बिजली तो रघुबर सरकार सरकारी कार्यक्रमों में भी उपलब्ध नहीं करवा पा रही है 

झारखण्ड में मौजूदा मुख्यमंत्री के जीरो कट मुहैया कराने जैसे जुमले के बावजूद हो रही बिजली कटौती के कारण कोई प्राकृतिक नहीं हैं। असल में यह विभाग में व्याप्त मुनाफ़ाख़ोरी और सरकार की मुट्टीभर चहेते पूँजीपतियों के पक्ष में जनता के ख़िलाफ़ अपनायी गयी नीतियों का नतीजा है। साथ ही DVC पर निर्भरता एवं करोड़ों रुपया का बिल बकाए एवं मजदूरों की कमी के कारण भी इसके कई वजहों में से एक है। जब रघुबर सरकार जनता की पेट की भूख तक मिटाने को तैयार नहीं है तो ऐसे में यह सामान्य ज्ञान रखने वाला भी समझ सकता है कि यह सरकार जनता के फ़ायदे के लिए बिजली की पूर्ति हेतु कहाँ तक क़दम उठायेगी। 

कहने को तो 1947 में देश और 2000 में झारखण्ड आज़ाद हो गया, लेकिन यहाँ ग़ैरबराबरी, ग़रीबी, भूख-प्यास, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सुविधाओं का अकाल, अशिक्षा बस अब तक व्याप्त है। मतलब जनता की आज़ादी आनी अभी बाक़ी है। झारखण्ड में बिजली व्यवस्था की स्थिति इतनी लचर हो चुकी कि लोगों के घरों में बिजली पहुँचना तो दूर सरकार अपने घंटे भर के कार्यक्रमों में भी बिजली उपलब्ध नहीं करा पा रही है। राज्य के मंत्री तक को मोबाइल के रौशनी में कार्यक्रम करना पड़ रहा है। जी हाँ आपने बिकुल ठीक पढ़ा, नामकुम स्थित जैक परिसर में शिक्षक दिवस के अवसर पर  राज्यस्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह का यही हाल था, जिसमें शिक्षा मंत्री डॉ. नीरा यादव भी मौजूद थीं। 

इस कार्यक्रम में विशिष्ट योगदान के लिए कई शिक्षकों को सम्मानित किया जाना था। कार्यक्रम के  दौरान बिजली विभाग की अव्यवस्था की पोल खुल कर सामने आ गयी। कार्यक्रम के दौरान एक बार नहीं बल्कि कई दफा पावर कट होता रहा। स्थिति यह उत्पन्न हो गयी की कार्यक्रम को मोमबत्ती व मोबाइल लाइट्स की मदद से संपन्न किया गया। पूरे मामले में दिलचस्प पहलू यह है कि कहने को तो अपनी राजनीति चमकाने के लिए डॉ. नीरा यादव ने शिक्षक को राष्ट्र निर्माता व अपने ज्ञान दीप से भविष्य वाला बताया। जबकि खुद मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज वे जो कुछ भी है शिक्षकों के बदौलत हैं, लेकिन वे सम्मानित शिक्षकों के लिया जेनरेटर तक उपलब्ध न करवा पाए। वाह री शिक्षकों को सम्मान करने वाली सरकार…   

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