रघुबर सरकार की एक और ओछी हरकत, राज्यपाल की गरिमा को फिर से किया धूमिल

 रघुबर सरकार की एक और ओछी हरकत:

झारखंड में भाजपा की रघुबर सरकार की ओछी हरकतें इनका श्रृंगार बन चुका है। इनकी अमर्यादित क्रियाकलापों की पुनरावृत्ति इनकी मानसिकता के निम्नतम स्तर को प्रमाणित करती है। इसका ताज़ातरीन उदहारण रघुबर सरकार द्वारा 15 नवम्बर को आयोजित किए जाने वाले झारखंड स्थापना दिवस के समारोह की तैयारी में नज़र आया।


रघुबर सरकार ने इस भव्य समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में अपने आलाकमान भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष अमित शाह को आमंत्रित करने का निर्णय लिया था, परन्तु इनके अध्यक्ष ने बिजी शेड्यूल का हवाला देते हुए समारोह में उपस्थित होने में असमर्थता जताई। तब मजबूरी में मुख्यमंत्री महोदय को महामहिम राज्यपाल महोदया द्रोपदी मूर्मू जी का ख्याल आया। इससे ज्यादा बड़ी कुंठित सोंच की और क्या मिसाल हो सकती है? राज्य की प्रथम महिला की गरिमा के ऊपर रघुबर सरकार ने अपने आकाओं का महिमामंडन को सर्वोपरि समझा। विगत सितम्बर माह में आयुष्मान भारत के उदघाटन समारोह के दौरान भी राज्यपाल महोदया को सम्बोधन न करने देना जग जाहिर ही है।


भले ही झारखंड स्थापना दिवस के शुभ मौके को भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन ये झारखंड की हर सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी है। परन्तु इस तथ्य को भी बिल्कुल झुठलाया नहीं जा सकता है कि भाजपा सरकार का यह कारनामा 15 नवम्बर के ऐतिहासिक दिन को भी राजनीतिक जामा पहनाने की नापाक कोशिश थी। उसके बाद भी इस ऐतिहासिक समारोह में राज्यपाल जी को दूसरे या मजबूरी के विकल्प के रूप में देखना इनकी ओछी और दोहरी मानसिकता का भंडाफोड़ करती है।
कहने को तो यह सरकार खुद को आदिवासियों, महिलाओं का रहनुमा मानती है। लेकिन फिर भी यह बार-बार राज्य के सबसे प्रतिष्ठित पद पर विराजित आदिवासी महिला की गरिमा धूमिल करने से भी नही चूकते हैं। ऐसे में यह कहना बिलकुल गलत नहीं की आम महिलाओं और आदिवासियों का इनके सिद्धांतों में कोई स्थान नहीं है। वास्तव में रघुबर सरकार महिला और आदिवासी सम्मान से कोई सरोकार नहीं रखती है।

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