मसाला मोंक के फाउंडर ने नफरत फैलाने वाले को लिखा खुला ख़त

मसाला मोंक कंपनी के फाउंडर शशांक अगरवाल एक ट्रेवल और फूड ब्लॉगर भी हैं। देश में लगातार बढ़ते साम्प्रदायिक ज़हर को काउंटर करते हुए एक मज़ेदार लेकिन गंभीर ख़त अपने फेसबुक पेज पर जवाब के रूप में लिखा। दरअसल मसाला मोंक के फेसबुक पेज एक राजीव सेठी नाम का शख़्स मसाला मोंक के उत्पादों की आड़ में  मुस्लिम विरोधी टिप्पणी करता है। वह शख़्स उपभोक्ता से अधिक ट्रोलर ज़्यादा प्रतीत होता है, जो कोरोना  जैसे महामारी के परिस्थिति में भी साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाता दिखता है। हालांकि मसाला मोंक की सोशल मीडिया टीम नें राजीव सेठी को उचित उत्तर दिया, लेकिन कंपनी के फाउंडर ने मामले को ऐसे ही आई-गयी होने नहीं दिया। पहले अपने निजी फेसबुक अकाउंट से टिप्पणी का स्क्रीनशॉट लिखे कि ‘और फिर ऐसा एक मूर्ख आता है…’

इसके बाद शशांक ने उस शख़्स के नाम खुला ख़त लिखा जिसमे उन्होंने कमाल के व्यंग्य और समझदारी का एक  उदाहरण पेश किया है। पर्स्तुत है उनके चिट्ठी का हिंदी अनुवाद जो मिडिया भिजिल द्आवारा किया गया है। ताकि  यह समझा जा सके कि समाज में बढ़ती साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ क्यों आवाज बुलंद करना ज़रूरी है। शशांक न अपने ओपेन लेटर में लिकते हैं ;

प्रिय श्री सेठी,

मसाला मोंक डॉट कॉम के फाउंडर के तौर पर मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि हमारे गुणवत्ता के कुछ ख़ास मानक हैं, हालांकि आपके बारे में ऐसा नहीं लगता है। ख़ैर, ये एक अलग कहानी है और मैं विषय से हटना नहीं चाहता। 

मसाला मोंक में हम ये सुनिश्चित करते हैं कि हमारी लार ISO9002 प्रमाणित हो और हमारे सभी थूकने वाले सभी पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के पास, गतिज मौखिक प्रक्षेपण (Dynamic Oral Propulsion) में पीएचडी हो। जब वो अपनी Submandibular Gland (लार ग्रंथि) से म्यूकस (कफ़) को प्रक्षेपित करें तो उसमें वे अहमदाबाद सम्मेलन में तय की गई सर्वोत्तम विधि का पालन करें। इसलिए न केवल हमारे उत्पादों को देखकर आप लार टपका सकते हैं, आप इस बात को लेकर निश्चिंत हो सकते हैं कि हमारे यहां थूक की गुणवत्ता को लेकर भी सर्वोत्तम मानक अपनाए जाते हैं। 

इसके अलावा हम आपको बताना चाहते हैं कि हमारे यहां कोई भी मुस्लिम काम नहीं करता है। दरअसल MasalaMonk.com में कोई भी काम नहीं करता, बल्कि यहां हर शख़्स मज़े कर रहा है; वे सभी अपने काम को लेकर इतने जुनूनी हैं कि ये उनके लिए काम नहीं बल्कि शौक है। 

आप चाहें तो अक़बर, रफ़ी, आएशा, फ़िरदौस, मलिक, तबस्सुम से पूछ सकते हैं..उनको हमारे ग्राहकों के पसंदीदा उत्पादों को प्यार से सजाते हैं और आपकी तरह हमारे किसी ग्राहक को कभी भी इस बात की फ़िक्र नहीं हुई कि उन उत्पादों को कौन पैक कर रहा है।  

लेकिन मैं समझ सकता हूं..निश्चित तौर पर बड़े होते वक़्त आपका परिचय कभी भी अच्छे स्वाद से नहीं हुआ। जैसा कि कहावत है, ‘हम जो खाते हैं, वैसे ही हो जाते हैं..’ और इसलिए इसमें आपका कोई दोष नहीं है। मैं आपको सलाह दूंगा कि आप हमारे कैटेलॉग में मौजूद सभी उत्पाद ऑर्डर करें और जल्दी ही आपके स्वभाव और किरदार में बदलाव आने लगेगा और आप उन सभी विभिन्नताओं को अपना लेंगे, जो भारत को एक बनाती हैं।

तब तक,

ख़ुदा हाफ़िज़

शशांक अगरवाल

शशांक अगरवाल की ये चिट्ठी न केवल तीख़ा और ज़रूरी व्यंग्य के लिए पढी जानी चाहिये, बल्कि इस लिए भी पढ़ी जानी चाहिए कि क्यों आख़िर समाज के हर स्तर पर अब नफ़रत के ख़िलाफ़ हस्तक्षेप ज़रूरी है। शशांक अगरवाल और मसाला मोंक की टीम निस्संदेह ऐसे कार्य के लिए बढ़ाई के पात्र हैं।

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