसलिए अपने पक्के यार से मदद माँगी गई. इज़रायल की कम्पनी एनएसओ को स्पाईवेयर पेगासस (PEGASUS) के लिए सरकार ने जमकर पैसे दिये. प्रति व्यक्ति जासूसी के सात लाख और साफ्टवेयर इन्स्टॉल करने का लिए 3.7 करोड़ रुपये की लागत पर यह स्पाइवेयर लम्बे समय से देश में काम कर रहा है.

पेगासस (PEGASUS) एनएसओ ग्रुप कम्पनी बनाती है. यह कम्पनी इज़रायली ख़ुफ़िया विभाग की देखरेख में काम करती है

PEGASUS : पेगासस का इतिहास पुराना व काला होगा, लेकिन पहला खुलासा साल 2017 में हुआ था. मेक्सिको के एक जनपक्षधर पत्रकार की हत्या में पेगासस के प्रत्यक्ष लिप्त होने की बात सामने आयी थी. भारत के सन्दर्भ में 2019 में एक सूची जारी हुई, जिसमें कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के नाम शामिल थे. बीच-बीच में विवाद उठते रहे, लेकिन पिछले महीने दुनिया के 17 न्यूज़ एजेंसियों ने मिलकर ‘प्रोजेक्ट पेगासस’ नाम से एक मीडिया अभियान की शुरुआत की है. इस अभियान में पेगासस स्पाईवेयर के काम करने के तरीक़े, इस पर हुए ख़र्च आदि की जानकारी दी. साथ स्पाईवेयर को खरीदने वाले देशों की सूची जारी की है.

एक और सूची भी जारी की गयी जिसमें उन लोगों का नाम है जिन पर इस स्पाईवेयर से जासूसी कराई गई है. पेगासस को अबतक का सबसे उन्नत व सबसे ख़तरनाक जासूसी उपकरण माना जा रहा है. इसे इज़रायल की एनएसओ ग्रुप कम्पनी बनाती है. और यह कम्पनी इज़रायली ख़ुफ़िया विभाग की सीधी देखरेख में काम करती है. 

पेगासस (PEGASUS) मात्र सरकारों को बेची जाती है -राज़फ़ाश में भारत सहित क़रीब 50 देश पेगासस के ग्राहक हैं

एनएसओ का दावा है कि वह पेगासस मात्र सरकारों को बेचती है न कि निजी संस्थाओं या व्यक्तियों को. ‘प्रोजेक्ट पेगासस’ के राज़फ़ाश में भारत सहित क़रीब 50 देश पेगासस के ग्राहक हैं. देशों के शासक इसका इस्तेमाल अपने ही देश के विपक्षी नेता, राजनीतिक – सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनपक्षधर पत्रकारों, वकीलों, बुद्धिजीवियों आदि पर कर रही हैं. जिसका मक़सद है केवल जनता के प्रतिरोध का दमन. 

पेगासस एक ऐसा जासूसी सॉफ्टवेयर है जो किसी के मोबाइल फ़ोन में घुसकर फ़ोन को पूरी तरह से क़ाबू में कर लेता है, फ़ोन में रखी तस्वीरें, वीडियो, मैसेज आदि निकाल लेता है, फ़ोन पर हो रही सारी बातचीत रिकॉर्ड कर लेता है. फ़ोन बन्द होने पर भी कैमरा और माइक चालू कर आसपास की बातों को रिकॉर्ड कर लेता है. पेगासस की जासूसी क्षमता इतनी उन्नत है कि स्वयं इज़रायल भी इसे एक घातक हथियार बताता है. इसलिए बिना सरकारी अनुमति के इसे बेचने की इजाज़त मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी को नहीं देता है. 

