12 केन्द्रीय मंत्रियों का पत्ता साफ यह कैसा इंसाफ !

रांची :  मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस का नारा देने वाली केंद्र की भाजपा सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ है. अब मंत्रीमंडल में 78 मंत्री शामिल है. जिसमें 43 नये चेहरे शामिल है. इन 43 नये चेहरों में 15 कैबिनेट और 28 राज्यमंत्री है. पर मंत्रीमंडल विस्तार से पूर्व भाजपा ने अपने 12 केन्द्रीय मंत्रियों का पत्ता भी साफ कर दिया है. इनमें सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, डॉ हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल निशंक, संतोष गंगवार, बाबुल सुप्रियो जैसे नाम है. इन सभी को बलि का बकरा बनना पड़ा है. 

बाबुल सुप्रियो का दर्द मीडिया के समक्ष छलक

इस्तीफा देनेवाले ज्यादातर केन्द्रीय मंत्रियों ने अपने मुंह बंद रखे हैं. पर बाबुल सुप्रियो का दर्द मीडिया के समक्ष छलक ही गया. उन्होंने कहा कि मुझसे इस्तीफा देने को कहा गया था-मैंने दे दिया. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने लिए दुखी है. 

प्रकरण से साफ होता है कि राजनीति में मर्यादा और शुचिता की बात करनेवाली भाजपा सत्ता मोह में कितनी निष्ठुर और निर्मम हो सकती है. राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए वह अपने समर्पित नेताओं-कार्यकर्ताओं की भी बलि ले सकती है. झारखंड के संदर्भ में इसका एक अच्छा उदाहरण कुछ महीने पूर्व हुए मधुपुर उपचुनाव में देखने को मिला था जब भाजपा ने पूर्व मंत्री राज पलिवार को किनारे कर आजसू से उधार के उम्मीदवार गंगा नारायण को टिकट दिया था. यह अलग बात है कि इसके बाद भी मधुपुर उपचुनाव में उसे मुंह की खानी पड़ी थी.

मधुपुर उपचुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी आजसू के साथ जो भीतरघात किया था उसकी टीस आजसू अभी भी महसूस करती है. इसके बाद भी आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने अपने स्वाभिमान को ताक पर रखकर कुछ दिनों पूर्व दिल्ली जाकर अमित शाह से मुलाकात की. उस मुलाकात के बाद तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे थे. सुदेश महतो को अमित शाह से मुलाकात के बाद बड़ी उम्मीदें थी लेकिन ऐसा लगता है एक बार फिर से उन्हें झुनझुना पकड़ा दिया गया है. 

चुनाव के पूर्व केंद्रीय मंत्रीमंडल का विस्तार भाजपा की रणनीति का हिस्सा 

बहरहाल, कयास लगाये जा रहे हैं कि केंद्रीय मंत्रीमंडल का विस्तार आगामी चुनावों को देखते हुए किया गया है. यूपी, गुजरात सहित कई राज्यों में चुनाव होने हैं. जो 2024 के लोकसभा चुनाव के रास्ते भी तय करेगा. यह चुनाव के पूर्व भाजपा की रणनीति का हिस्सा है. पर फिलहाल भाजपा के इस निर्णय से झटका देश की जनता को ही लगना है क्योंकि इस भारी भरकम मंत्रीमंडल के खर्च का बोझ तो देश की आम जनता को ही उठाना होगा.

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