सदन को लोकतंत्र का मंदिर मानने वालों ने ही की विधानसभा निर्माण में गड़बड़ी

सदन को लोकतंत्र का मंदिर मान शीश नवाने वालों ने ही की विधानसभा निर्माण में गड़बड़ी

आम चुनाव 2019 से पहले भाजपा अपने पुराने संघी फ़ॉर्मूला – धर्म के नाम की चुनावी गोटियाँ लेकर मैदान में कूद पड़ी है। “मन्दिर वहीं बनायेंगे” जैसे साम्प्रदायिक फ़ासीवादी नारों की गूँज के बीच इनके विकास और “अच्छे दिनों” की सच्चाई सबके सामने है। विकास का गुब्बारा फुस्स होने की कड़ी में एजी ने झारखंड विधानसभा के नये भवन के निर्माण  के जांच रिपोर्ट में सदन को लोकतंत्र का मंदिर मान शीश नवाने वाले देश भक्तों की गड़बड़ी पकड़ी है।

एजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ कहा है कि नये विधानसभा भवन के निर्माण में इंजीनियरों ने रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को अतिरिक्त फायदा पहुंचाया है। इन इंजीनियरों ने पहले तो इंटीरियर वर्क के हिसाब-किताब में गड़बड़ी बता कर 465 करोड़ के मूल प्राक्कलन को घटा कर 420.19 करोड़ कर दिया। ठीक 12-दिन बाद ही बिल ऑफ क्वांटिटी (बीओक्यू) में निर्माण लागत 420.19 करोड़ से घटा कर 323.03 करोड़ कर दिया। टेंडर निबटारे के बाद 10 प्रतिशत कम कर 290.72 करोड़ रुपये की लागत पर रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को काम दे दिया गया।

ठेकेदार के कहने पर बाद में वास्तु दोष के नाम पर साइट प्लान में फेर बदल कर निर्माण क्षेत्र में 19,943 वर्ग मीटर बढ़ा दिया गया। साथ ही इस बढ़े हुए निर्माण क्षेत्र पर समानुपातिक दर से ठेकेदार को भुगतान का फैसला भी ले लिया गया। मजेदार बात यह है कि विधानसभा कांप्लेक्स निर्माण की जिम्मेदारी पहले ग्रेटर रांची डेवलपमेंट एजेंसी को सौंपी गयी थी। बाद में जीआरडीए से यह जिम्मेदारी वापस लेकर भवन निर्माण को सौंप दिया गया। इसमें दिलचस्प यह है कि इन दोनों फैसलों का उल्लेख सरकारी दस्तावेज में नहीं है। ज्ञात रहे पहले के डीपीआर में विधानसभा कांप्लेक्स की लागत 465 करोड़ रुपये में सर्विस बिल्डिंग, गेस्ट हाउस, कार पार्किंग और वाच टावर आदि के निर्माण का उल्लेख था। लेकिन अब मुख्य अभियंता ने डीपीआर पर 564 करोड़ रुपये के लागत की तकनीकी स्वीकृति दी है।

मसलन, टेंडर के टेक्निकल बिड में सभी- शापोरजी पालोन जी, एल एंड टी, नागार्जुन और रामकृपाल कंस्ट्रक्शन सफल घोषित हुए परन्तु फाइनांशियल बिड में रामकृपाल को छोड़ सभी नाटकीय ढंग से चित्त हो गए। इस प्रकार रामकृपाल कंस्ट्रक्शन एल-वन को घोषित करते हुए 25 जनवरी 2016 को बिना मुनाफे के ही काम! कर रहे बता कर उसके साथ एकरारनामा किया गया। लेकिन हाइकोर्ट  के निर्माण टेंडर प्रक्रिया के ही भांति और विधानसभा भवन के निर्माण लागत को घटा कर अपने चहेते ठेकेदार को सौंपा गया। बाद में निर्माण में नये काम को जोड़ कर निर्माण लागत निर्धारित लागत से ज्यादा बढ़ा दिया गया। पीडब्ल्यूडी कोड में वास्तु दोष की मान्यता नहीं होने के बावजूद सरकार का ठेकेदार की बात मान लेना यही सवाल खड़े करते हैं कि जो लोग लोग सदन को लोकतंत्र का मंदिर मान शीश नवाए थे क्या वह केवल देश भक्ति का ढोंग था…?

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