फ्रांस के पत्रकार समूह फ़ॉर्बिडेन स्टोरीज़ को सूची मिली है जिसमें पेगासस से सम्बंधित 50,000 से अधिक फ़ोन नम्बर है

‘फ़ॉर्बिडेन स्टोरीज़’ फ्रांस के जनपक्षधर पत्रकारों का एक समूह है. इसे एक सूची मिली है जिसमें दुनिया के 50 हज़ार से ज़्यादा फ़ोन नम्बर हैं. पेगासस (PEGASUS) इन नम्बरों को या तो अपनी घुसपैठ का शिकार बना चुका है या बनाने वाला है. इनमें 150 से ज़्यादा नम्बर भारत के हैं. और इन जारी नम्बरों की सूची में सबसे ज़्यादा संख्या यहाँ के राजनीतिक कार्यकर्ता व पत्रकार हैं. मज़े की बात यह है कि इनमें स्वयं मोदी सरकार के कई मंत्री व भाजपा नेता भी शामिल हैं. तानाशाह न केवल जनाक्रोश से डरता है बल्कि अपने लोगों से भी डरता है.

भीमा कोरेगाँव केस के राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर लम्बे समय से जासूसी जारी है. इसके अलावा न जाने देश के कितने राजनीतिक कार्यकर्ता व पत्रकार इस स्पाईवेयर के शिकार होंगे.

पूँजीपतियों के चाकरी के अलावा यह सत्ता सरकारी डेटा एकत्र करती है. भाजपा सरकार ही वह पहली सरकार थी जिसने आधार कार्ड से सभी डेटा जोड़ना अनिवार्य बनाया था. यानी आधार कार्ड से फोन नम्बर, बैंक अकाउण्ट, राशन कार्ड, बीमा, बिजली आदि. काफ़ी प्रतिरोध के बाद इसमें ढील दी गई. लेकिन आज सब कुछ आधार से जुड़ ही गया है. सरकार इस डेटा को जासूसी के लिए इस्तेमाल तो करती ही है. चहेते कम्पनियां भी अपने फ़ायदे अनुसार डेटा का उपयोग करते हैं. बड़े स्तर पर डेटा निकाल छेड़-छाड़ करने के मामले में सरकार का पुराना इतिहास रहा है. 

केन्द्र सरकार से 7500 से 9000  लोगों और संस्थानों की जासूसी की माँग आती है – गृह मंत्रालय 

यदि गृह मंत्रालय की माने तो 2014 में दायर आरटीआई का उत्तर देते हुए मंत्रालय ने कहा था कि हर महीने उसके पास केन्द्र सरकार से 7500 से 9000 लोगों और संस्थानों की जासूसी की माँग आती है. एक अन्य उदाहरण के तौर पर इस वर्ष जून में ही सरकार ने खुले तौर पर व्हाट्सऐप (whatsapp) को एण्ड टू एण्ड इन्क्रिप्शन (यानी मेसेज और कॉल की गोपनीयता) हटाने को कहा. जिसका व्हाट्सऐप ने सरकार पर निजता के अतिक्रमण का केस लगा कर प्रतिरोध किया था. लेकिन सरकार अब डेटा की चोरी पुख़्ता करने के लिये एक नया बिल लाने की योजना बना रही है. इसे सामान्य तौर पर प्राइवेसी बिल (पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल) भी कहा जाता है. 

सवाल उठने पर सरकार ने चिर परिचित अंदाज में जवाब दिया कि उसने कुछ भी गैर-क़ानूनी नहीं किया है. और सब कुछ राष्ट्रीय सुरक्षा को केन्द्र में रख कर किया गया है. 

मसलन, तकनीक जितनी उन्नत होगी जासूसी भी उन्नत होगी. अंग्रेजी सत्ता के पास भी उस दौर के तुलना में हमेशा उन्नततम तकनीक थी, लेकिन भगत सिंह से लेकर चन्द्रशेखर आज़ाद तक अंग्रेज़ों के जासूसों और मुख़बिरों को चकमा देते हुए अपना काम करते रहे. सत्ता के साथ भी इन्सान ही काम करते हैं और जन नेताओं की जनता के बीच पैठी होती हैं. उनकी इसी ताक़त से फ़ासीवादी सरकार डरी हुई हैं.

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