फासीवादियों ने गौरक्षा की आड़ में जो गुण्डागर्दी व क़त्लोगारत देशभर में मचा रखी है, वह अब जग जाहिर है। यह “गौ-रक्षक” गुण्डे मोदीजी की सत्ता में बेख़ौफ़ घूमते रहे और नित नयी घटनाओं को अंजाम भी देते रहे हैं। जब दुनियाभर में थू-थू होने लगी तो साहेब ने कह दिया था कि महात्मा गाँधी इन हत्याओं को ठीक नहीं कहते। लेकिन गौ-गुण्डों को यह पता था कि ऐसे बयान केवल दूसरों को सुनाने के लिए हैं। इसीलिए, मोदी जी कहते रहें पर गाय के नाम पर हत्याएँ और गुण्डागर्दी लगातार जारी रही। शायद अब वे यह समझ गए कि अब यह हथकंडा बहुत दिनों तक नहीं चलने वाला, इसलिए अब ये इस तकनीक को अपडेट कर दिए हैं।
अबतक इन गौ-रक्षक की गुंडागर्दी की सारी घटनाओं में जिस पुलिस की भूमिका मूकदर्शक व तथाकथित गौरक्षा दलों संग मिलीभगत वाली थी, उन्हें अब सड़कों पर गुंडागर्दी करने का खुली छुट दे दी है। पहले वाले तकनीक से केवल वोट की उगाही होती थी, परन्तु अब इस अपडेटेड तकनीक से धन की उगाही होने लगी है। अबतक किसी भी बेरोज़गार युवा को एक रूपए का फायदा न देने वाली और विज्ञापनों पा भारी भरकम खर्चा करने वाली सरकार लाइसेंस-हेलमेट के नाम पर देश की अर्थव्यवस्था सुधारने निकल पड़ी है। सरकार की इस नीति से पुलिस अब सड़कों पर नंगा नाच कर रही है। युवाओं को तो छोडिये सीनियर सिटीजन्स तक को लप्पड़-थप्पड़, बेइज्जती करने से नहीं चूक रही।
अलबत्ता, गोदी मीडिया ने तो इस मामले में चुप्पी साध रखी है, लेकिन देश के युवा रोज पुलिस की कारिस्तानियों को सोशल मीडिया के प्लैट्फ़ॉर्म पर वायरल कर उजागर कर रहे हैं। यह भी ज्ञात हो कि चालान काटने के मामले में भाजपा शासित राज्यों की पुलिस ज्यादा कहर बरपा रही है। झारखण्ड की राजधानी रांची की यह हालत है कि चालान काटने की वजह भर पूछे जाने मात्र से लोगों के चमड़ी उधेडी जा रही है। साथ ही उनपर सरकारी ड्यूटी में बाधा डालने और वर्दी फाड़ने जैसे इलज़ाम लगाकर, केस लादे जा रहे हैं। मसलन अब ये देखना है कि अपने ऐशो-आराम के लिए यह सरकार जनता को निचोड़ने के लिए अपने कोड़े को और कितना तीखा करती है।